मराठा के मोहिते जिन्होंने औरंगजेब को कई बार धराशाही किया

वीर भोग्य वसुंधरा… ..

मोहिते वंश: जब शिवाजी राजे का देहावसान हुआ, तो मराठा साम्राज्य का भार शंभूराजे यानी संभाजी महाराज के कंधों पर आ पड़ा। परंतु जल्द ही 1689 में उनकी भी बर्बरतापूर्ण हत्या की गई, और अब बात मराठा समुदाय एवं हिंदवी स्वराज्य के अस्तित्व पर आ पड़ी। ऐसा लगा कि स्वराज्य का दीपक औरंगज़ेब की आंधी में उड़ जायेगा, परंतु तभी उदय एक अनोखी योद्धा जोड़ी का।

इस लेख में जानिये कथा मोहिते वंश की, जिनके जीते जी औरंगज़ेब न मराठों को कुचल पाए, और न ही हिंदवी स्वराज्य की मशाल को।

हम्बीरराव मोहिते : जिसकी हुंकार ही पर्याप्त थी

मराठा साम्राज्य में योद्धाओं की कोई कमी न थी, परंतु मराठा सैन्य प्रमुख हंबीरराव की बात ही कुछ और थी। इनका जन्म 1630 में 96 कुली मराठा के मोहिते-चव्हाण वंश में एक सैन्य सरदार संभाजी मोहिते के यहाँ हुआ था। इनकी बहन सोयराबाई ने बाद में छत्रपति शिवाजी महाराज से शादी की, जिससे हम्बीरराव छत्रपति शिवाजी महाराज के साले बन गए। प्रतापराव गूजर की मृत्यु के बाद , शिवाजी महाराज ने हंबीरराव को अपना सरसेनापति (कमांडर) बनाया।

इनहोंने छत्रपति शिवाजी राजे और उनके पुत्र, दोनों की निष्ठावान सेवा की। उन दिनों बुरहानपुर दक्षिणी और उत्तरी भारत को जोड़ने वाला एक प्रमुख व्यापार केंद्र था और शहर में कुल 17 व्यापार केंद्र थे। 30 जनवरी 1681 को हंबीरराव मोहिते और संभाजी ने अचानक बुरहानपुर पर आक्रमण कर दिया।

उस समय बुरहानपुर का सूबेदार जहान खान था, और बुरहानपुर में केवल 200 सैनिक तैनात थे, जबकि हंबीरराव के पास 20,000 की सेना थी। मुगलों में हम्बीरराव की सेना का विरोध करने की ताकत नहीं थी। इस लड़ाई में मराठों को 1 करोड़ हंस से भी ज्यादा की संपत्ति मिली थी। परंतु संभाजी अपने राज्य का विस्तार करते, इससे पूर्व ही हंबीरराव की वाई के मोर्चे पर 1687 में तोप का गोला लगने से मृत्यु हो गई।

और पढ़ें:  जब छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रति आकर्षित हुई थी औरंगजेब की पुत्री

ताराबाई : नारीशक्ति का मूल स्वरूप

परंतु अगर हंबीरराव सेर थे, तो उनकी पुत्री ताराबाई उनसे दस कदम आगे की सोचती। इनका जीवन उन लोगों के मुख पर तमाचा है, जो ये बोलते हैं कि भारत की संस्कृति स्त्री विरोधी रही है। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के कनिष्ठ पुत्र और संभाजी राजे के सौतेले भाई, राजाराम छत्रपति की दूसरी पत्नी थी।

1700 में राजाराम की असामयिक मृत्यु के बाद इन्होंने अपने 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी दित्तीय का राज्याभिषेक करवाया और मराठा साम्राज्य की संरक्षिका बन गयीं। ताराबाई मराठा साम्राज्य कि संरक्षिका बनी, और उन्होंने शिवाजी दित्तीय को मराठा साम्राज्य का छत्रपति घोषित किया और एक संरक्षिका के रूप में मराठा साम्राज्य को चलाने लगी।

उस वक्त शिवाजी द्वितीय मात्र 4 वर्ष के थे 1700 से लेकर 1707 ईसवी तक मराठा साम्राज्य की संरक्षिका उन्होंने औरंगजेब को बराबर की टक्कर दी और उन्होंने 7 सालों तक अकेले दम पर मुगलों से टक्कर ली और कई सरदारों को एक करके वापस मराठा साम्राज्य को बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यूरोपीय इतिहास्कारों की माने तो इन्ही के प्रताप से मराठा गौरव अक्षुण्ण रहा, और इनके जीते जी औरंगज़ेब कभी इनसे विजयी नहीं हुए।

और पढ़ें: गांधी इरविन समझौता: जब महात्मा गांधी के एक निर्णय के विरुद्ध पूरा देश हो गया

काश अंतर्युद्ध न होता

परंतु अधिक की लालसा कभी कभी हानिकारक भी होती है। ताराबाई अपने पुत्र को गद्दी पर देखना चाहती थी। परंतु ऐसा हो ना सका औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुर शाह प्रथम ने छत्रपति शाहू जो कि उसकी कैद में थे उनको दिल्ली से छोड़ दिया और जिसके करण साहू ने यहां पर आकर गद्दी के लिए संघर्ष शुरु हो गया और महाराष्ट्र में गृह युद्ध छिड़ गया अंततः शाहू ने युद्ध में ताराबाई की सेना को पराजित कर उन्हें पूरी तरीके से खत्म कर दिया। और उनको कोल्हापुर राज्य दे दिया और वहीं पर उनका राज्य स्थापित कर दिया और खुद मराठा समाज शाहु के काल में ही मराठा साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचा।

परंतु इस अंतर्युद्ध को छोड़ दे तो मोहिते वंश के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता। ये न होते, तो मराठा वंश छत्रपति संभाजी राजे से आगे ही नहीं बढ़ता। महारानी ताराबाई के कौशल का अब भी कई मराठा शोधकर्ता लोहा मानते हैं। भारतवर्ष इनका ऋणी रहेगा।

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version