मान गए विपुल अमृतलाल शाह को!

धो डाला विपुल शेठ ने!

“द केरल स्टोरी झूठ है!”

“द केरल स्टोरी मिथ्या है!”

“द केरल स्टोरी अल्पसंख्यकों पर आघात करता है!”

“द केरल स्टोरी के सारे आँकड़े फेक है!”

विश्वास मानिए, हमसे अधिक क्रोध तो उन लोगों को होता होगा, जिन्होंने इस फिल्म को बनाने के लिए काफी कुछ दांव पर लगाया। परंतु ये भावना कहीं न कहीं विपुल अमृतलाल शाह के मुख पर भी झलक रही थी, जो मानो बोल रहे थे, “अब मेरी बारी!”

इस लेख में पढिये कैसे “द केरल स्टोरी” के रचनाकारों ने एक कॉन्फ्रेंस से सभी विरोधियों को दिन में तारे दिखाए, और क्यों इसमें अप्रत्यक्ष रूप से रोहित शेट्टी का भी हाथ है।

“सो क्या जाने पीर पराई”

सुदीप्तो सेन द्वारा निर्देशित “द केरल स्टोरी” को किसी विशेष परिचय की आवश्यकता नहीं। इस फिल्म ने समस्त देश का ध्यान अवैध धर्मांतरण की ओर आकृष्ट करते हुए बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा रखी है। फिल्म ने अब तक लगभग 20 से 30 करोड़ के बजट के मुकाबले करीब 165 करोड़ की कमाई की है। अब ये फिल्म 200 करोड़ क्लब की ओर अग्रसर है।

परंतु इसके पीछे वामपंथी से लेकर कट्टरपंथी हाथ धोके पड़े हुए हैं। कुछ तो इसे भाजपा पोषित प्रोपगैंडा बता रहे थे, तो कुछ ने सीधे सीधे ध्रुव राठी जैसे निर्लज्ज की भांति इन पीड़िताओं के दुख दर्द पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया।

अब “द केरल स्टोरी” के रचनाकारों और विपुल अमृतलाल शाह ने इन्ही सब आरोपों पर उत्तर देने हेतु एक विशिष्ट कॉन्फ्रेंस की, जहां फिल्म के लेखक, निर्देशक एवं कलाकार सहित 26 वास्तविक पीड़िताओं ने भाग लिया। इस कॉन्फ्रेंस का संचालन टाइम्स नाऊ नवभारत ने किया, और इस कॉन्फ्रेंस का प्रमुख उद्देश्य था फिल्म से जुड़े प्रश्नों का उत्तर देने के लिए, और इसे झूठ बताने वालों को दर्पण दिखाने के लिए।

और पढ़ें: द केरल स्टोरी देखकर हुई फेमिनिस्टों की बत्ती गुल!

“हम यहाँ प्रसन्न करने के लिए नहीं!”

इस फिल्म पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले स्वघोषित बुद्धिजीवियों के विरुद्ध कई लोग आक्रामक थे, परंतु सबसे अधिक क्रोधित तो विपुल अमृतलाल शाह लग रहे थे। उन्होंने फिल्म को मुस्लिम विरोधी बताने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा, “मैं आपको एक सिम्पल बात कहता हूँ। शोले में गब्बर सिंह विलेन है। तो क्या निर्देशक रमेश सिप्पी समस्त सिंह समाज के विरुद्ध है? जब भी कोई फिल्म कुछ बुरे लोगों की बात करती है, तो हर वक्त उसे किसी धर्म से नहीं जोड़ते हैं। सिंघम रिटर्न्स में विलेन तो एक संत था। वहाँ क्यों नहीं आपत्ति जताई? हम ये क्यों नहीं कह सकते कि ये फिल्म आतंकवाद के विरुद्ध है, चलो इसे बढ़ावा दे? हमेशा यही प्रश्न क्यों उठता है कि यह किसी धर्म के प्रति इशारा कर रही है?”

जब रोहित शेट्टी ने दिया घुमाके!

परंतु एक मिनट, ये कहीं सुना सुना सा नहीं लग रहा? 2021 में जब कोविड के प्रकोप से फिल्म उद्योग, विशेषकर बॉलीवुड को सूर्यवंशी ने अपनी सफलता से बाहर निकालने का प्रयास किया, तो कई बुद्धिजीवियों ने इसकी आलोचना की। ऐसा इसलिए क्योंकि इस फिल्म ने आश्चर्यजनक रूप से इस्लामिक आतंकवाद पर प्रकाश डाला, और कुछ हद तक लव जिहाद पर भी ध्यान केंद्रित किया।

इस पर जब रोहित शेट्टी से द क्विंट की एक पत्रकार ने प्रश्न किया, तो वे क्रोधित होकर बोले, “सिंघम में जयकांत शिकरे तो मराठी था, एक हिन्दू. उसके सीक्वेल में एक हिन्दू बाबा विलेन था. सिम्बा में भी दुर्वा रानाडे महाराष्ट्र का ब्राह्मण था. ये तीनों नकारात्मक शक्तियां हिन्दू थी, तब आपको कोई समस्या नहीं हुई, तो अब क्यों?”

अपने आप को घिरता हुआ देख अबीरा धार ने गोलमोल तर्क दिए और अपने हास्यास्पद तर्क का बचाव करने में जुट गई, तो रोहित शेट्टी ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा, “बात यही नहीं है. जब कोई आतंकी पाकिस्तान से आता है, तो क्या आप उसकी जात देखते हो? लेकिन कुछ पत्रकारों के मत पढ़ने के बाद मेरे विचार अवश्य बदल चुके हैं, क्योंकि वे ब्रैकेट में बाकायदा लिख कर कह रहे थे कि यह देखो, बुरे मुसलमानों को उच्च जाति के हिन्दू नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं, और ये प्रवृत्ति गलत है!”

और पढ़ें: कश्यप और आज़मी: “The Kerala Story” के नए फैन!

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि “द केरल स्टोरी” ने वामपंथियों को कहीं का नहीं छोड़ा। न कोई इन्हे सुनने को तैयार है, और न ही जनता इन्हे घास डाल रही है। ऐसे में अब देखना ये होगा कि अगली कौन सी फिल्म इन्हे कहीं का नहीं छोड़ने के लिए उद्यत होगी?

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version