केजरीवाल का कांग्रेस को अनूठा ऑफर: पंजाब और दिल्ली छोड़ दो, एमपी और राजस्थान ले जाओ!

“अब्बा नहीं मानेंगे!”

राजनीति को अक्सर शतरंज के खेल के रूप में वर्णित किया जाता है, जहां सोचे समझे दांव एवं  तेजी से रणनीति बनाना सफलता की कुंजी है। ऐसा ही एक अप्रत्याशित दांव अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) की ओर से आया है, जिसने हाल ही में कांग्रेस को एक दुस्साहसी प्रस्ताव दिया था जो संभावित रूप से कई भारतीय राज्यों में राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है।

इस लेख में आइये आम आदमी पार्टी की नई पेशकश के बरे में जानें, और जानें कैसे ये प्रस्ताव कांग्रेस समेत “विपक्षी एकता” की रूपरेखा तय करेगा।

“एमपी और राजस्थान मिलेगा फ्री!”

देखो भई, राजनीति में न कोई स्थाई मित्र होता है और न ही स्थाई शत्रु। परंतु आम आदमी पार्टी की अधीरता तो नेक्स्ट लेवल है। AAP ने खुले तौर पर सुझाव दिया है कि यदि कांग्रेस ने दिल्ली और पंजाब में दरियादिली तो वे मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनावी दौड़ से हट जाएंगे।

दिल्ली सरकार के मंत्री और आप नेता सौरभ भारद्वाज ने इस असामान्य प्रस्ताव की पुष्टि की है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, “कांग्रेस को दिल्ली में एक के बाद एक शून्य सीटें मिलीं, लेकिन फिर भी अगर वे दिल्ली और पंजाब में चुनाव नहीं लड़ने का वादा करते हैं, तो हम मध्य प्रदेश-राजस्थान में चुनाव नहीं लड़ेंगे।” इस बयान की स्पष्टता पारंपरिक राजनीतिक मानदंडों को बदलने के लिए आप की तत्परता को रेखांकित किया है। अब अध्यादेश को रद्द करने के लिए विपक्षी एकता का कुछ तो प्रदर्शन होना चाहिए।

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क्या करेगी अब कांग्रेस?

वैसे आम आदमी पार्टी के नेता लोग के लिए एक छोटा सा प्रश्न : इतना ओपन मंडावली कौन करता है? खैर, इनके विचार इन्ही को बहाए, परंतु इस प्रस्ताव ने कांग्रेस को गजब के धर्मसंकट में डाल दिया है।  एक ओर, प्रस्ताव को स्वीकार करने का मतलब उस पार्टी को स्वीकार करना होगा जिसने अपना प्रारंभ ही कांग्रेस को गरियाने से किया था।

ऐसे में कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रिया राष्ट्रीय हित का विषय बन जाती है। चुनौतीपूर्ण समय का सामना करने के बावजूद कांग्रेस भारत की प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों में से एक बनी हुई है। इस तरह, केजरीवाल के प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार करने से पार्टी के भविष्य के पाठ्यक्रम और जनता की नज़र में इसकी छवि को महत्वपूर्ण रूप से आकार मिलेगा, और कांग्रेस तो बिल्कुल नहीं कि राहुल गांधी के “राज्याभिषेक” में किसी भी प्रकार की बाधा हो!

इसके अलावा इस स्थिति को और जटिल बनाती है कांग्रेस हाइकमान, विशेष दिल्ली इकाई के प्रशासन में फेरबदल। रिपोर्ट्स की मानें तो जल्द ही अजय माकन की जगह विवादित नेता कन्हैया कुमार ले सकते हैं। अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है, लेकिन इस तरह का बदलाव आप की पेशकश के बारे में कांग्रेस पार्टी के फैसले को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है।

वैसे भी कन्हैया कुमार, जिनका विवादों के साथ गहरा नाता रहा है, अपने राजनीतिक पारी का आरंभ पहली ही गेंद पर आउट होकर तो बिल्कुल न करना चाहें! केजरीवाल के प्रस्ताव की स्वीकृति को समर्पण के प्रतीक के रूप में देखा जा सकता है, जो कुमार के लिए अपने राजनीतिक प्रोफ़ाइल के लिए बिल्कुल भी श्रेयस्कर नहीं।

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2024 की यात्रा हुई और रोचक!

दरअसल, आप और कांग्रेस के बीच प्रस्तावित समझौता भारतीय राजनीति की गतिशील, अक्सर अप्रत्याशित प्रकृति का एक सम्मोहक चित्रण प्रस्तुत करता है। फैसला अब कांग्रेस नेतृत्व के पास है, जिसकी प्रतिक्रिया का देश भर के राजनीतिक पर्यवेक्षकों को बेसब्री से इंतजार रहेगा। ये एक ऐसा ऑफर है, जिसे स्वीकार करने के भी अपने जोखिम है, और अस्वीकार करने के भी।

कुछ भी कहिए, परंतु आम आदमी पार्टी ने अपने इस कदम से “विपक्षी एकता” पर प्रश्नचिन्ह अवश्य लगाया है। कांग्रेस स्वीकार करेगी तो उसका राजनीतिक कद रसातल में जाएगा, और नहीं स्वीकार करने पर 2024 का इलेक्शन। व्हाट टू डू राउल विंन्सी, प्लीज टेल!

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