के सुभाष चंद्रबोस: वो कहते हैं न, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती….
13 मार्च 2023 को प्रात: काल इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अनेक भारतीयों को देखने को मिला। जिस फिल्म को केवल इसलिए आलोचना का सामना करना पड़ा, क्योंकि उसने भारत की वास्तविकता चित्रित करने के नाम पर भारतीय संस्कृति का उपहास नहीं उड़ाया, उसने अब ऐसा उत्तर दिया है कि वर्षों तक कोई नहीं भूल पाएगा। बिना किसी विदेशी सहायता के, भारत ने बहुचर्चित अकादेमी अवार्ड्स यानि ऑस्कर में अपना प्रथम पुरस्कार कमाया है, वो भी एक तेलुगु गीत के माध्यम से। परंतु बहुत कम लोग इस बात से परिचित हैं कि इस गीत के रचयिता कभी इस क्षेत्र में आना ही नहीं चाहते थे।
इस लेख मे आपको परिचित कराउंगा के सुभाष चंद्रबोस, और कैसे पार्शव गायन से गीतकार बनने के निर्णय ने उन्हे आज अद्वितीय सफलता दिलाई है। तो अविलंब आरंभ करते हैं।
“नाटू नाटू” को मिली अद्वितीय सफलता
हाल ही में भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरवान्वित करते हुए एस एस राजामौली की फिल्म “रौद्रम रणम रुधिराम”, यानि RRR ने सर्वश्रेष्ठ मौलिक गीत के लिए ऑस्कर पुरस्कार अर्जित किया है। “नाटू नाटू” नामक गीत के लिए गीतकार के एस चंद्रबोस और संगीतकार एमएम कीरावाणी को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसके लिए उन्होंने लेडी गागा, रिहाना जैसे चर्चित पॉपस्टार्स को पछाड़ते हुए ये पुरस्कार प्राप्त किया।
ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे पूर्व के ऑस्कर पुरस्कार अधिकतम विदेशी फ़िल्मकारों द्वारा रचित प्रोजेक्ट्स के लिए भारतीय कलाकारों को मिलते थे, और इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि RRR में ऐसा कोई तत्व नहीं था, जिसके आधार पर पाश्चात्य जगत हमारा उपहास उड़ाया करता था।
कैसे गायक से गीतकार बने के सुभाष चंद्रबोस
परंतु जिस फिल्म को भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में भेजने को कुछ स्वघोषित फिल्म हस्ती तैयार नहीं थे, उसने इतना बड़ा सम्मान बिना किसी विशेष समर्थन के कैसे प्राप्त किया? इसके पीछे दो कारण थे : निर्देशक एस एस राजामौली की भारतीय सिनेमा को एक नए रूप में चित्रित करने की जिजीविषा, एवं इस फिल्म का अद्भुत संगीत। निस्संदेह एमएम कीरावाणी ने अपने संगीत से इतना तो सिद्ध किया है कि ए आर रहमान के अतिरिक्त भी इस देश में उच्चतम संगीतज्ञों की कमी नहीं है। बस ज़रूरत है तो एक प्रयास की जिससे ऐसा हीरा तराशा जा सके।
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परंतु ये गौरव के सुभाष चंद्रबोस द्वारा रचित बोल के बिना उतना भी सरल नहीं था। इनका वास्तविक नाम कानुकुंतला सुभाष “चंद्रबोस” है, जिनका जन्म 10 मई 1978 को वर्तमान तेलंगाना के भूपालपल्ली जिले के चालागरीगा ग्राम में हुआ था। इनके पिता उसी ग्राम में प्राइमरी स्कूल के टीचर थे। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा इसी ग्राम से पूरी करने के बाद एलेट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक इंजीनयरिंग में इन्होंने अपना स्नातक हैदराबाद में स्थित जवाहरलाल नेहरू प्रादयौगिकी विश्वविद्यालय से पूर्ण किया।
अब चंद्रबोस संगीत में काफी रुचि रखते थे, परंतु उनका प्रथम चॉइस गीतकार बनना नहीं था। वे एसपी बालासुब्रह्मण्यम, के जे येसुदास की भांति एक पार्शव गायक बनने आए थे, जिसके लिए उन्होंने दूरदर्शन को अपना माध्यम बनाया। परंतु शीघ्र ही इन्हे समझ में आ गया कि गायन के क्षेत्र में वे लंबे समय तक नहीं चल पाएंगे।
तेलुगु फिल्म उद्योग से ऑस्कर की अद्भुत यात्रा
ऐसे में के सुभाष चंद्रबोस ने फिर गीत लेखन को अपना करियर बनाया। मात्र 17 वर्ष की आयु में इन्होंने “ताज महल” नामक फिल्म के माध्यम से 1995 में अपना फिल्मी डेब्यू किया। इनके कार्य से प्रभावित होकर इनके निर्देशक मुप्पलानेनी शिवा ने इनके मार्गदर्शक की भूमिका निभाई, और इनके अनुरोध पर के. सुभाष ने चंद्रबोस को अपना उपनाम बनाया, और शीघ्र ही इसी नाम से उन्हे संबोधित किया जाने लगा।
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इसके बाद के सुभाष चंद्रबोस ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इन्होंने लगभग 850 फिल्मों के लिए 3600 से भी अधिक गीत लिखे। ये एस एस राजामौली के चहेते गीतकारों में से एक रहे हैं, जिनके प्रथम फिल्म “स्टूडेंट नंबर 1” से लेकर “विक्रमाकुडु”, “मगधीरा” जैसे कई फिल्मों को इन्होंने अपने गीतों से सजाया। इतना ही नहीं, 2021 में प्रदर्शित “पुष्पा” के कई गीत भी इसी व्यक्ति ने लिखे।
अब ऐसा भी नहीं है कि चंद्रबोस से पूर्व किसी ने भी भारतीय संगीत के लिए ऑस्कर नहीं कमाया। पंडित रविशंकर को 1983 में सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिए नामांकित किया गया, और गुलज़ार एवं ए आर रहमान को सर्वश्रेष्ठ मौलिक गीत एवं सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिए 2009 में सम्मानित भी किया गया। परंतु दोनों ही प्रोजेक्ट, “गांधी” एवं “स्लमडॉग मिलियनेयर” मूल रूप से ब्रिटिश प्रोजेक्ट थे। ऐसे में चंद्रबोस की यह विजय न केवल अद्वितीय है, अपितु सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भी।
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