Chinese FDI: एक समय था, जब भारत गलती छिकना भी परे, तो उसे वैश्विक समुदाय, विशेषकर पश्चिमी जगत से “आज्ञा” लेनी पड़ती थी, और कभी कभी तो माफी मंगनी पड़ती। परंतु विगत कुछ वर्षों में भारत के स्वभाव में जो परिवर्तन हुआ है, उतनी तेज़ी से तो रजनीकान्त के फिल्मों में भी नहीं होता था। इसका प्रभाव केवल कूटनीतिक रूप में ही नहीं, वित्तीय रूप से भी दिखाई पड़ता है, और ये बात चीन से बेहतर कौन जानता है।
इस लेख में पढिये कि कैसे भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने चीन (Chinese FDI) को आर्थिक चोट पहुंचाने के लिए कमर कस ली है।
चीन और हाँगकाँग के कई Chinese FDI प्रस्ताव निलंबित
हाल ही में लोकसभा को संबोधित करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि चीन और हांगकांग (Chinese FDI) से ताल्लुक रखने वाले 54 एफडीआइ प्रस्ताव सरकार के पास विचाराधीन हैं। दरअसल, मार्च, 2020 में जब कोरोना महामारी ने भारत में पैर पसारे तो चीनी कंपनियों द्वारा घाटे में चल रहीं भारतीय कंपनियों को अधिग्रहण से रोकने के लिए सरकार ने 18 अप्रैल 2020 को एफडीआइ नीति में परिवर्तन किए थे।
नई नीति के तहत भारत के साथ जमीनी सीमा साझा करने वाले देशों से एफडीआइ के लिए सरकारी मंजूरी को अनिवार्य कर दिया।
इससे पहले गैर-महत्वपूर्ण क्षेत्रों में इनमें से कुछ प्रस्तावों को स्वचालित मार्ग के तहत मंजूरी दी जा सकती थी। एक अन्य के प्रश्न के उत्तर में वित्त मंत्रालय ने कहा कि बैंकिंग चैनल में पाए गए नकली नोटों की संख्या 2016-17 में 7.62 लाख नोटों से घटकर 2020-21 में 2.09 लाख रह गई।
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Chinese FDI: ये पहला मामला नहीं….
परंतु ये पहला ऐसा मामला नहीं है। कुछ ही समय पूर्व India Cellular and Electronics Association ने इलेक्ट्रानिक्स के भावी उत्पादकों को चीन के साथ किसी भी प्रोजेक्ट पर एग्रीमेंट करने से पूर्व दस बार सोच लेने को कहा था ।
इसके साथ ही ICEA ने चीन की औपनिवेशिक मानसिकता के प्रति सचेत करते हुए कहा कि भारतीय मोबाइल में छोटे से छोटे कंपोनेन्ट के निर्माण में चीन ने अच्छा खासा नियंत्रण जमा रखा है। इसके अतिरिक्त जब EMS के रूप में ताइवान और अमेरिका जैसे देशों की उच्चतम तकनीक उपलब्ध है, तो चीन से विशिष्ट सहायता प्राप्त करने की क्या आवश्यकता?
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न घर का न घाट का….
जब से चीन ने संसार में कोविड फैलाया है, तब से उसने अपने आर्थिक विनाश को निमंत्रण दिया है। ये भारत के परिप्रेक्ष्य से बेहतर समझी जा सकती है।
वो कैसे?
ज्यादा समय की बात नहीं है, भारतीय खिलौने बाजार में एक समय चीन का एकछत्र राज चलता था। तब भारत में 80 फीसदी से अधिक खिलौने चीन से आयात किए जाते थे। जो अधिकरत चीन से ही आते थे लेकिन सरकार ने इसका तोड़ ढूंढ़ निकाला।
सरकार ने एक तरफ आयातित खिलौने पर क्वालिटी कंट्रोल लगाया दूसरी तरफ घरेलू इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए विशेष PLI स्कीम निकाली और DPIIT ने सतत प्रयास किया। इससे हमें चीनी खिलौने के एकाधिकार को समाप्त करने में सफलता प्राप्त हुई।
जुलाई 2022 में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में खिलौनों के आयात में 70 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई।
केवल इतना ही नहीं भारत अब दूसरे देशों को भी अपने बनाए गए खिलौने का निर्यात कर रहा है। मंत्रालय के अनुसार इन तीन सालों में खिलौने के निर्यात में 61 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली है।
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इसके अतिरिक्त “आत्मनिर्भर भारत” की पहल चीन के लिए हानिकारक सिद्ध हुई है। कभी जो चीन हमारे “मेक इन इंडिया” अभियान का मज़ाक उड़ाता था, आज उसी चीन को भारत के समक्ष हाथ फैलाकर व्यापार की याचना करनी पड़ रही है।
2022 में अप्रैल से अक्टूबर के बीच भारत और चीन के बीच व्यापार घाटे का अंतर 51.5 बिलियन डॉलर का रहा है। 9 दिसंबर को यह जानकारी भारत सरकार ने संसद में दी। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने जो आंकड़े संसद में प्रस्तुत किए हैं, उनके अनुसार 2020-21 में जहां व्यापार घाटा 44.03 बिलियन डॉलर था वहीं अब 2021-22 में व्यापार घाटा बढ़कर 73.31 बिलियन डॉलर हो गया है।
आंकड़ों के मुताबिक इस वित्तीय वर्ष यानी अप्रैल से लेकर अक्टूबर तक 60.27 बिलियन डॉलर का आयात चीन से हुआ है, वहीं निर्यात केवल 8.77 बिलियन डॉलर का हुआ है।
पीयूष गोयल ने संसद में बताया कि भारत से चीन को 2014-15 में 11.93 बिलियन डॉलर का निर्यात किया था जोकि 2021-22 में बढ़कर 21.26 बिलियन डॉलर हो गया। पिछले 6 वर्ष में यह 78.2 फीसदी की बढ़ोतरी है।
वहीं दूसरी तरफ चीन से 2014-15 में 60.14 बिलियन डॉलर का आयात हुआ था जोकि 2021-22 में बढ़कर 94.57 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया। अभी तो हमने CAIT के स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के अभियानों पर प्रकाश भी नहीं डाला है, अन्यथा आपको अंदाज़ा हो जाएगा कि पिछले तीन वर्षों में कितने लाख करोड़ का राजस्व चीन के हाथों में जाने से भारत ने बचाया है।
ऐसे में निर्मला सीतारमण का ध्येय स्पष्ट है : जब तक चीन का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर से हट नहीं जाएगा, तब तक वे चैन से नहीं बैठेगी।
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