Shri Ganesh Vinayak Ji Ki Katha: हमारे पांव तले पड़े तिनके का हमारे जीवन में कोई मोल नहीं होता परंतु वही तिनका जब हमारी आंखों में जाता है तो उससे जो पीड़ा होती है उसका कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता है। अब गणेश जी का रूप देवताओं में सबसे अनोखा और सबसे प्यारा है। इनसे कदाचित कोई भी रुष्ट नहीं होता होगा या फिर इनका कोई भी उपहास नहीं उड़ाना चाहेगा। परंतु इस सृष्टि में कुछ लोग ऐसे भी रहे हैं जिन्होंने ऐसे कृत्य को करने का दुस्साहस किया है और उन्हीं में से एक हैं चंद्रदेव।
इस Shri Ganesh Vinayak Ji Ki Katha लेख में जानेंगे कि कैसे भगवान गणेश का उपहास उड़ाना चंद्रदेव को भारी पड़ गया और कैसे यह किवदंती आज भी कई भक्तों को प्रभावित करती है।
Shri Ganesh Vinayak Ji Ki Katha – गणेशजी जब गिर पड़े
यह कथा (Shri Ganesh Vinayak Ji Ki Katha) तब की है जब अपना कुछ कार्य संपन्न करके गणेशजी अपने घर कैलाश की ओर लौट रहे थे। रात्रि का समय था एवं चंद्रमा के प्रकाश से कैलाश पर्वत जगमग हो रहा था। इसी समय सामने से एक सर्प गुजरा, जिसके भय से गणेशजी का वाहन मूषक उछल पड़ा और उस पर विराजमान गणेशजी अपना संतुलन खो बैठे और गिर गए।
गणेश जी पहले उठे और देखने लगे कि किसी ने उन्हें गिरते हुए तो नहीं देख लिया। जब वे लगभग आश्वस्त हो चुके थे तो उन्हें अचानक किसी व्यक्ति की ज़ोर-ज़ोर से हंसने की ध्वनि सुनाई दी। परंतु इधर-उधर, दूर-दूर तक कोई नहीं था। फिर गणेश जी ने जब ऊपर की ओर देखा तो पाया कि आसमान में चन्द्रदेव उनके ऊपर ही हंस रहे हैं।
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अभिमानी चन्द्रमा को श्राप
अब गणेशजी ने लज्जा से अपना मस्तक झुका लिया परंतु चंद्रदेव उतने पर ही नहीं रुके, वे हंसते ही रहे और तो और अपनी प्रशंसा भी करने लगे। अब गणेशजी से क्रोध की आशा करना कुछ लोगों के लिए लगभग असंभव होगा परंतु गणेशजी पुत्र भी तो महादेव के हैं। अतः गणेशजी अत्यंत क्रोधित हो उठे और बोले, “अभिमानी चन्द्रमा! तुम मेरी लाचारी पर हंस रहे हो, यह तुम्हें कदापि शोभा नहीं देता, किसी की परेशानी का उपहास उड़ाना देवताओं को नहीं अपितु दैत्यों का कार्य है, मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें जिस चांदनी का दम्भ है, आज के बाद तुम उसे खो दोगे।”
अब गणेशजी के मुख से वह शब्द निकलने की देर थी कि वह सत्य भी होता गया और इसका परिणाम यह हुआ कि सम्पूर्ण आकाश में अंधकार छा गया। यह देख चन्द्र देव गणेशजी के शरणागत होकर बोले, “हे दुःखहर्ता! मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई जो मैंने अभिमानवश आपका उपहास उड़ाया, यदि मेरी चांदनी ही चली जाएगी तो मेरा अस्तित्व का ही अंत हो जाएगा। मुझे अपने किए का आभास हुआ है, कृपा कर मुझे क्षमा करें भगवन और अपना श्राप लौटा लें।”
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गणेशजी का क्रोध
कुछ देर बाद जब गणेशजी का क्रोध कम हुआ तो उन्होंने कहा, ” देखो, अपना श्राप तो मैं नहीं लौटा पाऊंगा परंतु तुम्हें एक वरदान भी देता हूं कि ऐसा तो होगा कि तुम अपनी रोशनी खो दोगे परंतु केवल माह में एक दिन के लिए, इसके अतिरिक्त तुम्हारा तेज कम-अधिक होता रहेगा। साथ ही कुछ विशेष त्योहारों पर तुम्हारी पूजा अर्चना भी की जाएगी।”
आज हम स्पष्ट रूप से गणेशजी के श्राप का प्रभाव देख पाते हैं। अमावस्या पर चंद्रमा का अस्तित्व होते हुए भी उसकी चांदनी नहीं दिखती और पूर्णिमा के दिन संपूर्ण आकाश उसकी चांदनी से भर जाता है। इसके अतिरिक्त कई शुभ अवसरों पर चंद्रदेव की पूजा भी की जाती है।
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परंतु यह कथा (Shri Ganesh Vinayak Ji Ki Katha) यहीं पर समाप्त नहीं होती, चूंकि यह घटना भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुई थी, इसलिए उस दिन जब चंद्रमा निकलता है तो वह उपहास का कलंक ढोता है और इसलिए उस दिन के चंद्रमा को कलंकी चंद्रमा भी कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि कई भक्तों का मानना है कि जो भी उस दिन चंद्रमा को देखता है उसके जीवन में या तो विघ्न आते हैं या फिर उस पर झूठा आक्षेप लगता है।
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