Gyanvapi carbon dating: इलाहाबाद हाईकोर्ट की कृपा से शीघ्र सामने आएगा ज्ञानवापी का सच

अयोध्या तो झांकी है, काशी मथुरा बाकी है!

Gyanvapi carbon dating: “अयोध्या तो झांकी है, काशी मथुरा बाकी है”। जिसने भी इस नारे की कल्पना होंगी, आज वह खुशी से फूले नहीं समा रहा होगा। अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए काशी विश्वनाथ के प्राचीन परिसर के पुनरुद्धार का मार्ग प्रशस्त किया है।

Gyanvapi carbon dating को मिली स्वीकृति

कुछ दिनों पूर्व एक उल्लेखनीय निर्णय में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंगम के आधिकारिक कार्बन डेटिंग सर्वेक्षण (Gyanvapi carbon dating) को अपनी मंजूरी दे दी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पुरातत्व अधिकारियों सहित विभिन्न अधिकारियों से परामर्श के बाद यह निर्णय लिया गया।

बता दें कि ज्ञानवापी परिसर अयोध्या में राम जन्मभूमि क्षेत्र के रूप में एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। यद्यपि इस्लामवादी उसी पर अपना दावा करते हैं, वे ये भी स्वीकार करते हैं कि संरचना मूल रूप से एक भव्य संरचना थी, जिसमें काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंगम स्थित था। वो अलग बात है कि अन्य आक्रान्ताओं की तुलना में इस्लामियों ने अपने कर्तबों के अवशेष छुपाने का प्रयास तक नहीं किया।

स्थानीय कोर्ट ने ठुकराई थी मांग

अब मस्जिद समिति इस शिवलिंग को एक फव्वारा बताती है और कहती है कि इसे मुगलों ने बनवाया था। परंतु इनकी एक न सुनते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने Gyanvapi  शिवलिंग की carbon dating कराने का निर्णय दिया है। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट को फैसला क्यों सुनाना पड़ा? कार्बन डेटिंग जुलाई 2022 में ही शुरू हो गई होती, अगर यह स्थानीय अदालत ने टांग न अड़ाई होती, जिसने सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी यथास्थिति का हवाला देते हुए याचिकाकर्ताओं को इसका अधिकार देने से इनकार कर दिया।

अब इस निर्णय को पलटते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर में सर्वे के दौरान मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग (Gyanvapi carbon dating) और वैज्ञानिक सर्वेक्षण के लिए दायर याचिका को स्वीकार कर लिया है। याचिका को स्वीकार करते हुए, उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को शिवलिंग को कोई नुकसान पहुंचाए बिना कार्बन डेटिंग करने का आदेश दिया, जिस पर एएसआई के अधिकारियों ने निस्संकोच अपनी स्वीकृति दी।

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आगे की राह

हाईकोर्ट ने काशी विश्वनाथ के भक्तों के पक्ष में फैसला सुनाने से पूर्व भारत सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता मनोज कुमार सिंह से पूछा था कि क्या शिवलिंग को नुकसान पहुंचाए बिना कार्बन डेटिंग की जा सकती है, क्योंकि इससे शिवलिंग की आयु का पता चलेगा। इस पर एएसआई ने कहा कि शिवलिंग की कार्बन डेटिंग बिना किसी नुकसान के की जा सकती है। इसके बाद, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आधिकारिक तौर पर इस प्रक्रिया को अपनी स्वीकृति दी, अर्थात एक विशिष्ट सर्वे से सिद्ध होगा कि ज्ञानवापी पर वास्तविक अधिकार किसका है।

स्थानीय कचहरी द्वारा कराए गए सर्वे में 16 मई 2022 को ज्ञानवापी परिसर में सर्वे के दौरान एक प्राचीन शिवलिंग मिला। इस शिवलिंग का वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराने की एएसआई की मांग को लेकर वाराणसी के जिला न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया था। परंतु कोर्ट ने 14 अक्टूबर 2022 को इसे खारिज कर दिया, जिसके बाद इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

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रोचक बात यह है कि लगभग एक हफ्ते पूर्व, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि परिसर के सर्वेक्षण पर भी नए सिरे से सुनवाई का आदेश दिया था, जिसमें कहा गया था कि आधिकारिक फैसला सुनाते समय पक्षपातपूर्ण राय देना स्थानीय अदालत का काम नहीं है। संक्षेप में कहें तो काशी और मथुरा के गौरव को ससम्मान लौटाने का कार्य ज़ोर शोर से प्रारंभ हो चुका है!

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