मराठा साम्राज्य के वीर पुरुषों के बलिदानों की कहानियां हम बचपने सुनते आ रहे हैं। भारत को विदेशी आक्रांताओं के चंगुल से छुड़ाने के लिए इस सम्रराज्य के वीरों का अतुलनीय योगदान रहा है। आज हम आपको उस शख्यियत के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने पानीपत के युद्ध के पश्चात मराठा साम्राज्य पूरी तरह से चरमराई आर्थिक व्यवस्था को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हम बात कर रहे हैं नाना फडणवीस की।
मराठा परिसंघ को एकसूत्र में रखने में नाना फडणवीस की भूमिका
नाना फडणवीस का जन्म 1742 ई. में एक ब्राह्ण परिवार में हुआ था। उनके बचपन का बालाजी था। नाना फडणवीस पेशवा प्रशासन के समय में मराठा साम्राज्य के मंत्री और राजनेता थे। उन्होंने मराठा साम्राज्य की शक्ति को एक नेतृत्व के नीचे एकत्र करने का सफल प्रयास किया था। वह अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता के लिये बहुत प्रसिद्ध थे। पेशवा माधवराव प्रथम के द्वारा नाना फडणवीस को पेशवा की सेवा में नियुक्त किया गया था।
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आपको बता दें कि पानीपत के तृतीय युद्ध के बाद 1773 ई. में नारायणराव पेशवा की हत्या करा कर उसके चाचा राघोबा ने जब स्वयं गद्दी हथियाने का प्रयत्न किया था तो नाना फडणवीस उनके विरुध खड़े हो गए थे। नाना फडणवीस ने नारायणराव के मरणोपरान्त उनके पुत्र माधवराव नारायण को 1774 ई. में पेशवा की गद्दी पर बैठाकर राघोवा की चाल विफल कर दी थी। आंतरिक विघटन और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की बढ़ती ताकत के बीच नाना फडणवीस ने मराठा परिसंघ को एकसूत्र में रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
नाना फडणवीस ने नाजूक हालातों में दिया पेशवा को सहारा
एक समय आया जब पानीपत के युद्ध के बाद मराठा साम्राज्य पूरी तरह से चरमरा गया था। राज्य की आर्थिक व्यवस्था बेहद हीन हो गई थी। ऐसे में राज्य की कमान पेशवा माधवराव के हाथ में थी। इन हालात में नाना फडणवीस ने पेशवा को सहारा दिया। उन्होंने शासन प्रबंध को फिर से दुरुस्त करने में अहम भूमिका निभाई। नाना फडणवीस के मार्गदर्शन में धीरे-धीरे पेशवा ने राज्य के राजकोश को पुन: बहाल कर लिया। तत्पश्चात उनके दिशानिर्देशों में मराठा सेना ने हैदराबाद के निजाम पर जीत हासिल की, जिसने मराठा साम्राज्य के सम्मान और प्रतिष्ठा को फिर कायम किया।
नाना को अंग्रेज मानते थे बड़ा खतरा
नाना फडणवीस ने दृष्टि गढ़ाए रखने के लिए जसूसों के एक विभाग का गठन किया था। अंग्रेज नाना फडणवीस को एक बड़े खतरे के रुप में देखते थे। इसलिए उन्होंने कई बार फडणवीस को बदलने की बात पेशवा से कही, मगर वो इसमे सफल नही हो पाए। इसी बीच मराठा साम्राज्य के गद्दार शासक रघुनाथ राव ने एक बार फिर से पेशवा बनने की कोशिश की। इसके लिए उसने अंग्रेजी सेना की मदद ली और मराठों पर हमला बोल दिया। लेकिन नाना फडणवीस ने चतुराई दिखाते हुए निजाम और भोंसले से संधि कर ली।
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1775 में मराठों और अंग्रेजों के बीच सूरत की संधि हुई, जिसके बाद भी अंग्रेजों ने कई बार मराठों को हराने की कोशिश की, लेकिन नाना की कूटनीति के आगे उनकी एक न चली और उन्हें हर बार मुंह की खानी पड़ी। नाना फडणवीस की रुची किसी पद या उपाधि की नहीं थी, वे तो केवल मराठा साम्राज्य की उन्नति चाहते थे। 13 मार्च, 1800 ई. में मराठा साम्राज्य के इस शक्तिशाली स्तंभ यानि नाना फडणवीस की मृत्यु हो गई और इसके साथ ही मराठा साम्राज्य का पतन शुरू हो गया।
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