1989 : भारत और पाकिस्तान के बीच एक बहुप्रतीक्षित क्रिकेट शृंखला होने वाली थी। टीम का नेतृत्व कर रहे थे धाकड़ बल्लेबाज़ कृष्णमचारी श्रीकांत, जिनके लिए रक्षात्मक खेल बकवास था। यह दौरा एक टूर्नामेंट के रूप में कम, और इतिहास के एक सुनहरे पन्ने के रूप में अधिक याद किया जाता है। इसी टूर्नामेंट से दो भारतीय क्रिकेटरों का पदार्पण हुआ, जो अलग अलग कारणों से जाने गए। एक था मुंबई का 16 वर्षीय सचिन, जो आगे चलकर “क्रिकेट का भगवान” सचिन तेंदुलकर के नाम से जाना गया। दूसरा था शोलापुर से आया एक 21 वर्षीय तेज़ गेंदबाज़, जिसने प्रारंभ में चुना क्रिकेट, परंतु उसका भाग्य उसे कहीं और ही ले गया।
इस लेख मे जानेगे सलिल अंकोला की, और कैसे वह चला था क्रिकेट में नाम कमाने, पर प्रसिद्धि मिली टीवी और सिल्वर स्क्रीन से। तो अविलंब आरंभ करते हैं।
आपने सोशल मीडिया पर कुछ क्लिप्स और मीम्स तो देखे ही होंगे, जिनमें विभिन्न हस्तियों या उत्पादों को दिखाते हुए बोलते हैं, “इफ यू रिमेंबर दिस, योर चाइल्डहुड वाज़ ऑसम!” यानि इसे जानते हैं तो आपका बचपन शानदार था। ऐसे ही अगर इस व्यक्ति को इन दोनों रूपों में आपने देखा हो, तो विश्वास मानिए, आपका बचपन बहुत शानदार था।
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परंतु है कौन ये सलिल अंकोला? ये क्रिकेट से सिल्वर स्क्रीन एवं टीवी की ओर कैसे मुड़े? ये कथा बड़ी अनोखी है। 1968 में महाराष्ट्र के शोलापुर में जन्मे सलिल एक कोंकणी परिवार से संबंधित है, जो उत्तर कन्नड़ जिले के अंकोला ग्राम से आते थे। ये क्रिकेट में नाम कमाना चाहते थे, और इसी वास्ते ये बॉम्बे [अब मुंबई] आ पहुंचे, जहां इन्होंने घरेलू क्रिकेट में प्रभाव जमाया, और मुंबई के लिए कई बार दमदार गेंदबाज़ी की।
उन दिनों बॉम्बे लॉबी का प्रभाव सम्पूर्ण बीसीसीआई पर था, और ऐसे में सलिल अंकोला का चुना जाना स्वाभाविक था। परंतु वे अकेले नहीं थे, उनके साथ सचिन तेंदुलकर को भी चुना गया, जो 16 वर्ष के होते हुए भी बड़े से बड़े क्रिकेटर की नाक में दम कर देते थे। इनके अलावा विवेक राज़दान को भी टीम में सम्मिलित किया गया और सभी ने 1989 में अपना अंतरराष्ट्रीय डेब्यू पाकिस्तान के विरुद्ध किया।
भाग्य ने अजीब ही मोड़ लिया
परंतु यहीं से दोनों के भाग्य ने अजीब ही मोड़ लिया। सचिन देखते ही देखते भारत के सबसे प्रभावशाली क्रिकेटरों में से एक हो गए, और सलिल अंकोला का भाग्य ही मानो उनसे रूठ गया। ऐसा नहीं है कि वे बुरे प्लेयर थे, परंतु उन्हे अवसर कम मिलते, और “ड्रॉप” अधिक किया जाता था, चाहे वो खेले हों या नहीं। इस कारण से क्रिकेट में कुछ समय के लिए अनोखा टर्म भी बना, “Ankolad”, यानि वो व्यक्ति, जिसे बिना खेले दिए ही टीम से निकाल दिया जाए।
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सलिल अंकोला ने फिर भी खूब प्रयास किये, और 1993 के बहुचर्चित हीरो कप में दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध उन्होंने 33 रन देकर 3 विकेट भी चटकाए, परंतु दुर्भाग्य ने उनका साथ नहीं छोड़ा। वे 1996 के क्रिकेट विश्व कप में भी चयनित हुए, परंतु उन्हे केवल एक मैच खिलाया गया, और चूंकि श्रीलंका के विरुद्ध उस मैच में इन्होंने 5 ओवर में 28 रन लुटाए, इसलिए इन्हे पुनः बलि का बकरा बना दिया गया।
आखिर चयनकर्ताओं की बेरुखी और चोटों से तंग आकर सलिल अंकोला ने क्रिकेट से 1997 में सन्यास ले लिया। उन्होंने तब तक 1 टेस्ट और 20 वनडे इंटरनेशनल खेले थे। अब उन्होंने सिल्वर स्क्रीन की ओर अपना ध्यान लगाया। परंतु उससे पूर्व उन्होंने टीवी पर अपना भाग्य आजमाने का विचार किया। इससे पूर्व भी कुछ क्रिकेटरों ने ऐसा किया था, जैसे सुनील गावस्कर, सैयद किरमानी, संदीप पाटिल इत्यादि, परंतु कोई खास सफल नहीं हुआ।
परंतु सलिल की बात कुछ और थी। एक तो वे हृष्ट पुष्ट थे, और ईश्वर की कृपा से वे आकर्षक व्यक्तित्व के भी धनी थे, तो उन्हे अविलंब अवसर मिलने लगे, और “कोरा कागज़” से उन्होंने टीवी पर अपना नाम कमाया। उन्होंने कुछ फिल्मों में भी काम किया, जैसे “कुरुक्षेत्र”, “पिता”, “चुरा लिया है तुमने” इत्यादि, परंतु उन्हे यहाँ भी कम अवसर मिले। परंतु “Sssshhhh Koi Hai” में घोस्टबस्टर विकराल का जो रोल मिला, उसे इन्होंने हाथों हाथ लिया, और आज भी कई लोग उन्हे इसी रोल के लिए अधिक जानते हैं।
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परंतु सलिल के लिए मुसीबतें कम नहीं हुई। एक समय ऐसा आया जब मदिरा के प्रति आसक्ति के पीछे इन्हे एक रीहैब सेंटर जाना पड़ा। इन्होंने अपनी पत्नी को भी खोया, पर इन्होंने हार नहीं मानी। वे पुनः टीवी की ओर मुड़े, और इसी बीच क्रिकेट जगत से भी उन्हे बुलावा आया। आज सलिल मुंबई क्रिकेट असोसिएशन के प्रमुख चयनकर्ताओं में से एक हैं, और कभी कभी वे अभिनय में भी हाथ आजमाते रहते हैं। ऐसा अनोखा व्यक्ति बहुत ही कम देखने को मिला होगा, नहीं?
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