Karnataka CM decision: वन्स टाइम अपॉन अ मुंबई में एक बड़ा ही दमदार संवाद है, “सही और गलत में चुनना तो आसान है, पर किसी गलत और बहुत गलत में चुनना बहुत मुश्किल”। यही बात कर्नाटक कांग्रेस के लिए भी लागू होती है।
इस लेख में पढिये कि क्यों डीके शिवकुमार सिद्दारमैया की तुलना में बेहतर विकल्प (Karnataka CM decision) होंगे, और क्यों सिद्दारमैया को सीएम बनाना केवल कर्नाटक के लिए नहीं, अपितु कांग्रेस के लिए भी प्रलयंकारी होगा।
Karnataka CM decision: कोई दूध का धुला नहीं, फिर
कर्नाटक में वही हो रहा है, जो राजस्थान और मध्य प्रदेश में 2018 में हुआ था। यहाँ दो महत्वपूर्ण नेताओं के बीच में द्वन्द है, कि किसका दावा सीएम पद के लिए अधिक सशक्त है। दोनों ही कुशल प्रशासक नहीं है, परंतु अंतर उतना ही है, जितना पाकिस्तान और बांग्लादेश के प्रशासनिक व्यवस्था में।
वो कैसे? एक ओर हैं डीके शिवकुमार। यही वे व्यक्ति थे, जिन्होंने हारी हुई बाज़ी को पलटते हुए 2018 में कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाया था, और अपनी तिकड़मबाज़ी से लगभग एक वर्ष तक कर्नाटक में यूपीए का शासन विद्यमान रखा। “साम दाम दंड भेद” की नीति का इनसे बढ़िया अनुसरण शायद ही कोई कर सकता है। इसके अतिरिक्त इनके साथ एक और गुण है, जिसपे कम ही लोग विश्वास कर पाएंगे। जितना ही ये क्षेत्रवाद के धुरी हैं, उतना ही ये सनातन धर्म के प्रति भी आसक्त हैं। यूं ही नहीं इन्होंने कनकपुरा से भारी बहुमत से चुनाव जीता था।
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Karnataka CM decision: सिद्दारमैया चल पड़ेंगे ममता की राह पर
परंतु डीके शिवकुमार के साथ दो दिक्कतें है। एक तो उनपर भ्रष्टाचार के अनेक आरोप लगे हैं, जिसपर राज्य प्रशासन से लेकर ईडी तक का दबाव बना हुआ है। इसके अतिरिक्त उनकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा कोई और नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री और कर्नाटक के कद्दावर नेता सिद्दारमैया हैं।
वो कैसे? प्रशांत पुजारी का नाम सुना है? अगर नहीं, तो इसमें आपका कोई दोष नहीं। हमारा सिस्टम की बनावट ही ऐसी है कि ऐसे नाम जानबूझकर सामने नहीं आते। जब 2015 में गौमांस के पीछे मोहम्मद अखलाक के मारे जाने की खबरें सामने आई थी, तो सारा मीडिया सनातन समाज को असहिष्णु सिद्ध करने पर तुला हुआ था, और तत्कालीन उत्तर प्रदेश भी इन अराजकतावादियों को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा दे रही थी।
इसी बीच कर्नाटक में फूल विक्रेता प्रशांत पुजारी की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी गई। उसका अपराध: गौरक्षा के लिए वह कुछ इस्लामिस्टों से भिड़ गया था। आज तो कई लोगों को स्मरण भी नहीं होगा कि प्रशांत पुजारी था कौन?
तो इसका सिद्दारमैया से क्या लेना देना? असल में ये सब तभी हुआ था, जब सिद्दारमैया शासन में था। तुष्टीकरण के मामले में ये व्यक्ति ममता बनर्जी और अशोक गहलोत को भी पीछे छोड़ दे। इसी प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा ने ट्वीट किया,
“औरों का पता नहीं, परंतु सिद्दारमैया के मुख्यमंत्री बनने से काफी कुछ बिगड़ जाएगा। आतंकियों का कोई धर्म हो न हो, जेल के कैदियों का इनके लिए अवश्य है, स्वतंत्र करने के मामले में। टीपू जैसा आक्रांता फिर से एक आइकन बन जाएगा। हिन्दू का जीवन फिर से सस्ता हो जाएगा, और तो और हिन्दू मंदिरों की ओर से स्कूलों को दान पर भी लगाम लग जाएगी”। संक्षेप में कहे तो सिद्दारमैया के आते ही हिंदुओं के विरुद्ध वो अत्याचार प्रारंभ होंगे, जो शायद ममता बनर्जी को टक्कर देने के लिए पर्याप्त हों।
DK is nasty, corrupt, greedy, and a megalomaniac.
Sidda is all of it and SDPI PFI supported
rabid Hindu hater.DK will be better. But it’s Sidda who has the support.
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) May 15, 2023
As Congress won a landslide victory in Karnataka, this face came to my mind. This is the face of Prashanth Poojary. No one remembers him now.
Prashanth Poojary belonged to a humble Hindu family, which ran a family business of selling flowers in Moodbidri, Karnataka. 29 year old… pic.twitter.com/ExQEGNiVRh
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) May 14, 2023
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कहीं महाराष्ट्र या एमपी जैसा हाल न हो जाए
परंतु सिद्दारमैया के मुख्यमंत्री बनने से वो भी होगा जो कांग्रेस इस समय न चाहती है, और न ही अफोर्ड कर सकती है, अंतर्कलह। न डीके शिवकुमार सचिन पायलट हैं, जो बस इधर उधर भागते रहेंगे, और न ही सिद्दारमैया अशोक गहलोत या भूपेश बघेल हैं, जो कैसे भी करके अपनी सत्ता कायम रखेंगे।
अगर सिद्दारमैया को मुख्यमंत्री (Karnataka CM decision) बनाया गया, तो कर्नाटक का भी वही हाल हो सकता है, जो पहले मध्य प्रदेश और फिर महाराष्ट्र का हुआ। ऐसे में डीके शिवकुमार जैसा भी हो, परंतु सिद्दारमैया जितना निकृष्ट और अवसरवादी नहीं है।
विश्वास नहीं होता तो कृपया इन तथ्यों पर ध्यान दीजिए, जो कांग्रेस द्वारा कर्नाटक चुनाव जीतने के बाद तुरंत हुआ था।
कहीं PFI के झंडे लहराए गए, तो कहीं न्याय की विजय के नाम पर पाकिस्तान की जयजयकार करते हुए मंदिरों के निकट पटाखे फोड़े गए। ये इस बात का सूचक है कि सिद्दारमैया के सीएम बनने के बाद कर्नाटक का भविष्य क्या हो सकता है। मेरे कन्नड़ भाइयों और बहनों के लिए सबसे बड़ी विडंबना ये होंगी कि जिस कन्नड़ गौरव के लिए ये दिन रात एक किये हैं, एक समय शायद वो गौरव भी न बचे।
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