ज्ञानवापी उत्खनन: हाईकोर्ट ने आदेश दिया, सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई

क्या तकलीफ है इनको?

कभी कभी समझ में ही नहीं आता कि आखिर सुप्रीम कोर्ट की वर्तमान पीठ चाहती क्या है? कुछ मामलों को ऐसे देखेगी, जैसे कि ये कोर्ट का समय बर्बाद क्र रहे हैं, चाहे वो देश की अखंडता से सम्बंधित ही क्यों न हो. परन्तु कुछ मामलों इनकी अति सक्रियता हमें सोचने पे विवश कर देती है : आखिर क्या तकलीफ है इनको?

२६ जुलाई तक ASI सर्वे पे रोक!

हाल ही में बहुचर्चित ज्ञानवापी परिसर के सर्वेक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने २६ जुलाई तक रोक लगा दी है. ये न केवल चौंकाने वाला निर्णय है, अपितु वर्तमान पीठ की प्राथमिकताओं पर भी प्रश्न चिन्ह लगाता है. इस मुद्दे में मूल काशी विश्वनाथ मंदिर शामिल है, जो इसे हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए एक संवेदनशील मामला बनाता है। ज्ञानवापी मस्जिद की वास्तविक उत्पत्ति का पता लगाने के लिए गहन जांच की आवश्यकता है।

बता दें कि वाराणसी जिला न्यायालय द्वारा एएसआई सर्वेक्षण के आदेश के बाद ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जब पहले उच्च न्यायालय से संपर्क न करने के बारे में सवाल किया गया, तो याचिकाकर्ता के वकील ने सर्वेक्षण को स्थगित करने से उच्च न्यायालय के इनकार का हवाला दिया। विभिन्न अदालतों के बीच समन्वय की कमी कानूनी प्रक्रिया में भ्रम पैदा करती है और विवाद के समाधान में और देरी करती है। जब पता है कि सत्य क्या है, तो फर्जी के विलम्ब लगाके क्या प्राप्त होगा?

वर्तमान पीठ की अजब गजब प्राथमिकताएं

याचिका की सुनवाई के दौरान प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि एएसआई सर्वेक्षण से विवादित ढांचे को कोई नुकसान नहीं होगा। सर्वेक्षण को गैर-भेदक यानी Non Penetrative डिज़ाइन किया गया था और साइट का अध्ययन करने के लिए ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) जैसी विधियों का उपयोग किया गया था।

और पढ़ें: Gyanvapi carbon dating: इलाहाबाद हाईकोर्ट की कृपा से शीघ्र सामने आएगा ज्ञानवापी का सच

इन आश्वासनों के बावजूद, भारत के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश ने 26 जुलाई तक सर्वेक्षण को प्रभावी ढंग से निलंबित करते हुए स्थगन आदेश पारित करने का फैसला किया। यह कदम वर्तमान पीठ द्वारा विशेषज्ञों और एएसआई की व्यावसायिकता में विश्वास की कमी को दर्शाता है।

कुछ महीने पहले ही, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एएसआई के विभिन्न पुरातात्विक अधिकारियों से परामर्श के बाद ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंगम के आधिकारिक कार्बन डेटिंग सर्वेक्षण को मंजूरी दी थी। उच्च न्यायालय के निर्णय और उच्चतम न्यायालय के कार्यों के बीच विरोधाभास संवेदनशील मामलों से निपटने में एकरूपता की कमी को उजागर करता है, जिससे आलोचना और अटकलों के लिए जगह बच जाती है।

ये ठीक नहीं है!

पंचायत चुनावों से पहले और बाद में बंगाल में व्यापक बर्बरता जैसे गंभीर मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी और ASI सर्वे को रोकने में इनकी तत्परता निराशाजनक है। स्वतंत्र न्यायपालिका एक कामकाजी लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है, परन्तु कुछ मामलों पर इसकी कॅल्क्युलेटेड चुप्पी और दूसरों में सक्रिय हस्तक्षेप लोगों को इनकी तत्परता पर पुनर्विचार को विवश करता है। न्यायपालिका की निष्पक्षता में जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए निष्पक्ष और संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है।

और पढ़ें- अपनी ही भूमि वक्फ से छुड़ाने को इलाहाबाद हाईकोर्ट को लगाना पड़ा एडी चोटी का ज़ोर

ज्ञानवापी उत्खनन मुद्दा संवेदनशील मामलों को निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता के साथ संभालने की सुप्रीम कोर्ट की क्षमता के लिए एक परीक्षण स्थल बन गया है। हालाँकि, एएसआई सर्वेक्षण को रोकने का हालिया निर्णय अदालत की प्राथमिकताओं और निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह पैदा करता है।

निष्पक्षता के प्रति प्रतिबद्धता के साथ-साथ विभिन्न अदालतों के बीच अधिक सामंजस्यपूर्ण और समन्वित दृष्टिकोण, यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि न्याय कायम रहे और न्यायपालिका में जनता का विश्वास बहाल हो। सर्वोच्च न्यायालय के लिए न्याय, पारदर्शिता और सभी के लिए समानता के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए अपने कार्यों का आत्मनिरीक्षण और पुनर्मूल्यांकन करने का समय आ गया है।

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version