Vaibhav Lakshmi Vrat Katha : वैभव लक्ष्मी व्रत कथा नियम एवं आरती
स्वागत है आपका आज के इस लेख में हम जानेंगे Vaibhav Lakshmi Vrat Katha साथ ही इससे जुड़े नियम एवं आरती के बारें में भी चर्चा की जाएगी अतः आपसे निवेदन है कि यह लेख अंत तक जरूर पढ़ें
वैभवलक्ष्मी व्रत करने के नियम
- यह व्रत पूरी श्रद्धा और पवित्र भाव से करना चाहियें |
- यह व्रत शुक्रववार को किया जाता है और शुरू करने के पूर्व 11या 21 शुक्रवार की मन्नत रखनी पड़ती है |
- व्रत के दिन सुबह से ही “जय माँ लक्ष्मी ” “जय माँ लक्ष्मी ” का रटन मन ही मन करना चाहिए |
- व्रत विधि पूर्वक करना चाहिए |
- मन्नत के 11या 21 शुक्रवार पुरे होने पर रीति अनुसार उद्यापन करना चाहिए |
- यह उपवास अपने ही घर पर करना चाहिए
- शुक्रवार के दिन आप यात्रा या प्रवास पर हो तो वह शुक्रवार छोड़ कर अगले शुक्रवार को व्रत करना चाहिए |
- श्री यन्त्र की पूजा अवश्य करनी चाहिए |
- व्रत पूरा होने पर काम से काम 7 स्त्रियों को भेंट दे |
वैभव लक्ष्मी कथा -Vaibhav Lakshmi Vrat Katha
एक गांव में बहुत से लोग रहते थे जो अपना काम मन लगा कर करते थे परन्तु आपस में किसी तरह की कोई मदद नहीं करते थे। पूजा पाठ, दया – भावना परोपकार जैसे संस्कार बहुत ज्यादा कम हो गए, वहां में बुराइयां बढ़ गई थीं। शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती वगैरह बहुत से गुनाह शहर में होते थे। इनके बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे।
ऐसे ही लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी। शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी स्वभाव वाली थी, उनका पति भी विवेकी और सुशील था। शीला और उसका पति कभी किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे, शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे।एक गांव में बहुत से लोग रहते थे जो अपना काम मन लगा कर करते थे परन्तु आपस में किसी तरह की कोई मदद नहीं करते थे। पूजा पाठ, दया – भावना परोपकार जैसे संस्कार बहुत ज्यादा कम हो गए, वहां में बुराइयां बढ़ गई थीं।, व्यभिचार, चोरी-डकैती वगैरह बहुत से गुनाह शहर में होते थे। इनके बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे। ऐसे ही लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी। शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी स्वभाव वाली थी, उनका पति भी विवेकी और सुशील था। शीला और उसका पति कभी किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे, शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे।देखते ही देखते समय बदल गया। शीला का पति बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा, अब वह जल्द से जल्द करोड़पति बनने के ख्वाब देखने लगा। इसलिए वह गलत रास्ते पर चल पड़ा फलस्वरूप वह रोडपति बन गया, यानी रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी हालत हो गई थी। शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा वगैरह बुरी आदतों में शीला का पति भी फंस गया। दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई, इस प्रकार उसने अपना सब कुछ रेस-जुए में गंवा दिया।
शीला को पति के बर्ताव से बहुत दुःख हुआ, किन्तु वह भगवान पर भरोसा कर सबकुछ सहने लगी। वह अपना अधिकांश समय प्रभु भक्ति में बिताने लगी, अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी, शीला ने द्वार खोला तो देखा कि एक माँजी खड़ी थी। उसके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था, उनकी आँखों में से मानो अमृत बह रहा था, उसका भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलक रहा था।
उसको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई, शीला के रोम-रोम में आनंद छा गया। शीला उस माँजी को आदर के साथ घर में ले आई। घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था, अतः शीला ने सकुचाकर एक फटी हुई चद्दर पर उसको बिठाया।
माँ जी बोलीं- “क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं? हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन-कीर्तन के समय मैं भी वहां आती हूं।” इसके बावजूद शीला कुछ समझ नहीं पा रही थी। फिर माँ जी बोलीं- ‘तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आईं अतः मैं तुम्हें देखने चली आई।’माँ जी के अति प्रेमभरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया, उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह बिलख-बिलखकर रोने लगी। माँ जी ने कहा- ‘बेटी! सुख और दुःख तो धूप और छाँव जैसे होते हैं, धैर्य रखो बेटी! मुझे तेरी सारी परेशानी बता।’माँ जी के व्यवहार से शीला को काफी संबल मिला और सुख की आस में उसने माँ जी को अपनी सारी कहानी कह सुनाई। कहानी सुनकर माँजी ने कहा- ‘कर्म की गति न्यारी होती है। हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं, इसलिए तू चिंता मत कर, अब तू कर्म भुगत चुकी है। अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आएँगे, तू तो माँ लक्ष्मीजी की भक्त है, माँ लक्ष्मीजी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं। इसलिए तू धैर्य रखकर माँ लक्ष्मीजी का व्रत कर, इससे सब कुछ ठीक हो जाएगा।’शीला के पूछने पर माँ जी ने उसे व्रत की सारी विधि भी बताई।
माँ जी ने कहा- ‘बेटी! मां लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है, उसे ‘वरद लक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ कहा जाता है। यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है, वह सुख-संपत्ति और यश प्राप्त करता है।’शीला यह सुनकर आनंदित हो गई। शीला ने संकल्प करके आँखें खोली तो सामने कोई न था, वह विस्मित हो गई कि माँ जी कहां गईं? शीला को तत्काल यह समझते देर न लगी कि माँ जी और कोई नहीं साक्षात् लक्ष्मीजी ही थीं।दूसरे दिन शुक्रवार था। सवेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर शीला ने माँ जी द्वारा बताई विधि से पूरे मन से व्रत किया। आखिरी में प्रसाद वितरण हुआ, यह प्रसाद पहले पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया, उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं। शीला को बहुत आनंद हुआ, उनके मन में ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ के लिए श्रद्धा बढ़ गई।
शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ किया। इक्कीसवें शुक्रवार को माँजी के कहे मुताबिक उद्यापन विधि कर के सात स्त्रियों को ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की सात पुस्तकें उपहार में दीं। फिर माताजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छबि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगीं- ‘हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपका ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है, हे मां! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो, जिसे संतान न हो, उसे संतान देना, सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना।
कुंआरी लड़की को मनभावन पति देना, जो आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उनकी सब विपत्ति दूर करना। सभी को सुखी करना, हे माँ! आपकी महिमा अपार है।’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छबि को प्रणाम किया।
व्रत के प्रभाव से शीला का पति अच्छा आदमी बन गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा। उसने तुरंत शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए, घर में धन की बाढ़ सी आ गई। घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई, ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियां भी विधिपूर्वक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने लगीं।
वैभव लक्ष्मी जी की आरती –
ॐ वैभव लक्ष्मी माता, मैया वैभव लक्ष्मी माता,
भक्तों के हितकारिनी, भक्तों के हितकारिनी,
सुख वैभव दाता, ॐ वैभव लक्ष्मी माता ।
लक्ष्मी माँ का नाम जो लेता, सुख सम्पति पाता,
मैया सुख सम्पति पाता, दुःख दरिद्र मिटता,
दुःख दरिद्र मिटता, बांछित फल पाता ।
ॐ वैभव लक्ष्मी माता, मैया वैभव लक्ष्मी माता,
भक्तों के हितकारिनी, भक्तों के हितकारिनी,
सुख वैभव दाता, ॐ वैभव लक्ष्मी माता ।
लक्ष्मी माता तू जग माता, जग पालक रानी,
मैया जग पालक रानी, हाथ जोड़ गुण गाते,
हाथ जोड़ गुण गाते, जग के सब प्राणी ।
ॐ वैभव लक्ष्मी माता, मैया वैभव लक्ष्मी माता,
भक्तों के हितकारिनी, भक्तों के हितकारिनी,
सुख वैभव दाता, ॐ वैभव लक्ष्मी माता ।
हे माँ तेरी शरण में जो आता, तेरी भक्ति पाता,
मैया तेरी भक्ति पाता, माँ तेरी ममता पा के,
माँ तेरी ममता पा के, अंत स्वर्ग जाता ।
ॐ वैभव लक्ष्मी माता, मैया वैभव लक्ष्मी माता,
भक्तों के हितकारिनी, भक्तों के हितकारिनी,
सुख वैभव दाता, ॐ वैभव लक्ष्मी माता ।
ॐ वैभव लक्ष्मी माता, मैया वैभव लक्ष्मी माता,
भक्तों के हितकारिनी, भक्तों के हितकारिनी,
सुख वैभव दाता, ॐ वैभव लक्ष्मी माता,
ॐ वैभव लक्ष्मी माता ।
आशा करते है कि Vaibhav Lakshmi Vrat Katha के बारे में सम्बंधित यह लेख आपको पसंद आएगा एवं ऐसे लेख पढ़ने के लिए हमसे फेसबुक के माध्यम से जुड़े।