अलगाववादी हो या आतंकवादी, कनेडा विच सब दा स्वागत सी!

सत्ता के लिए जो न करे ट्रूडो!

कल्पना कीजिए यदि आज के आज सरकार ये निर्णय ले ले कि भारत का अहित चाहने वालों को कोई हाथ नहीं लगाएगा, और उनकी सुरक्षा में विशेष दस्ते लगाए जाएंगे, जैसे मुफ्ती परिवार, मोहम्मद ज़ुबैर, साजिद मीर इत्यादि।

सोचके ही अंतरात्मा कंपायमान हुई न? परंतु आपने लगता है कनेडा के दर्शन नहीं किये, जहां ऐसा ही हो रहा है। आइए इस लेख में जानिये ट्रूडो प्रशासन की इसी दरियादिली के बरे में, जिसका सर्वाधिक लाभ भारत विरोधी तत्वों को मिलेगा।

अलगाववादियों को कोई हाथ नहीं लगाएगा!

कनाडा, जो अपने बहुसांस्कृतिक सद्भाव, अप्रवासियों की खुली-सशस्त्र स्वीकृति और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए विश्व प्रसिद्ध है, आतंकवाद और अलगाववाद के मुद्दों पर अपने वर्तमान दृष्टिकोण से खलबली मचा रहा है। कभी जिस विषय का मज़ाक उड़ाया जाता था, उसी तुष्टीकरण ने कनाडा को जकड़ सा रखा है।

चिंता की पहली चिंगारी तब भड़की जब यह खुलासा हुआ कि कनाडा की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी, कनाडा की सुरक्षा खुफिया सेवा (CSIS) ने सिख सक्रियता से जुड़े व्यक्तियों की एक सूची तैयार की थी, विशेष रूप से खालिस्तान आंदोलन से संबंधित। ऐसा माना जाता है कि हरदीप निज्जर की हत्या के बाद इन व्यक्तियों पर हत्या का खतरा मंडरा रहा था, जिसके परिणामस्वरूप कनाडा के भीतर और बाहर सिख समुदाय से बड़े पैमाने पर हंगामा हुआ।

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जिन्हे ज्ञात न हो, खालिस्तान आंदोलन, जो भारत के पंजाब क्षेत्र में एक अलग सिख राज्य बनाने की मांग करता है, अतीत में कई हिंसक कृत्यों से जुड़ा रहा है, और इसके समर्थकों को कई लोगों द्वारा शांति और स्थिरता के लिए खतरे के रूप में देखा जाता है। इस प्रकार, इन व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने का कनाडा सरकार का निर्णय न केवल चिंताजनक है, अपितु कनेडियाई सरकार के अतार्किक आदर्शों का भी प्रतीक है, जो तुष्टीकरण के लिए संसार के साथ साथ अपना घर भी स्वाहा करने को तैयार है।

और कितना बेइज्जत कराओगे ट्रूडो?

इससे भी चिंताजनक बात तो यह है कि जो कनाडा मानवाधिकार और लोकतान्त्रिक मूल्यों का ध्वजवाहक बना हुआ है, वो उन तत्वों को बढ़ावा दे रहा है, जिनके मन में वैश्विक शांति भंग करने के अतिरिक्त कोई मंशा है, जिसके लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। सोचिए, एक देश अपने यहाँ बसे अपराधियों को बचाने के लिए सब कुछ एक करने को उद्यत है। किसी ने सत्य ही कहा था, ट्रुथ इज स्ट्रेनजर दैन फिक्शन!

प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो, कार्रवाई के इस तरीके के साथ, अज्ञात जल को नेविगेट करते हुए प्रतीत होते हैं, जो संभावित रूप से कनाडा को एक खतरनाक चट्टान पर ला रहे हैं। ऐतिहासिक प्रमाण बताते हैं कि ऐसे कट्टरपंथी तत्वों के तुष्टिकरण से शायद ही कभी शांतिपूर्ण समाधान निकलता है। इसके बजाय, यह अक्सर विभाजनकारी प्रवृत्तियों में वृद्धि की ओर ले जाता है, फलस्वरूप तुष्टिकरण करने वाले राष्ट्र के लिए बड़ी चुनौतियाँ पैदा करता है। वैसे ट्रूडो चचा, जब इतना खर्चा कर ही दिया था, तो मियां गुरपतवंत सिंह पन्नू को भी इस योजना का सहभागी बनाते। उन्हे काहे इस ‘परोपकारी’ नीति के लाभार्थी बनने से वंचित किया?

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कनाडा सरकार की हालिया कार्रवाइयों ने, विभाजनकारी विचारधाराओं से जुड़े व्यक्तियों को एक सुरक्षा कवच प्रदान करते हुए, देश और विश्व स्तर पर प्रतिक्रियाओं का एक भँवर पैदा कर दिया है। ये नीतिगत बदलाव तुष्टिकरण और शांति बनाए रखने के बीच एक महीन रेखा को पार करते हुए दिखाई देते हैं। अब कनाडा की आगे की राह, ये तो ईश्वर ही जानता है, या फिर जस्टिन ट्रूडो, जिनके मन में कनाडा का हित तो इस समय बिल्कुल भी नहीं है।

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