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ऐसे चलाएंगे अमेरिका....

हिंदी की एक प्रसिद्ध कहावत है कि जिनके घर शीशे के बने होते हैं वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते.. लेकिन, विश्व की कुछ स्वघोषित महाशक्तियां हैं जिनके मस्तिष्क में इन चंद शब्दों का प्रवेश हो ही नहीं सकता।  लेकिन परिस्थितियां हैं कि बार बार उन्हें उनकी सामर्थ्य से अवगत कराती रहती हैं। आज हम बात कर रहे हैं अमेरिका की।

इस लेख में पढ़िए  कि कैसे दूसरों देशों की आंतरिक विषयों का विश्लेषण करने वाले अमेरिका का एक बड़ा बैंक दिवालिया हो गया है और स्थिती ये हो चुकी है कि बैंक पर ताला जड़ना पड़ा है।

अमेरिका पूरी दुनिया को तमाम मुद्दों को लेकर ज्ञान बांटता हैं। वो विश्व को अमेरिका से सीखने की सलाह भी देता है। सर्वे करने के नाम पर भारत को पोषित और कुपोषित बताना और आंकलन करना अमेरिका की पुरानी आदत रही है।

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हंगर इंडेक्स, फ्रीडम रैंक, हैप्पीनेस रैंक जैसे कई कथित सर्वे हैं जिनके आधार पर भारत को नीचा  दिखाने का प्रत्यत्न पश्चिमी देशो ने भरपूर किया है। परंतु दूसरों को ज्ञान देने से अधिक अमेरिका के लिए लाभकारी ये होगा कि वो अपने आप  पर अधिक ध्यान केंद्रित करे।

ऐसा क्योन?

ऐसा इसलिये कि, दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल देने वाले और दूसरे देशों को लेकर अपनी मनमौजिया रिपोर्ट जारी करने वाले अमेरिका के एक बड़े बैंक की लुटिया डूब गई है। 

सिलिकॉन वैली बैंक पर लटका ताला 

आपको बाताते चले कि, दरअसल, अमेरिका का एक बड़ा बैंक दिवालिया हो गया है। अमेरिकी रेगुलेटर्स ने देश के बड़े बैंकों में शुमार सिलिकॉन वैली बैंक को बंद करने का निर्देश दिया हैं। इस बैंक को बंद करने का निर्देश देने के पीछे की वजह है वित्तीय स्थिति  का खराब होना।

दुनिया की कथित महाशक्ति अमेरिका का यह बैंक भारी आर्थिक संकट से जूझ रहा है,एवं इस बैंक के दिवालिया होने से यूएस में बैंकिंग संकट गहराता प्रतीत हो रहा है।

अमेरिका का 16वां सबसे बड़ा बैंक है सिलिकॉन वैली बैंक

बता दें कि अमेरिका में सिलिकॉन वैली बैंक 16वां सबसे बड़ा बैंक है और इसके पास 210 अरब डॉलर की संपत्ति है। पिछले कुछ समय से बैंक की वित्तीय हालात खराब होती चली गई। इस बैंक के दिवालिया होने का असर दुनिया की तमाम इकोनॉमी पर पड़ेगा।

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इसकी एक झलक शुक्रवार को शेयर बाजार में भी देखने को मिल गई है। जब अमेरिका समेत कई ग्लोबल मार्केट में भारी गिरावट देखने को मिली। सिलिकॉन वैली बैंक की पैरेंट कंपनी SVB फाइनेंशियल ग्रुप के शेयरों में 70% तक की गिरावट आ गई है। यह अमेरिकी बैंकिंग सिस्टम के लिए एक बहुत बड़ा झटका है।

भारत के 20 स्टार्टअप्स में है बैंक का निवेश 

परंतु केवल अमेरिका में ही त्राहिमाम नहीं मचा है। इसके दिवालिया होने का प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा क्योंकि सिलिकॉन वैली बैंक ने भारत में 20 स्टार्टअप में निवेश किया है। स्टार्टअप रिसर्च एडवाइजरी Tracxn के मुताबिक साल 2003 में भारतीय स्टार्टअप में निवेश किया था।

हालांकि, इनमें निवेश की गई राशि की स्पष्ट जानकारी सामने नहीं आई है। पिछले साल अक्टूबर में भारत की स्टार्टअप कंपनियों ने इस बैंक से करीब 150 मिलियन डॉलर की पूंजी जुटाई थी।

भारत में सबसे अहम निवेश एसएएएस-यूनिकॉर्न आईसर्टिस में है। इसके अलावा ब्ल्यूस्टोन, पेटीएम, one97 कम्युनिकेशन्स, Paytm मॉल, नापतोल, कारवाले, शादी, और लॉयल्टी रिवार्ड्ज जैसे स्टार्टअप में बैंक का निवेश है।

हालांकि, संकट के बीच इस बैंक की सभी एक्टिविटीज 13 मार्च से शुरू हो जाएगी और FDIC पूरे बैंकिंग सिस्टम पर अपनी नजर रखेगी।

आपको बता दें कि इससे पहले, एफडीआईसी से बीमित आखिरी बैंक अक्टूबर 2020 में डूबा था, जब अलमेना स्टेट बैंक पर ताला लगा दिया गया था। ऐसे में अमेरिका में एक बार बैंकिग संकट आने आसार दिख रहे हैं। इससे पहले साल 2008 में अमेरिका को बैंकिंग फर्म लेहमन ब्रदर्स के वित्तीय संकट  के चलते बैंकिंग के सबसे बड़े क्राइसेस से गुजरना पड़ा था।

इस वजह से पूरी दुनिया में मंदी का असर देखने को मिला था। दिवालिया होने से पहले लेहमन ब्रदर्स समेत अमेरिका के कई बैंकों ने उस दौर पर खूब लोन बांटे थे साल 2001 से 2006 के बीच अमेरिकी रियल एस्टेट कंपनियों को जमकर लोन दिए गए। उस वक्त अमेरिकी रियल एस्टेट बाजार शिखर पर था जिस वजह से कंपनियों को उनके एसेट्स से ज्यादा लोन दे दिए गए। लेकिन उस उपरांत  मंदी आई, कंपनियां बर्बाद होने लगी और बैंकों का कर्ज डूबने लगा.

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साल 2008 में लेहमन  ब्रदर्स ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया था। अब ऐसे में सिलिकॉन वैली बैंक के बंद होने के बाद लोगों को 2008 की याद आने लगी है।

खैर यही अमेरिका है जो दूसरे देशों को गरीब, भूखमरी का शिकार यानि हर दूसरे  देशों

के हालातों को बद्तर बताने के लिए अग्रणी श्रेणी में खड़ा मिलता है।

उसकी तथाकथित सर्वे करने वाली एंजेसियां भी सूची निकालने में थोड़ी भी देरी नही करती है। हालांकि भारत की कुछ वामपंथी और तथाकथित बुद्धिजीवियों को छोड़ दें तो भारत इन रिपोर्टों को जरा भी भाव नही देता है। क्योंकि इन रिपोर्टों का धरातल के सत्य से कोई नाता नही होता है। इन रिपोर्टों में एंजेड़े से अतिरिक्त कुछ भी नही मिलता। यही कारण है कि अमेरिका का प्रभुत्व लगातार कम होता जा रहा है।

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