Selfiee Box Office Collection: एक समय माना जाता था कि अक्षय कुमार की फिल्म है तो सुपरहिट ही होगी- सामाजिक उन्मूलन एवं कथ्यपरक कई फिल्में उन्होंने की और वो सफल भी हुईं। फिल्में दो हो या फिर चार, सुपरहिट तो होनी ही हैं, लेकिन इन दिनों अक्षय कुमार और सफलता का मानो छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है।
फ्लॉप पर फ्लॉप दे रहे हैं अक्षय कुमार
2022 बॉलीवुड के लिए दुस्वप्न समान था, परंतु अक्षय कुमार के लिए ये वर्ष मानो साक्षात प्रलय समान था। OTT पर “कठपुतली” समेत अक्षय कुमार की 5 फिल्में प्रदर्शित हुई थी और एक भी फिल्म हिट होना तो छोड़िए, अपना बजट तक रिकवर नहीं कर पाई। अब ऐसा लगता है कि उनकी खराब किस्मत 2023 में भी ट्रांसफर हो चुकी है।
24 फरवरी को अक्षय कुमार की बहुप्रतीक्षित फिल्म “सेल्फ़ी” प्रदर्शित हुई, जो मलयालम फिल्म “ड्राइविंग लाइसेंस” का रीमेक थी। इस फिल्म में अक्षय कुमार के साथ इमरान हाशमी भी थे और सपोर्टिंग कास्ट में नुशरत भरूचा और डायना पेन्टी समेत कई अन्य कलाकार भी थे।
परंतु Selfiee Box Office Collection मूल बजट तो छोड़िए, उसका आधा भी पहले हफ्ते में नहीं जुटा पाई। इसका ओपनिंग वीकेंड कलेक्शन मात्र 10 करोड़ के आसपास था, जो पिछले 12 से 13 वर्षों में उनका सबसे कम ओपनिंग वीकेंड कलेक्शन है।
Selfiee Box Office Collection पर अक्षय कुमार ने मुखर होते हुए कहा कि वे अपनी असफलताओं से नहीं भाग सकते और कहीं न कहीं यहाँ उनकी गलती अवश्य है। इसके अलावा उन्होंने इस बात पर भी ध्यान देने को कहा कि जनता को हल्के में लेना किसी के लिए उद्योग में अच्छा नहीं होगा।
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कहने को ये बहुत अच्छा विचार है, परंतु अक्षय बाबू, आप स्वयं इस विषय पर क्या कर रहे हैं? इस वर्ष भी अगर इनकी फिल्मों सूची को देखें, तो वह काफी लंबी है। चाहे OMG का सीक्वेल हो, या फिर “सूराराई पोट्टरू” का रीमेक हो, या फिर सच्ची घटनाओं पर आधारित “कैप्सूल गिल” हो, अक्षय कुमार की फिल्में खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। अभी तो हमने महेश मांजरेकर के प्रोजेक्ट “वीर दौडले सात” पर प्रकाश भी नहीं डाला है, जहां महोदय छत्रपति शिवाजी महाराज की भूमिका को आत्मसात करने जाएंगे।
गुणवत्ता से समझौता कर रहे हैं अक्षय कुमार
तो दिक्कत क्या है, ये सब तो अच्छे प्रोजेक्ट हैं न? समस्या ये नहीं है, समस्या है अक्षय का क्वालिटी के ऊपर क्वान्टिटी यानि गुणवत्ता के ऊपर संख्या को प्राथमिकता देना। यूं तो अक्षय इस कार्य में शायद 2014 से ही लगे पड़े हैं, परंतु 2019 से ही इनके कार्य में गंभीरता की कमी दिखनी प्रारंभ हो गई थी।
“केसरी” तो किसी तरह सुपरहिट बन गई थी परंतु उसके बाद से इनके करियर का ग्राफ दिन प्रतिदिन गिरने लगा। 2019 से ही अक्षय कुमार एक भी क्वालिटी फिल्म नहीं दे पाए हैं। “सूर्यवंशी” भी केवल इसीलिए सफल हुई, क्योंकि उसमें अक्षय कुमार एकमात्र अभिनेता नहीं थे, और अजय देवगन ने अपने “सिंघम” वाले कैमियो से फिल्म की लाज रख ली थी।
क्वान्टिटी की समस्या से अक्षय की फिल्मों को क्या नुकसान हो रहा है, इसको “सम्राट पृथ्वीराज” से बेहतर कोई नहीं समझा सकता। जब आप एक ऐतिहासिक फिल्म बनाते हो, तो आप कम से कम इतना तो चाहोगे कि भाई कुछ नहीं तो इसमें सभी तथ्य सही हों, और फिल्म के मूल किरदार का शौर्य झलके।
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परंतु एक तो अक्षय कुमार सम्राट पृथ्वीराज चौहान में बिल्कुल भी जँच नहीं रहे थे, और ऊपर से इस फिल्म की शूटिंग इन्होंने मात्र 42 दिन में निपटा दी, जो बिल्कुल गर्व करने वाली बात नहीं है। “सरदार उधम” जैसी फिल्म को भी निपटाने में 8 महीने लगे थे, विकी कौशल ने कम से कम 90 दिन से अधिक सेट्स पर बिताए थे। फिल्म की विचारधारा पर लोगों का जो भी मत हो, परंतु इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि विकी कौशल कम से कम उधम सिंह जैसा दिखने का प्रयास तो कर रहे थे।
पिछली कुछ फिल्मों से अक्षय कुमार एक भी फिल्म में अपने किरदार के प्रति तनिक भी निष्ठावान नहीं दिख रहे हैं। “सम्राट पृथ्वीराज” तो छोड़िए, अक्षय कुमार ने कुछ फिल्में ऐसी चुनी, जो जानबूझकर उनकी छवि खराब करने में जुटी थी, जैसे “बच्चन पांडे”, “रक्षा बंधन” इत्यादि।
यहाँ तक कि “राम सेतु” में भी इनका लुक इतना अजीब था कि फिल्म के विचार और फिल्म की स्क्रिप्ट भी इनके किरदार की असहजता को नहीं संभाल पाई, और “वीर दौडले सात” के फर्स्ट लुक से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वे कुछ सीखे नहीं है। परंतु अक्षय कुमार को क्या ही दोष दें, जब स्वयं निर्देशक महेश मांजरेकर ने उन्हे इस रोल के लिए चुना, और “स्वतंत्र वीर सावरकर” जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट को बीच में ही छोड़कर वापिस आ गए, जिसका कार्यभार अब प्रमुख अभिनेता रणदीप हुड्डा स्वयं अपने कंधों पर ले रहे हैं।
ऐसे में अक्षय कुमार को यदि अपने करियर को लेकर तनिक भी चिंता है, तो उन्हे अविलंब दमदार स्क्रिप्ट्स चुनने पड़ेंगे, और साथ साथ में उक्त रोल को लेकर सम्पूर्ण रूप से समर्पित रहना होगा।
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