भारतीय राजनीति में व्यक्तित्व का विशेष महत्व माना जाता है। इसी व्यक्तित्व ने अटल बिहारी वाजपयी और नरेंद्र मोदी को सड़क से संसद और प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाया था। इसके बाद यही व्यक्तित्व उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ और असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा की छवि को हिंदू हृदय सम्राट की भांति विशाल बनाता चला जा रहा है।
यूपी एवं असम की भांति ही कर्नाटक में एक राजनेता का नाम ही सबकुछ माना जाता है, बीएस येदियुरप्पा। उन्होंने अब अपने राजनीतिक संन्यास की घोषणा की है किंतु यह भारतीय जनता पार्टी के परिदृश्य में हानि नहीं अपितु लाभ का संकेत है, एवं इसे समझना अत्यंत आवश्यक है।
बीएस येदियुरप्पा ने विधानसभा में अपना अंतिम भाषण दिया। येदियुरप्पा ने कहा कि यह उनका अंतिम चुनाव होगा। येदियुरप्पा ने कहा कि भले ही वे संन्यास ले रहे हैं किंतु वह बीजेपी को जिताने के लिए अपनी जी जान लगा देंगे।
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अपने विदाई भाषण में येदियुरप्पा ने जमकर विपक्षी दलों पर कटाक्ष किया है। येदियुरप्पा के अचानक सीएम पद त्यागने और बसवराज बोम्मई के शपथ लेने को विपक्ष द्वारा इस बात से जोड़कर दिखाया गया कि बीजेपी ने येदियुरप्पा को अपमानित कर दिया।
कांग्रेस की सोच इस एजेंडे के पीछे यह थी कि वह येदियुरप्पा के अपमान को लिंगायत से जोड़कर अपने लिए सकारात्मक राजनीतिक माहौल स्थापित कर सकेगी। इसके विपरीत अब येदियुरप्पा ने अपने विदाई भाषण में बीजेपी के जयकारे लगाकर कांग्रेस को झटका दिया है।
येदियुरप्पा ने विधानसभा में कहा कि मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मुझे चार बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई है। इतने मौके किसी और नेता को नहीं दिए गए हैं। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सदा आभारी रहूंगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी उनका यह भावुक कर देने वाला भाषण पसंद आया। उन्होंने इस संबंध में एक ट्वीट भी किया। पीएम ने येदियुरप्पा के भाषण को बीजेपी का अनुशासन बताया है।
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनी थी किन्तु कांग्रेस और जेडीएस ने छल कर एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बना दिया। इस गठबंधन में फूट होना तय था एवं कांग्रेस के विधायक टूट कर बीजेपी के पास आ गए, इसका बड़ा कारण येदियुरप्पा का व्यक्तित्व था।
कर्नाटक में बीजेपी ने 6 महीने बाद सरकार बनाई तो येदियुरप्पा सीएम बने। उन्होंने कर्नाटक में अपने राजनीतिक अनुभव का भली भांति फायदा उठाया एवं भाजपा को सुरक्षित जोन में भेज दिया। वर्तमान में पार्टी 2023 के विधानसभा चुनाव के संबंध में पूरी तरह तैयार दिख रही है।
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बीएस येदियुरप्पा का कर्नाटक की राजनीति में नाम ही काफी है। उनके नाम पर ही बीजेपी के पाले में धड़ाधड़ वोट पड़ते हैं। येदियुरप्पा को 2008 में सीएम बनाया गया किन्तु भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच उन्होंने इस्तीफा दिया। इस दौरान थोड़े समय के लिए तो उन्होंने पार्टी भी छोड़ दी थी। येदियुरप्पा को बीजेपी ने अपना समर्थन दिया। इसी का फल था कि पार्टी को जब भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा तो येदियुरप्पा बीजेपी के साथ खड़े थे।
येदियुरप्पा के बाद कौन? बीजेपी की इस परेशानी और अपनी आयु के चलते ही येदियुरप्पा ने राजनीतिक संन्यास लिया है। विपक्षी दल चाहें जो मजाक बनाएं किंतु इसके विपरीत येदियुरप्पा का कहना कि वे बीजेपी को विजय दिलाने के लिए अवश्य काम करेंगे।
ऐसे में यह निश्चित है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में पुनः हम सभी को बीएस येदियुरप्पा बीजेपी के सबसे बड़े क्षेत्रीय स्टार प्रचारक के रूप में दिखेंगे। येदियुरप्पा का साथ दिखना अर्थात लिंगायत वोट बैंक का भाजपा की झोली में आ जाना। इसके अलावा उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा एवं अनुभव बसवराज बोम्मई के भी काम आएगी और यह येदियुरप्पा कार्ड बीजेपी के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकता है।
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