किसी को अच्छा लगे या नहीं, परंतु केरल में धड़ल्ले से हो रहे अवैध धर्मांतरण पर “द केरल स्टोरी” ने गजब प्रकाश डाला है। अब “लव जिहाद” पुनः चर्चा का केंद्र बन चुका है, भले ही कुछ महानुभाव अब भी इसे “आरएसएस की साजिश” बताते फिरे। परंतु क्या हो अगर आपको पता चले कि इस टर्म की उत्पत्ति हिंदुओं ने नहीं, ईसाइयों ने की थी?
इस लेख में पढिये “लव जिहाद” के पीछे के ईसाई कनेक्शन, और कैसे यह समस्या किसी एक प्रांत या संप्रदाय की नहीं है।
2009 की एक सुबह
2009: ये वो समय था जब कांग्रेस ने सभी को चकित करते हुए केंद्र में पुनः सत्ता प्राप्त की थी। “गंगा जमुनी तहज़ीब” अपने चरमोत्कर्ष पर थी, और इसी बीच चर्चित “Open Magazine” में एक लेख ने कई राजनीतिक विश्लेषकों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया।
ये लेख केरल के चर्च परिषद की पत्रिका में ‘Love Religious Terrorism; Parents Beware’ में अक्टूबर 2009 में प्रकाशित हुआ था।
इस लेख ने ईसाई कैथोलिक माता-पिता को चेताया कि वे अपनी बेटियों पर ध्यान दें, क्योंकि उन्हें मुस्लिम युवकों द्वारा लुभाया जा रहा है, जो “लव जिहाद” या “रोमियो जिहाद” के “एजेंट” हैं, ताकि कन्याओं को इस्लाम में परिवर्तित कराया जा सके। परिषद ने इस दस्ते के रडार पे लगभग 2500 शिकार लड़कियों के होने का अनुमान लगाया था, और यह बात है 2009 की, जब ISIS जैसे संगठन का अस्तित्व भी नहीं था। आज भी ईसाई संगठन इस बारे में खुलकर नहीं बात कर पाएँ, परंतु इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ईसाई लड़कियां भी इन गिरोहों की समान रूप से शिकार हुई हैं। ध्यान रहे, जिन चार ISIS लड़कियों की तस्वीर और केस स्टडी व्यापक रूप से की जाती हैं, उनमें से तीन ईसाई हैं/थे।
Do you know how the term 'love jihad' came to the fore?
Its not a Hindu org (as widely perceived) but a Catholic Church Council raised concern in Oct'2009 about the huge number of Christian girls falling into the trap.
This is an article by Open Magazine Oct'2009 about same.
1/ pic.twitter.com/9t1T0FsBQB— The Hawk Eye (@thehawkeyex) May 8, 2023
ये मज़ाक का विषय नहीं है
यह लेख ऐसे समय में आया है, जब “लव जिहाद” शब्द मुख्यधारा में भी नहीं था। भले ही वीएचपी बहुत पहले से इस मुद्दे पर काम कर रहा था, और लोगों को इस खतरे के बारे में सतर्क करने की कोशिश कर रहा था, परंतु 2009 में जाकर केरल के कुछ ईसाई, जिनमें से अधिकांश को राज्य या पादरियों से नगण्य समर्थन प्राप्त था, ने अपने दम पर जांच शुरू की थी।
दिलचस्प बात यह है कि 2009 में एक स्थानीय पत्रिका, द केरल कौमुदी पत्रिका, दिनांक 5-अक्टूबर-2009 में “रोमियो जिहाद” के बारे में बात की गई थी, और उसमें कहा गया था कि “इंटेल ब्यूरो ने आठ महीने पहले इसके बारे में चेतावनी दी थी”।
परंतु बात केवल यहीं तक सीमित नहीं थी। दिसंबर 2009, में जब ऐसे ही मामले में सुनवाई हो रही थी, जहां शाहान शाह और सिराजुद्दीन पर एक हिन्दू और एक ईसाई लड़की के धर्मांतरण का आरोप लगाया था, तो केरल हाईकोर्ट ने इस विषय को गंभीरता से लेते हुए तत्कालीन सरकार को इस विषय पर आवश्यक नियमावली बनाने का निर्देश दिया था।
और पढ़ें: The Kashmir Files और अब The Kerala Story: पैटर्न बहुत कुछ कहता है
क्या अब कोई उपाय नहीं बचा?
बावजूद इसके कि तत्कालीन मुख्यमंत्री, वी एस अच्युतानंदन ने इस विषय पर चर्चा करने का साहस किया, न तब की केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाए। 2011 में ऊमन चांडी के आने के बाद स्थिति तो बद से बदतर हो गई। धीरे धीरे मिडिल ईस्ट में ISIS का प्रभाव बढ़ने लगा, और जब तक लोगों को आभास हुआ, केरल के लिए बहुत देर हो चुकी थी।
ऐसे में वास्तविकता को स्वीकार करना ही इस समस्या से निपटने का एकमात्र तरीका है, और इसे “दुष्प्रचार”, “धर्मनिरपेक्षता पर हमला”, “अपमानजनक” कहकर उपहास करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। भले ही हम मान लें कि “केरल स्टोरी” पूरी तरह से काल्पनिक है, परंतु जो धर्मांतरण वास्तव में हुआ था, वह तो काल्पनिक नहीं है न, और यह केवल केरल के हिंदुओं की समस्या नहीं है।
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