Bheed trailer review: क्यों “भीड़” के नए ट्रेलर पे लिबरल मचा रहे हाय तौबा!

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Bheed trailer review

“मुझे हैरानी नहीं होती जब कुछ लोग मुझे एंटी नेशनल बोलते हैं। मुझे अपना पुराना भारत पसंद है, और मैं उसके लिए कुछ भी करने को तैयार है”

Bheed trailer review: विजन हो तो अनुभव सिन्हा जैसा। रोज़ नहा धोकर एक फिल्म बनाते हैं, जिसमें से आधा निवेश तो क्रिटिक्स से अच्छे रिव्यू निकलवाने में खर्च हो जाता है, और बाकी जनता से मिले अपशब्दों से हुई पीड़ा के लिए थेरेपी कराने में। “आर्टिकल 15” को छोड़कर लगभग हर फिल्म पे इन्होंने मुंह की खाई है, परंतु बेशर्म माने कैसे, फिर आ जाते हैं एक और घटिया फिल्म लेकर।

इस लेख में जानिये “Bheed” के trailer के review के बारे में , और क्यों उसके वामपंथी हाथ धोके पड़े हुए हैं!

Bheed trailer review: भीड़ के नए ट्रेलर पर विवाद

हाल ही में “भीड़” नामक फिल्म का ट्रेलर (Bheed trailer review) रिलीज़ हुआ। इसे निर्देशित किया है विवादित फिल्मकार अनुभव सिन्हा ने, और इसमें प्रमुख भूमिकाओं में है राजकुमार राव, आशुतोष राणा, पंकज कपूर, भूमि पेडनेकर, दिया मिर्ज़ा, कृतिका कामरा इत्यादि ने। फिल्म कोविड के कारण भारत में उत्पन्न हुए संकटों पर आधारित है, और 24 मार्च को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होगी।

परंतु जैसा कि लगभग हर अनुभव सिन्हा फिल्म के साथ होता है, इस फिल्म के ट्रेलर मात्र से ही विवाद उत्पन्न हो गया है। मूल ट्रेलर तो 10 मार्च के आसपास आया था, पर नया ट्रेलर उसके कुछ ही दिनों बाद प्रसारित हुआ है। इसमें से कुछ सीन हटाए गए हैं, जिसपे लगभग हर वामपंथी खून के आँसू रोने लगा है। दिग्विजय सिंह जैसे नेता तो इसे “लोकतंत्र की हत्या” बताने पर तुल गए हैं।

Bheed trailer review: समस्या क्या है?

परंतु समस्या आखिर किस बात की है? असल में भीड़ में कोविड 19 से उत्पन्न सामाजिक एवं राजनीतिक समस्याओं पर प्रकाश डाला गया, और लॉकडाउन में जो मजदूर संकट उत्पन्न हुआ, उसपे भी चर्चा की गई।

अब फिल्म अनुभव सिन्हा की है, तो स्वाभाविक है कि एजेंडा कूटकूटकर भरा होगा। परंतु Bheed के new trailer में एजेंडा का इतना ओवरडोज़ हो गया कि जिसने आज तक अनुभव की एक भी फिल्म न देखी हो, वो भी बोल पड़े, “भाईसाब ये कुछ ज़्यादा नहीं हो गया?”

कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन और उससे उत्पन्न समस्याओं को चित्रित करती फिल्म में सबसे पहला एजेंडावाद यही था कि मजदूरों पर हो रहे अत्याचारों को सीधा 1947 के विभाजन से तुलना कर दी गई। ठीक है, आपको एक समस्या की गंभीरता बतानी है, परंतु ऐसी भी क्या चिंता थी कि मजदूरों के प्रवास की तुलना उस घटना से की गई, जहां केवल घर नहीं छूटे थे। अनुभव सिन्हा और उनकी टीम को पता भी है कि उस विभाजन में लाखों हिंदुओं और सिक्खों ने क्या क्या खोया था? पर छोड़िए, उनसे क्या ही आशा करें, जो अपने लाभ के लिए मूल तथ्यों से ही छेड़छाड़ कर दे, जैसे “आर्टिकल 15” में किया गया था।

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परंतु बात केवल इतने पे नहीं रुकी। स्थानीय प्रशासन, विशेषकर पुलिस को ऐसे दिखाया गया है, जैसे कि सीधा 1919 के पंजाब से इम्पोर्ट किये गए हों, जिनमें न कोई दया है, न कोई मानवीय संवेदना। माना कि हमारी पुलिस की छवि बहुत अच्छी नहीं है, पर कोविड 19 के समय वे भी कोई मटर नहीं छील रहे थे। इसपर पीएम मोदी द्वारा लॉकडाउन की घोषणा को ऐसे पेश किया गया, जैसे माइकल ओ डवायर पंजाब में मार्शल लॉ की घोषणा कर रहा हो।

Bheed trailer review: हिपोक्रेसी की भी सीमा होती है

इन्ही सब कारणों के पीछे भीड़ के ट्रेलर से कुछ अंश काटे गए, और सुनने में ये भी आ रहा है कि टी सीरीज़ इसके प्रोमोशन से कोई मतलब नहीं रखना चाहती, क्योंकि नए ट्रेलर में टी सीरीज़ का छोड़िए, “निर्माता” भूषण कुमार का भी कोई उल्लेख नहीं है।

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इसके बाद भी कुछ प्राणी ऐसे हैं, जो इस सम्पूर्ण प्रकरण को मोदी की साजिश मानते हैं, और इसको लोकतंत्र की हत्या कहते फिरते हैं। ये वही लोग हैं, जो चाहते थे कि “द कश्मीर फाइल्स” को यूट्यूब पर डाल दें, और “RRR” जैसी फिल्मों को ऑस्कर में इसलिए नहीं जाने देना चाहते थे, क्योंकि ये रिग्रेसिव है, “हिन्दुत्व” को बढ़ावा देती है! इस हिपोक्रेसी का कोई अंत होगा कि नहीं?

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