The Kerala Story Review: कुछ कथाएँ ऐसी होती है, जिनका मूल उद्देश्य केवल मनोरंजन नही, अपितु आपको एक प्रश्न के साथ छोड़ जाना है : क्यों? आखिर क्यों हुआ ये? ऐसा क्यों होता है? क्यों किसी ने इसे रोका नहीं? अगर कोई समस्या है, तो या तो आप समझौता कर सकते हैं, या आप उसका डटकर सामना कर सकते हैं। आप उससे भाग नहीं सकते, और यही “द केरल स्टोरी” ने समझाने का प्रयास भी किया है!
The Kerala Story Review
इस Review लेख में मैं सिर्फ “The Kerala Story” का अपना अनुभव नहीं बताऊँगा, अपितु कुछ प्रश्न भी पूछूँगा, जिनके उत्तर जानना मेरे और मेरे जैसे अनेक भारतीयों के लिए आवश्यक है, क्योंकि ये भारत आपकी या मेरी नहीं, ये बात आज केरल की है, और कल को सम्पूर्ण भारत के लिए भी होगी।
पर “द केरल स्टोरी” है क्या? ये फिल्मकार सुदीप्तो सेन की फिल्म है, जो अवैध रूप से मतांतरित हज़ारों हिन्दू और ईसाई महिलाओं का एक मार्मिक चित्रण है, जिसमें अदा शर्मा, योगिता बिहानी इत्यादि प्रमुख भूमिकाओं में है।
ये फिल्म एक रिमोट लोकेशन में प्रारंभ होती है। ISIS से जुड़ी एक महिला लड़ाकू को हिरासत में लेकर कुछ अफ़गान एजेंट एक लोकेशन पर ले जाते हैं, जहां पर पूरी प्रक्रिया की निगरानी एक अमेरिकी जासूस एजेंसी कर रही है। जब इस महिला द्वारा अपनी कथा बताने के सारे प्रयास बेकार जा रहे हैं, तो फातिमा नामक ये महिला अपने जीवन परिचय पर प्रकाश डालती है।
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अब यहाँ से फ्लैशबैक की ओर जाते हैं, जहां केरल के अलप्पुझा में शालिनी उन्नीकृष्णन नामक एक युवती अपनी माँ और वृद्ध नानी के साथ रहती है। शालिनी आगे चल चिकित्सा में अपनी सेवाएँ प्रदान करना चाहती है, और इसीलिए वह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ नर्सिंग में प्रविष्ट होती है। यहाँ इनका परिचय इनके सहपाठियों से होता है, जिनका नाम है निमा, जो ईसाई है, गीतांजलि, जो कहने को हिन्दू है, परंतु धर्म संस्कार इत्यादि में विश्वास नहीं करती, और असिफ़ा, जो प्रारंभ से ही कट्टर मुसलमान है।
धीरे धीरे सभी का एक दूसरे से परिचय होता है, और असिफ़ा सभी पर अपना प्रभाव जमाना प्रारंभ करती है। वह प्रारंभ से ही अपने आराध्य के तारीफ में कसीदे गढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ती। परंतु इससे पूर्व कि किसी को कुछ आभास हो, मॉल में एक घटना सबका जीवन बदल देता है। कैसे इस घटना के माध्यम से शालिनी फातिमा में परिवर्तित होती है, और कैसे वह ISIS के गिरफ्त में आती है, यही “द केरल स्टोरी” का सार है।
चलिए, सब कुछ एक किनारे रख देते हैं। भूल जाइए कि हम हिन्दू है, ईसाई है या क्या है। कल्पना कीजिए, कोई अपने संस्कृति का गुणगान करता है, और उसी के आड़ में वह धीरे धीरे आपको आपके परिवेश, आपके रहन सहन पर घृणा करने को विवश करता है, और जताता / जताती है कि जो वे करते हैं, वही सही है, और आपको या आपके किसी सगे / संबंधी को धर्मांतरित करा लेते हैं। आप क्या करोगे?
कोई व्यक्ति इसके बारे में सोचकर ही विरोधी ख्याल उत्पन्न करने लगेगा। परंतु ये केरल है, यहाँ ऐसी घटनाएँ आम दिनचर्या है। जब तक आपको या आपके अभिभावकों को वास्तविकता का पता चलता है कि क्या हो रहा है, बहुत देर हो चुकी है। आप कोई व्यक्ति नहीं हो, कुछ घृणित अवसरवादियों के हाथ का मोहरा हो। आप आंकड़ों पे जूझ सकते हो, आप इनके तौर तरीकों, विशेषकर शारीरिक संबंध बनाने की मंशा पर प्रश्न कर सकते हो! परंतु क्या आप इस बात को नकार कर कह सकते हो कि ये सब ढकोसला है, ऐसा कुछ नहीं होता?
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चलिए, इसे भी जाने दीजिए। जब कोई अपने संस्कृति को श्रेष्ठ बता आपके अस्तित्व और आपके संस्कृति का उपहास उड़ाये, तो क्या ये आपको स्वीकार्य है? नहीं होगा ना, परंतु यही बात हमारे मस्तिष्क में जोर जबरदस्ती से बिठाई जाती है, और ये कैसे होता है, इसका चित्रण भी बिना लाग लपेट के इस फिल्म में किया गया है। ऐसा चित्रण छोड़िए, इसपर बेबाक चर्चा करने का सामर्थ्य कितने लोगों में होगा?
विश्वास नहीं होता, तो फिल्म से कुछ उदाहरण प्रस्तुत है : शालिनी का धर्मांतरण कर जब उसका निकाह कराया जाता है, तो उसकी माँ भागी भागी उसका हाल जानने आती है। जिस तरह भीगते हुए बारिश में वह अपने बच्ची में आए परिवर्तन को देखती है, और जैसे उन्हे दुरदुराया जाता है, उसे देख कोई भी अविचलित नहीं रह पाएगा। ऐसा चित्रण बहुत ही कम देखने को मिलता है।
अब हर घटना का उल्लेख तो संभव नहीं, परंतु फिल्म में एक अन्य घटना को हम अनदेखा नहीं कर सकते। जब ISIS में फातिमा का प्रवेश होता है, और उसे इधर से उधर एक यौन दासी के रूप में घुमाया जाता है, तो एक समय वह अपने शिशु के लिए भोजन मांगती है, और उसे वो भी नहीं दिया जाता। किसी भांति एक अन्य पीड़िता से उसे कुछ राशन मिलता है, और वह अपने संबंधियों से भी बात कर पाती है। परंतु कुछ ही समय बाद उस पीड़ित का पति उसे घसीटता हुए ले जाता है, और फिर गोली मारकर हत्या कर देता है। अपराध क्या था : उसने एक माँ के नवजात शिशु को भोजन खिलाने का दुस्साहस किया।
चलो, हम ये मान लेते हैं कि जो वामपंथी कह रहे हैं इस फिल्म के बारे में, सब सच है, कि ये केरल को नकारात्मक छवि पेश कर रहा है। ये भी मान लेते हैं कि 32000 महिलाओं का आंकड़ा फर्जी है। परंतु क्या आप ये कहने का सामर्थ्य रखते हो कि केरल से एक भी महिला ISIS में नहीं गई? क्या ऐसे लोगों में ये सामर्थ्य है कि कहें कि ऐसे अत्याचार आज तक कभी नहीं हुए, और न ही इसके लिए एक विशेष सिंडीकेट समर्पित है?
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अब आते हैं उस बात पर, जिसपे सबकी निगाह है : 32000 लड़कियों का धर्मांतरण। चलिए, यह फिल्म को कहना चाहता है, सब झूठ है। परंतु, क्या यह भी असत्य है कि केरल समेत भारत के कई कोनों में ऐसे कई लोग हैं, जो छल से महिलाओं का धर्मांतरण कराते हैं? क्या ये बात कि इस सम्पूर्ण प्रकरण के लिए ISIS में एक बहुत विशाल नेटवर्क है, जो केवल इसी पाप को बढ़ावा देने पर ध्यान देता है, सब मिथ्या है?
कहीं सुना था, “We must stand up for what is right, even if it makes others unhappy”. आप “द केरल स्टोरी” से संवेदना रखे या घृणा, ये आपकी इच्छा। परंतु इसे आप अनदेखा तो बिल्कुल नहीं कर सकते। बाकी आगे आपकी इच्छा, और अगर आप अपने परिवार या अपने वंशजों के लिए ऐसा भविष्य नहीं चाहते, तो एक बार ये फिल्म अवश्य देखें!
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