भारत अमेरिका संबंध: इन दिनों अमेरिका, भारत का बहुत बड़ा हितैषी बन रहा है। आर्थिक संबंधों से लेकर सामरिक संबंधों तक अमेरिका बार-बार व्यापक परिर्वतन करने को उद्यत दिखाई देता है। दूसरी ओर विपक्षी पार्टी यानी रिपब्लिकन पार्टी भी पीछे नहीं है और भारत को आकृष्ट करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है।
इस लेख में पढ़िए कैसे डेमोक्रेट पार्ठी को सत्ता से पदच्युत किए बिना भारत अमेरिका के संबंध प्रगाढ़ नहीं हो सकते।
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में अभी एक वर्ष शेष है। अमेरिकी जनता अबतक बाइडन प्रशासन से त्रस्त हो चुकी है। वह किसी भी स्थिति में डेमोक्रेट पार्टी को दोबारा सत्ता में नहीं देखना चाहती। ऐसे में विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी के सत्ता वापसी के आसार प्रबल दिख रहे हैं।
निक्की हेली का बयान
अभी हाल ही में रिपब्लिकन पार्टी से सांसद और पूर्व में नॉर्थ कैरोलिना की राज्यपाल रही निक्की हेली ने दावा किया कि सत्ता में आने पर वह अमेरिका के विरोधियों विशेषकर चीन और पाकिस्तान को दी जा रही अनावश्यक वित्तीय सहायता को बंद कर देंगी।
परंतु अपने साक्षात्कार में निक्की यहीं नहीं रुकी। उन्होंने कहा, “जब घूमफिर कर पाकिस्तान को केवल आतंकवाद ही एक्सपोर्ट करना है, तो उन्हे अरबों खरबों डॉलर भेजकर क्या मिलेगा? पाकिस्तान को वित्तीय सहायता देना अर्थात अमेरिका और उसके सहयोगियों जैसे भारत को नुकसान पहुंचाना और यह स्वीकार्य नहीं है!”
ध्यान दीजिए, यहाँ विशेष रूप से निक्की ने भारत को अमेरिका का सहयोगी यानी Ally जताने का प्रयास किया है और ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने ये बयान भारतीयों को आकृष्ट करने हेतु दिया था। वैसे भी अमेरिका में भारतवंशियों का प्रभाव ऐसा है कि उन्हे अनदेखा करने की भूल न रिपब्लिकन पार्टी करना चाहेगी और न ही सत्ताधारी डेमोक्रेट पार्टी।
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रिपब्लिकन पार्टी जितनी भी अवसरवादी हो वह कम से कम भारत की अखंडता पर प्रश्न चिन्ह लगाने एवं भारत विरोधियों को पोषित करने का खतरा मोल लेना नहीं चाहेगी। जब डोनाल्ड ट्रम्प सत्ता में थे, तो उन्होंने इस बात पर विशेष ध्यान दिया था कि भारत के विरुद्ध कोई भी ताकत आवाज़ न उठा पाए, चाहे वह चीन हो या पाकिस्तान।
परंतु जो बाइडन के सत्ता में आते ही सब कुछ उलट-पलट गया। कहने को अमेरिका का सत्ताधारी प्रशासन “भारत का हितैषी है” और वह भारत के साथ अपने संबंध अक्षुण्ण रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। परंतु बाइडन प्रशासन की कथनी और करनी में काफी अंतर है।
वैसे भी, कुछ माह पूर्व तक जो प्रशासन केवल इसलिए भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी दे रहा था, क्योंकि वह उसके इशारों पर चलने को तैयार नहीं, तो उसे कोई कैसे गंभीरता से ले सकता है? वहीं इनकी छत्रछाया में जिस प्रकार से भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा दिया गया है पिछले कुछ वर्षों में, उसके बारे में जितना कम बोलें, उतना ही अच्छा।
बाइडन से अमेरिकी ही त्रस्त
परंतु इसका निक्की हेली के बयानों से क्या संबंध? संबंध है, क्योंकि निक्की हेली रिपब्लिकन पार्टी की ओर से 2024 में राष्ट्रपति की उम्मीदवार बनने को तैयार हैं। परंतु ऐसा भी नहीं है कि उन्हे चुनौती देने वाला पार्टी में कोई नहीं है।
वे भले ही लोकप्रियता के मामले में इस समय जो बाइडन से आगे चल रही हो, परंतु उन्हे चुनौती देने के लिए उनकी पार्टी में ही कई लोग उपस्थित हैं, जैसे रॉन डे सैन्टिस [Ron De Santis], पूर्व विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो और फिर हम डोनाल्ड ट्रम्प को कैसे भूल सकते हैं? ऐसे में जिसे भी राष्ट्रपति बनना है, उसे इतना तो पता है कि उसे हर स्थिति में भारत को आकर्षित करना ही होगा, और अन्य दावेदारों से बेहतर करना होगा।
परंतु प्रश्न तो अब भी व्याप्त है: आखिर किस कारण से डेमोक्रेट पार्टी भारत अमेरिका के बीच प्रगाढ़ संबंधों में बाधक बनने का काम कर रही है? वैसे भी, जिस राष्ट्रपति की कार्यक्षमता पर उसी की पार्टी के सदस्य प्रश्न उठाने लगे तो वे दूसरे देशों में कैसे विश्वास उत्पन्न कर पाएंगे?
अब उनके प्रमुख प्रतिद्वंदी डोनाल्ड ट्रम्प को ही देख लीजिए। अपनी आक्रामकता के कारण अमेरिकी युवाओं के एक बड़े वर्ग द्वारा प्रशंसित थे। उनके द्वारा Make America Great Again जैसा अभियान चलाया गया जो अमेरिका की युवा आबादी के एक बड़े वर्ग के लिए भविष्य की आशा जैसा था, जबकि बाइडन ऐसी कोई उम्मीद, किसी व्यक्ति में नहीं जगा पा रहे।
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और अमेरिकी मीडिया ने क्या किया? अमेरिका का लिबरल मीडिया, ट्रम्प को लेकर यह भ्रम फैलाता रहा कि वह dementia की बीमारी से परेशान हैं। उन्हें सीढ़ियों पर चढ़ने से डर लगता है और वह बिना सहायता के सीढ़ी नहीं चढ़ सकते। सभी जानते हैं कि यह चर्चा बेबुनियाद थी और ट्रम्प को बदनाम करने के लिए डीप स्टेट द्वारा चलाए गए व्यापक प्रोपोगेंडावॉर का हिस्सा थी।
लिबरल मीडिया ने इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया, अब यही दरबारी मीडिया, बाइडन को लेकर मौन हो गई है। अभी तो हमने भारत को क्रायोजेनिक तकनीक से वंचित रखने में जो बाइडन की भूमिका पर प्रकाश भी नहीं डाला है, अन्यथा अनेक अमेरिकी वामपंथी कहीं मुंह दिखाने योग्य भी नहीं रहेंगे।
इसके अतिरिक्त बाइडन के चुनाव को लेकर पहले ही संदेह का माहौल रहा है। ट्रम्प और उनके समर्थक चुनाव में धांधली के आरोप लगाते रहे हैं, इसके अलावा बाइडन की नीयत को लेकर भी गंभीर सवाल उठाए गए हैं।
जैसे बाइडन द्वारा अमेरिका के मुख्य शत्रु चीन के प्रति उदार नीति अपनाना, इजराइल जैसे परंपरागत सहयोगियों को छोड़ ईरान को तवज्जो देना, आदि कई ऐसी नीतियां हैं, जो बाइडन की नेतृत्व क्षमता पर प्रश्न खड़ा करती हैं। अब इन सभी विवादों में बाइडन के स्वास्थ्य को लेकर भी एक नई चर्चा शुरू हो गई है, ऐसे में आम अमेरिकी नागरिक यही मानता है कि बाइडन अमेरिका को सम्भाल नहीं सकते।
भारत अमेरिका संबंध
इसके अतिरिक्त डेमोक्रेट पार्टी किस प्रकार से एक सशक्त संसार, विशेषकर भारत और अमेरिका के प्रगाढ़ संबंधों में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है, ये सुब्रह्मण्यम जयशंकर से बेहतर कोई नहीं समझा पाएगा। कुछ माह पूर्व एक व्याख्यान में उन्होंने कहा था, “इस्लामाबाद और वाशिंगटन के बीच संबंधों से न तो पाकिस्तानियों का भला है और न ही अमेरिकियों का। अमेरिका को पाकिस्तान से अपने संबंधों पर सोचना चाहिए कि उसे इससे क्या हासिल हुआ। मैं ये बात इसीलिए कह रहा हूं क्योंकि ये आतंकवाद विरोधी समान है। जब आप एफ-16 की क्षमता जैसे विमान की बात कर रहे हैं, हर कोई जानता है, ये आप भी जानते हैं कि विमानों को कहां तैनात किया गया है और उनका क्या उपयोग किया जा रहा है। आप ये बातें कहकर किसी को बेवकूफ नहीं बना सकते।”
ऐसे में निक्की हेली के बयानों से जहां भारत की सक्रियता 2024 के चुनावों में बढ़ती दिखाई दे रही है। वहीं दूसरी ओर ये भी स्पष्ट है कि मामला चाहे कुछ हो, अगर अमेरिका को अपनी प्रगति प्यारी है, और भारत से संबंधों में खटास नहीं आने देनी है, तो उन्हे कैसे भी करके डेमोक्रेट पार्टी को अगले चुनावों में पदच्युत करना ही होगा।
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