Same sex marriage in India: भारत में समलैंगिक विवाह नहीं होगा

खान मार्केट पुनः शोकाकुल हुई]

Same sex marriage in India

Same sex marriage in India: इन दिनों भारत में कई विषय सुर्खियों में छाए हुए हैं। चाहे पहलवानों का प्रदर्शन हो, या फिर कर्नाटक के चुनाव। परंतु इसी बीच समलैंगिक विवाह पर अलग बहस छिड़ी है। प्रकृति के विरुद्ध चलने की खुजली अब भारत में दस्तक दे रही है, परंतु इससे पूर्व इसे आधिकारिक प्रविष्टि मिलती है, CJI चंद्रचूड़ ने कहा, “ये सरकार का काम है, I am out”

इस लेख में पढिये समलैंगिक विवाह पर विवाद (Same sex marriage in India), और कैसे अब तक LGBT समर्थक रही सुप्रीम सुनवाई कोर्ट ने अचानक से हाथ पीछे खींच लिए हैं।

Same sex marriage in India: हमारी कुछ लिमिटेशन है

हाल ही में समलैंगिक विवाह (Same sex marriage in India) के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी। इसमें दोनों धुरी, पक्ष या विपक्ष के बीच nuance के लिए शायद ही कोई स्थान था, और स्वयं मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ भी कई अवसरों पर समलैंगिक गिरोह के समर्थन में दिखाई दे रहे थे।

परंतु एक समय संविधान को भी चुनौती देने के लिए तैयार CJI चंद्रचूड़ ने अचानक से पलटी खाते हुए कहा कि इस विषय पर सरकारी मान्यता के बिना काम नहीं चलेगा। उनका तर्क स्पष्ट था, “कोर्ट सरकार का काम नहीं कर सकती। हमारे लिए कुछ सीमाएँ हैं, जिन्हे हम लांघ नहीं सकते”। बातों ही बातों में सुप्रीम कोर्ट ने ये स्पष्ट कर दिया कि सेम सेक्स मैरिज पर अंतिम निर्णय सरकार का होगा।

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SG तुषार मेहता ने दिखाया दर्पण

परंतु CJI चंद्रचूड़ तो कुछ दिनों पहले स्वयं प्राइड परेड के ध्वजवाहक नज़र आ रहे थे, नहीं? अचानक से ऐसा परिवर्तन कैसे?

इसके दो कारण है, जिनमें सर्वप्रथम है सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता। उन्होंने चंद्रचूड़ को उन्ही के तर्कों से आश्चर्यचकित कर दिया। उनके वक्तव्य के अनुसार, “आप जैसे विचार कर रहे हैं, उस अनुसार कल को मैं अपनी बहन से विवाह कर सकता हूँ। क्या आपके विचार में ये विवाह वैध है, अगर संस्थाएँ इसका विरोध करें, तब भी? क्या इसके लिए भी प्रावधान होंगे?”

इस पर अधिकतम समय आक्रामक रहने वाले चंद्रचूड़ अंकल की बत्ती गुल हो गई, और वे अगर मगर में उलझ गए, परंतु तुषार मेहता अपने मार्ग पर अडिग रहे। उन्होंने एक कदम आगे बढ़ते हुए “Gender Fluidity” के मूल सिद्धांतों पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया।

तुषार मेहता के अनुसार, “जो सिद्धांत कुछ लोगों ने परिभाषित किये हैं, उसके अनुसार Gender Fluidity एक जटिल विषय है। कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं, जिनका मूड स्विंग के अनुसार, या फिर समय के किसी भी पहर के अनुसार लिंग परिवर्तन होता है। क्या ऐसे लोगों के वैवाहिक संबंध भी मान्य होंगे?” यहाँ पर CJI चंद्रचूड़ समेत सभी न्यायाधीश निरुत्तर हो गए। किसी के पास इस दांव के लिए कोई उत्तर नहीं था।

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जनता की इच्छाओं के विरुद्ध कब तक?

परंतु केवल इन्ही कारणों से CJI चंद्रचूड़ ने अपने हाथ पीछे नहीं खींचे। जिस दूसरे कारण से उन्होंने सरकार के पाले में गेंद डालने को विवश हुए हैं, उसमें कुछ हद तक स्वयं तुषार मेहता का भी हाथ है, और कुछ जनाक्रोश का भी। तुषार मेहता ने अपने वक्तव्य में ये स्पष्ट किया कि विवाह के संबंध में 160 से भी अधिक प्रावधान है, क्या उन्हे भी बदला जाएगा? क्या इसके लिए कोर्ट “Super Legislature” भी बनने को तैयार है?

दूसरा कारण है जनाक्रोश। संत हो या नागरिक, कोई भी CJI चंद्रचूड़ की इस हेकड़ी से प्रसन्न नहीं है। स्वयं कई अधिवक्ता इस विषय पर क्रोधित हैं और इसे न्यायसम्मत नहीं मानते। अब जहां कपिल सिब्बल जैसा वामपंथी भी LGBT गिरोह के विरोध में खड़ा हो, तो आप और क्या आशा कर सकते हैं? इतना ही नहीं, बार काउन्सिल ऑफ इंडिया ने भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करते हुए समलैंगिक विवाह (Same sex marriage in India) को अनमने तरह से लागू करने का विरोध किया। अब यदि इसके बाद भी CJI चंद्रचूड़ अपनी हठधर्मिता पर अड़े रहते, तो फिर वे भी जानते हैं कि उनके लिए, और कॉलेजियम व्यवस्था के लिए ये कितना हानिकारक होता।

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