Atiq Ahmed gets life term: कौन है अतीक अहमद और आज योगी सरकार के नाम से क्यों काँपता है?

समय समय की बात है....

Atiq Ahmed gets life term

Atiq Ahmed gets life term: एक समय उत्तर प्रदेश केवल तीन चीज़ों के लिए प्रसिद्ध था : ताज महल, राजनीति और अपराध। राजनीति के अपराधिकरण का जो असर उत्तर प्रदेश पर पड़ा है, उतना शायद ही किसी अन्य प्रांत पर पड़ा होगा। इसका प्रमुख कारण था कुछ अवसरवादी राजनीतिज्ञों द्वारा अपराधियों का सार्वजनिक संरक्षण, जिसके बल पर यूपी में वे खुलेआम उपद्रव फैलाते थे, और अतीक अहमद इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है।

इस लेख में जानिये अतीक अहमद के सम्पूर्ण इतिहास को, और कैसे इलाहाबाद के गलियारों से कभी वे यूपी की सत्ता को अपने इशारों पर नचाते थे।

Atiq Ahmed gets life term: अतीक को हुई उम्रकैद

हाल ही में अतीक अहमद को उसके कर्मों का परिणाम भुगतना पड़ा है। 17 वर्ष पुराने उमेश पाल अपहरण कांड में MP एमएलए कोर्ट ने इन्हे आजीवन कारावास की सजा (Atiq Ahmed gets life term) सुनाई है।

अपहरण मामले की सुनवाई को लेकर अतीक अहमद को गुजरात के साबरमती जेल से प्रयागराज लाया गया, तो वहीं उसके भाई अशरफ को बरेली सेंट्रल जेल से प्रयागराज लाया गया। दोनों भाइयों को नैनी जेल के हाई सिक्योरिटी बैरक में रखा गया।

बता दें कि वर्ष 2006 में 28 फरवरी को बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के मामले में गवाह उमेश पाल को तत्कालीन सांसद अतीक अहमद, उसके भाई पूर्व विधायक खालिद अजीम उर्फ अशरफ अपने साथियों के साथ अपहरण कर अपने कार्यालय में ले गए थे।

उमेश पाल ने अतीक अहमद सहित पांच लोगों के खिलाफ केस दर्ज करवाया था। इस मामले में मुख्य आरोपी पूर्व सांसद अतीक अहमद, उसका भाई पूर्व विधायक खालिद अजीम और फरहान जेल में बंद हैं। जबकि दिनेश पासी, खान सौलत हनीफ, जावेद उर्फ बज्जू, आबिद, इसरार, आशिक उर्फ मल्ली और एजाज अख्तर जमानत पर बाहर हैं।

अतीक अहमद का विस्तृत और घिनौना इतिहास

परंतु अतीक का ऐसा भी क्या प्रभुत्व था, जिसके पीछे प्रयागराज में लोग उसका नाम लेने से पूर्व कई बार सोचते थे। 1962 में 10 अगस्त को इसका जन्म हुआ। इसके पिता फिरोज़ तांगा चलाकर परिवार संभालते थे। लेकिन अतीक के शौक कुछ और ही था।

कभी पहलवानी में अपना हाथ आजमाने वाले अतीक ने 1989 में राजनीति में अपना कदम रखा।

रंगदारी, अपहरण, लूटपाट, मानव तस्करी, आप जो बोलिए, इसने सब में हाथ आजमाया था। परंतु ये इतना स्वच्छंद होकर ऐसी बर्बरता कैसे कर सकता था? कारण स्पष्ट था : राजनीतिक संरक्षण।

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यादव परिवार को कभी क्षमा नहीं किया जाएगा

ये वो समय था, जब पूर्वांचल के समीकरण, आर्थिक और सामाजिक, दोनों तरह से बदल रहे थे। यहाँ पर पहले से ही मुख्तार अंसारी जैसे अपराधियों ने अपनी पैठ जमानी प्रारंभ कर दी थी। अब ऐसे में अतीक कैसे पीछे रहते। उसने इलाहाबाद [अब प्रयागराज] में अपना गढ़ बनाया, और वहीं से उसने लोगों में अपने नाम का आतंक फैलाना प्रारंभ किया।

कल्पना कीजिए कि “रईस” फिल्म वास्तव में हो रही हो, और उसका नायक खूब मोटा और खौफनाक हो। अतीक अहमद यही व्यक्ति था। जो काम गुजरात में एक समय अब्दुल लतीफ़ किया करता था, वही काम पूर्वी उत्तर प्रदेश में ये व्यक्ति धड़ल्ले से करता था।

इनको मुलायम सिंह यादव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त था, इसीलिए लोग चाहकर भी इनके विरुद्ध कड़ा एक्शन नहीं ले सकते थे।

कुछ ही समय पूर्व इस पर अपने विचार साझा करते हुए यूपी के पूर्व डीजीपी ओमप्रकाश सिंह ने बताया कि कैसे अतीक का करियर शुरू होने से पूर्व ही खत्म हो सकता था, जब 1990 के आसपास यूपी पुलिस ने उसे धर दबोचने की पूरी व्यवस्था कर ली थी। परंतु एन वक्त पर उन्हे आदेश आए कि अतीक को हाथ भी नहीं लगाना।

फिर क्या था, अतीक को मानो अपना आतंक फैलाने की खुली छूट मिल गई, और लगभग 28 तक उसका आतंक लगभग सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में गूँजा।

समाजवादी पार्टी की कृपा से महोदय 2004 में सांसद भी बने। इतना ही नहीं, जब अखिलेश यादव प्रथमत्या मुख्यमंत्री बने, तो लाख विरोध के बाद भी अतीक को गाजे बाजे के साथ अपना आतंक फैलाने का मानो लाइसेंस ही मिल गया।

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आज योगी के नाम से ही कंपायमान अतीक

अतीक के खिलाफ अब तक कुल 101 मुकदमे दर्ज हुए। वर्तमान में कोर्ट में 50 मामले चल रहे हैं, जिनमें NSA, गैंगस्टर और गुंडा एक्ट के डेढ़ दर्जन से अधिक मुकदमे हैं।

बताते चले कि अतीक  पर पहला मुकदमा 1979 में दर्ज हुआ था।

इसके बाद जुर्म की दुनिया में अतीक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। हत्या, लूट, रंगदारी, अपहरण के न जाने कितने मुकदमे उसके खिलाफ दर्ज होते रहे। और कमाल कि बात ये है मुकदमों के साथ ही उसका राजनीतिक रुतबा भी बढ़ता गया।

1989 में वह पहली बार विधायक हुआ तो जुर्म की दुनिया में उसका दखल कई जिलों तक हो गया। 1992 में पहली बार उसके गैंग को आईएस 227 के रूप में सूचीबद्ध करते हुए पुलिस ने अतीक को इस गिरोह का सरगना घोषित कर दिया।

1993 में लखनऊ में गेस्ट हाउस कांड ने अतीक को काफी कुख्यात किया। गैंगस्टर एक्ट के साथ ही उसके खिलाफ कई बार गुंडा एक्ट की कार्रवाई भी की गई। एक बार तो उस पर NSA भी लगाया जा चुका है।

लेकिन जब इसने योगी आदित्यनाथ को चुनौती देने की सोची, तो वहीं इसने अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल की।

जो व्यक्ति दबाव में रहते हुए भी CAA NRC के विरोध के नाम पर उपद्रव मचाने वालों की कमर तोड़ दे, कैराना से पलायन किये हुए लोगों को वापिस आने पर विवश करे, और मुख्तार अंसारी के पूरे गैंग की कमर तोड़ दे, वो ऐसे व्यक्ति से डरेगा?

ऐसे में जब उमेश पाल की हत्या का प्रकरण सामने आया, तो अखिलेश यादव ने इसका लाभ उठाते हुए योगी सरकार को घेरने का प्रयास किया।

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पर उलटे योगी आदित्यनाथ ने अतीक से सपा के नाते की पोल खोलते हुए अखिलेश की धज्जियां उड़ा दी, और संकल्प लिया कि “माफिया को जड़ से उखाड़कर ही दम लेंगे”।

सुनने में आ रहा है कि जब अतीक को साबरमती जेल से प्रयागराज लाया जा रहा है, तो किसी ने उन्हे ले जाने वाली गाड़ी में “यूपी में बाबा, यूपी में बाबा” बजाय दिया। इतने में अतीक की सिट्टी पिट्टी गुल हो गई, और इस बात पे जाने क्यों गैंग्स ऑफ वासेपुर का वो डायलॉग स्मरण हो आता है,

“अरे, अभी से…. आराम से देख…। आराम से देख, आराम से देख!”

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