Chanakya biography Ajay devgan: अजय देवगन को आप लाइक करें या नहीं, परंतु इग्नोर नहीं कर पाएंगे। उनकी फिल्म “भोला” भले ही “दृश्यम 2” जितनी ब्लॉकबस्टर न रही हो, लेकिन “तू झूठी मैं मक्कार” के बाद वह इस वर्ष की दूसरी हिन्दी फिल्म होंगी, जिसे विशुद्ध तौर पर फ्लॉप नहीं कहा जाएगा। लगभग 100 करोड़ के बजट पर बनी यह फिल्म अब तक वैश्विक स्तर पर 101 करोड़ कमा चुकी है, और जल्द ही घरेलू कलेक्शन में भी 100 करोड़ पार करने की दिशा में अग्रसर है। परंतु क्या इतने पर अजय देवगन रुकेंगे?
इस लेख में मिलिये पढिये कि कैसे Ajay devgan को प्रयोग करने से पीछे नहीं हटना चाहिए और क्यों “आचार्य चाणक्य” (Chanakya biography) की भूमिका उनके करियर के साथ साथ भारतीय सिनेमा में बदलाव ला सकती है।
अजय का करियर ग्राफ
“भोला” अजय देवगन के निर्देशन में बनी उनकी चौथी फिल्म है, जो अगर सब कुछ ठीक रहा, तो “शिवाय” से अधिक कलेक्शन करके ही दम लेगी।
इसके अतिरिक्त अजय देवगन के फिल्मों की लंबी लाइन लगी पड़ी है। इसी वर्ष पहले जून में “मैदान” आने वाली है, जहां वे भारतीय फुटबॉल टीम के धाकड़ कोच सैयद अब्दुल रहीम की भूमिका में दिखाई देंगे। फिर वे “औरों में कहाँ दम था” में दिखाई देंगे, जहां निर्देशक के रूप में वर्षों बाद नीरज पांडे दिखाई देंगे। इसके अतिरिक्त वे 2024 में दीपावली पर पुनः बाजीराव सिंघम के रूप में वापसी करेंगे, जब रोहित शेट्टी “सिंघम अगेन” के रूप में सबके समक्ष आएंगे!
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क्यों “आचार्य चाणक्य” हैं अवश्यंभावी
परंतु अभी कुछ समय पूर्व Ajay devgan के “चाणक्य” प्रोजेक्ट (Chanakya biography) पर भी चर्चा चल रही थी न? नीरज पांडे के साथ जब अजय देवगन ने एक फ्यूचर प्रोजेक्ट के लिए साझेदारी की, तो कई कयास लगाए गए। एक समय तो ये भी चल रहा था कि अजय देवगन आचार्य चाणक्य की भूमिका को भी आत्मसात करेंगे, जिसपर लगभग सहमति भी बन गई थी।
परंतु जब “औरों में कहाँ दम था” की घोषणा हुई, तो अनेकों अफवाहें उड़ने लगी। अभी के लिए सबसे सटीक अनुमान यही है कि “चाणक्य” ठंडे बस्ते में जा चुका है, जिसके पीछे “विक्रम वेधा” का फ्लॉप होना भी एक कारण हो सकता है।
परंतु इसे न तो कन्फर्म किया गया है, और न ही इसका खंडन किया गया है। ऐसे में जो ये सोच रहे हैं कि ये प्रोजेक्ट रद्द हो गया है, उन्हे भी पूर्ण आश्वासन नहीं मिल पा रहा है।
भारतीय सिनेमा का इतिहास बदल सकता है….
परंतु प्रश्न अब भी उठता है : आखिर “आचार्य चाणक्य” पर एक बायोपिक (Chanakya biography) अवश्यंभावी क्यों है, और इसमें Ajay devgan के आचार्य चाणक्य बनने से क्या होगा।
किसी रोल की गहराइयों में जाना अजय देवगन को बखूबी आता है, और “दि लीजेंड ऑफ भगत सिंह” एवं “तान्हाजी : द अनसंग वॉरियर” इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है। ऐसे में जब इन्हे मगध के प्रमुख सलाहकार एवं अखंड भारत के प्रणेता की भूमिका दी जाए, तो वे इसे कैसे निभाएंगे, ये सोचकर ही उत्सुकता की अनुभूति होती है।
आप स्वयं सोचिए, जब अजय देवगन ये संवाद बोलेंगे, “मैं, चणक पुत्र विष्णुगुप्त, ये प्रण लेता हूँ”, तो फिर थिएटर का क्या हाल होगा।
अजय देवगन उन कलाकारों में से है, जो प्रयोग करने से बिल्कुल नहीं डरते। “RRR” जैसी फिल्म से इन्होंने अपनी सीमित, पर प्रभावशाली भूमिका से सबको प्रभावित क्या था।
जैसे शर्लाक होम्स के भारतीय संस्करण हेतु केके मेनन बिल्कुल फिट बैठेंगे, वैसे ही अजय देवगन आचार्य चाणक्य के रोल के लिए एकदम फिट बैठेंगे। मजे की बात, अगर केके मेनन को धनानन्द के रूप में उतारा जाए, तो फिर दर्शक वैसे ही पागल होंगे, जैसे “RRR”, “कान्तारा” इत्यादि के लिए वे हुए थे।
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परंतु अजय देवगन के चाणक्य बनने से बॉलीवुड को क्या लाभ मिलेगा? इन दोनों बॉलीवुड को एक ऑल टाइम क्लासिक की दरकार है, जो उन्हे लगभग दो दशक से नहीं मिल रहा।
लोग चाहे जितना बोल लें, परंतु “दंगल” और “पठान” ने अनेकों दांव पेंच लड़ाके भी वो सम्मान और पद नहीं प्राप्त किया, जो “बाहुबली”, “RRR” जैसी फिल्मों को मिला है।
अगर बॉलीवुड को ये सिद्ध करना है कि अभी भी वह भारतीय सिनेमा का पर्याय है, तो उसे एक ऐसे क्लासिक की ही आवश्यकता है, जो भारतीयता से जुड़ा हो, और जिसे चाहकर भी कोई अनदेखा न कर सके, और “चाणक्य” वो प्रोजेक्ट हो सकता है। अब निर्णय अजय देवगन एवं नीरज पांडे के हाथों में है।
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