म्यांमार पे भारत की चुप्पी अच्छी नहीं

पीएम मोदी के “पूर्वोत्तर जोड़ो” अभियान के लिए हानिकारक होगी ये चुप्पी

कभी कभी चुप रहना भी श्रेयस्कर होता है। जब बात राष्ट्रीय अखंडता की हो, और आपको पता है कि अर्थ का अनर्थ निकाला जा सकता है, तो चुप रहने में कोई समस्या नही है। लेकिन समस्या तब उत्पन्न होती है। जब आप चुप रहने के साथ साथ कुछ अन्य समस्याओं को भी अनदेखा करने लगते हैं जिस कारण यहीं पर चुप्पी दुर्बलता में बदल जाती है, जैसा इस समय पूर्वोत्तर में दिख रहा है।

अवगत  कराउंगा कि आखिर कैसे पूर्वोत्तर में म्यांमार से उपजी एक समस्या पर भारत की “कूटनीतिक चुप्पी” उसी के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकती है। तो अविलंब आरंभ करते हैं।

हाल ही में पूर्वोत्तर में भाजपा ने क्लीन स्वीप करते हुए त्रिपुरा और नागालैंड में अपनी सत्ता पुनः स्थापित की और मेघालय में भी सत्ताधारी गठबंधन का नेतृत्व करने वाले NPP को समर्थन देकर पूर्वोत्तर में एनडीए का दबदबा बनाए रखा। एक तरफ बीजेपी की इस विजय से लोग प्रशन्न हुए तो वहीं दूसरी ओर एक अन्य राज्य की गतिविधियां पार्टी के लिए चिंता का विषय बना हुआ हैं।

दरअसल, हम मिजोरम की बात कर रहे हैं। जहां घुसपैठ की घटनाएँ दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ये भारत की सुरक्षा की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण राज्य है, ऐसी यहां घुसपैठ जैसी समस्या का उत्तपन्न होना एक चिंताजनक विषय है जिसे अनदेखा नही किया जा सकता।

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एक रिपोर्ट के अनुसार 31000 से अधिक प्रवासी शरण लिए हुए हैं, और ये आंकड़ा 27 जनवरी का है। इनमें से बहुत से लोग

म्यांमार से तो बहुत से बांग्लादेश से आए हैं। इससे भी बड़ी समस्या ये है कि भारत इस बारे में काफी समय से चुप्पी साधे हुए है, और कूटनीतिक स्तर पर भी कोई विशेष सक्रियता नहीं है।

परंतु ऐसा क्यों है, म्यांमार तो भारत का साझेदार है न? बता दें कि म्यांमार के साथ भारत का 510 किलोमीटर लंबा Porous Border है, यानि यहाँ पर दोनों देशों के बीच की आवाजाही पर अधिक रोकटोक नहीं है। इसके अतिरिक्त इसी राज्य की 318 किलोमीटर लंबी सीमा बांग्लादेश से सटी हुई है। दोनों ही देश भारत के मित्र देश माने जाते हैं, और ऐसे में कोई निर्णायक कदम उठाने से पूर्व भारत सोच विचार अवश्य करेगा।  अब कल्पना कीजिए, जब जनवरी 2023 में ही मिज़ोरम में 31000 से अधिक ‘शरणार्थियों’ की संख्या दर्ज की गई, तो उससे पूर्व कितने प्रवासी उक्त सीमाओं से घुसपैठ करने में सफल रहे होंगे।

परंतु प्रश्न तो अब भी वही है : इससे भारत को किस बात की क्षति होगी?

इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन इस बात पर उद्यत है कि एशिया,  खास तौर पर साउथ एशिया में उसका सिक्का चले, लेकिन भारत के रहते उसका ये सपना पूर्ण नहीं हो रहा है। क्योंकि भारत उसे सीधे तौर पर टक्कर दे रहा है। इतना ही नहीं बीते दो वर्षों से विदेश नीति के मामलों में काफी चीज़ों में बदलाव देखने को मिला है।

वैश्विक मंचों पर भारत की ताकत और आत्मविश्वास के साथ अपनी बात रखी है। रूस और युक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भी भारत ने आगे आकर अपना पक्ष रखा है। इससे विदेशी मामलों को लेकर भारत की छवि काफी बदल गयी है।

अब भारत बिल्कुल नहीं चाहेगा कि चीन उस म्यांमार में अपनी पैठ बढ़ाए, जहां पर वह सत्ताधारी प्रशासन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किये हुए हैं।

इसका एक कारण ये भी है कि म्यांमार के प्रति चीन के लगाव की एक बड़ी वजह बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) दिखती है। म्यांमार में जब लोकतांत्रिक सरकार थी, तो वो भी चीन के इस समझौते का हिस्सा बनने के लिए तैयार हो गई, परंतु उसने कई प्रोजेक्ट्स को मंजूरी नहीं दी थी। अब अपने प्रोजक्ट को पूरा करवाने के लिए चीन, म्यांमार की सैन्य सरकार का समर्थन करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। चीन युन्नान प्रांत से म्यांमार के हिंद महासागर तट तक एक ट्रांसपोर्ट और कम्यूनिकेशन कॉरिडोर बनाना चाहता है।

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अब ये अलग बात है कि म्यांमार चीन को घास भी नहीं डाल रहा, परंतु इस बात पर भारत सदैव आश्वस्त नहीं रह सकता । इसके अतिरिक्त जिस तादाद में पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों में घुसपैठिए लेखा जोखा जमाए हुए हैं, वो भी अपने आप में एक चिंताजनक विषय है। अभी तो बांग्लादेश द्वारा बंगाल और असम में मचाए जा रहे घुसपैठ संबंधी उपद्रव पर प्रकाश भी नहीं डाला है, अन्यथा फिर इस समस्या का एक अलग ही रूप दर्शकों के समक्ष आएगा।

अब प्रश्न ये उठता है कि जो भारत कूटनीतिक रूप से अमेरिका समेत कई शक्तिशाली राष्ट्रों को ठेंगा दिखा सकता है, जो भारत चीन को हर मोर्चे पर पटक पटक के धोने के लिए तैयार है, वो इस विषय पर चुप क्यों है? अगर इसलिए चुप है कि म्यांमार को कहीं किसी बात पर आपत्ति न हो, तो यह बड़ा ही बचकाना विचार है, क्योंकि पिछले 7 से 8 वर्षों से भारत और म्यांमार के संबंध काफी सुदृढ़ रहें है। यहाँ तक कि आतंक रोधी ऑपरेशनों में भी म्यांमार ने खुलकर भारत की सहायता की थी।

चिंता एक हद तक स्वाभाविक लगती है, पर उस चिंता के पीछे चुप्पी साधना और प्रवासियों की घुसपैठ, चाहे जिस भी क्षेत्र में हो, उसे अनदेखा करना भला कहाँ की समझदारी है, कोई बताने का कष्ट करेगा? मिज़ोरम में जो कुछ अभी हो रहा है, वह न केवल सामरिक, अपितु सांस्कृतिक दृष्टि से भी भारत के लिए काफी आशंकाप्रद है, और भारत की अनावश्यक चुप्पी इस स्थिति को और हानिकारक बना सकती है।

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