जगदंब तलवार: इन वस्तुओं को अविलंब ब्रिटेन के “चोर बाज़ार” से वापस लाना है

यही सही अवसर है!

जगदंब तलवार

जगदंब तलवार: कैसा लगे, जब आपकी अमूल्य धरोहर किसी अन्य के हाथों में हो, केवल इसलिए क्योंकि उसके पूर्वजों ने कुछ शताब्दियों पूर्व आपके धरती पर राज किया था? यूं ही ब्रिटेन के संग्रहालयों को “चोर बाज़ार” नहीं कहा जाए, इनके संग्रहालयों में अपनी धरोहर कम, और दूसरे देशों से लूटे गए ऐतिहासिक धरोहर अधिक है। परंतु अब और नहीं।

इस लेख में पढिये कि कैसे भारत सरकार अपनी लूटी गई ऐतहासिक धरोहरों वापस ला रही है।

“जगदंब” तलवार को वापिस लाना है

इन दिनों महाराष्ट्र सरकार कुछ ज़्यादा ही आक्रामक मोड में है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण उनके एक वर्तमान अभियान में देखने को मिलता है, जहां वे इंग्लैंड से एक ऐतिहासिक धरोहर को लाने हेतु उद्यत है।

हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि इंग्लैंड से तलवार “जगदंब” को वापिस लेकर आए, चाहे एक वर्ष के लिए ही सही, परंतु लेकर आयें, और ऋषि सुनक की सरकार से इस विषय में बातचीत प्रारंभ हो।

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आपको लग रहा होगा कि ये कौन सी धरोहर है, जिसे प्राप्त करने के लिए वर्तमान महाराष्ट्र प्रशासन इतना लालायित है। असल में मराठा साम्राज्य के धरोहर एवं हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक, छत्रपति शिवाजी महाराज के पास अनेक खड़ग यानि तलवारें उपलब्ध थी, जिनमें से सबसे अमूल्य तलवार थी “जगदंब”। इस अमूल्य धरोहर की बनावट भी इसे मूल्यवान एवं धारदार बनाती है, परंतु इसे अंग्रेज़ों ने छलपूर्वक उनके वंशजों से छीन लिया, और इसे अपने निजी संग्रहालय में सम्मिलित कर लिया।

ये एकमात्र धरोहर नहीं….

जी हाँ, आपने बिल्कुल ठीक सुना। केवल स्यामन्तक मणि [जिसे कोहिनूर भी कुछ लोग मानते हैं] ही अंग्रेज़ों के नियंत्रण में नहीं है। ऐसे अनेक रत्न एवं धरोहर है, जो मूल रूप से भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग थे, परंतु आज वे ब्रिटिश संग्रहालयों में रखे हुए हैं, और कुछ तो ब्रिटिश राजपरिवार के निजी कलेक्शन में भी है, जैसे कि जगदंब तलवार एवं कोहिनूर।

इसके अतिरिक्त जिस वाघ नख से शिवाजी राजे ने अफ़जल खान जैसे दुर्दांत आक्रांता का वध किया था, वह भी इंग्लैंड के रॉयल अल्बर्ट हॉल संग्रहालय की ‘शोभा बढ़ाता’ है। इन लोगों ने तो महाराजा रणजीत सिंह के सिंहासन से लेकर कई अन्य धरोहर भी कब्ज़िया लिए, और अभी तो हमने कोहिनूर के इंग्लैंड यात्रा पर चर्चा भी नहीं की है, अन्यथा आपको ज्ञात होगा कि कैसे अंग्रेज़ों ने इस बहुमूल्य रत्न को छल कपट से अपने राजपरिवार का ‘अभिन्न अंग’ बनाया।

ये अवसर बार बार नहीं आएगा

जब कुछ लोग टीपू सुल्तान एवं गांधी जैसे व्यक्तियों की धरोहर वापस लाने के लिए आकाश पाताल एक कर सकते हैं। परंतु “जगदंब” तलवार की आवश्यकता अभी क्यों आन पड़ी? बता दें कि अगले वर्ष 2024 है, और ये छत्रपति शिवाजी महाराज के आधिकारिक राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगांठ है, क्योंकि 1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज का भव्य राज्याभिषेक कराया गया, और वे आधिकारिक रूप से मराठा साम्राज्य के संस्थापक एवं संरक्षक घोषित किये गए।

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यूं तो मराठा साम्राज्य की स्थापना का कार्य 1659 में ही प्रारंभ हो गया था, परंतु 1674 में जाकर शिवाजी राजे और उनके मावड़ों [योद्धाओं] ने आधिकारिक रूप से मराठा साम्राज्य की सीमाएँ निर्धारित की।

यूं तो इस अभियान का प्रारंभ 2022 में ही हो सकता था, परंतु उस समय उद्धव ठाकरे का प्रशासन था, जो इस नेक कार्य के लिए तनिक भी इच्छुक न थी। परंतु इस बार कमान एकनाथ शिंदे के हाथ में है, जो ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि 2024 में शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की वर्षगांठ धूमधाम से मनाई जाए।

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ऐसे में केंद्र सरकार क्या कर सकती है? वर्तमान परिस्थितियाँ हर प्रकार से भारत के पक्ष में है, और जैसा कभी मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने कहा था, “इंटरनेशनल प्रेशर क्रियेट करने की ताकत हम में है, 100 करोड़ से अधिक लोगों का देश है, हम पे कोई कैसे इंटरनेशनल प्रेशर कैसे बना सकता है?” इसके अतिरिक्त अगर यूके ने कुछ हेरफेर की, तो भारत के पास व्यापार का ट्रम्प कार्ड भी है। ऐसे में केंद्र सरकार को यह अवसर अपने हाथ से बिल्कुल नहीं जाने देना चाहिए, और उन सभी धरोहरों को वापिस लेनी चाहिए, जो हमारी अपनी है।

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