भारतीयों ने उड़ाया खालिस्तानियों का चैन

सब कुछ शांतिपूर्वक होगा!

ओए खालिस्तान से याद आउन्दा, मियां गुरपतवंत कित्थे सी?

भारत द्रोही अपनी कमर कस लें, क्योंकि अब ये वो भारत नहीं जो वैश्विक मंचों पर लिबीर लिबीर करता और एक गाल पे थप्पड़ खा दूसरा आगे करता। अब ये वो भारत है जिसका चाय नाश्ता मोसाड के साथ होता है, और डिनर में आतंकियों से लेकर खालिस्तानियों तक का स्वाद चाव से लिया जाता है!

अभी भी अगर किसी को लगता है कि अवतार सिंह खांडा की मृत्यु प्राकृतिक कारणों से हुई, तो तनिक उनके भ्राताओं के बीच के वातावरण का मुआयना कर लें! जितनी जल्दी वे “खालिस्तान” नहीं बोल पा रहे, उससे अधिक तेजी से उनके आकाओं का सफाया हो रहा है!

परंतु ये तो प्रारंभ है। कुछ परमजीत सिंह पंजवार और हरदीप सिंह निज्जर जैसे अल्ट्रा लीजेंड भी थे, जिनका जीवन सिद्धू मूसेवाला के गीत समान था : पल्ले कुछ न पड़ रही, पर मजा बहुत आ रही। किसने बोला कि अंत भी सिद्धू मूसेवाला जैसा ही हुआ? ऐसी कान्फिडेन्शल बातें यूं ही सार्वजनिक नहीं करते, खालिस्तानियों के पप्पा बुरा मान जाएंगे! ओए खालिस्तान से याद आउन्दा, मियां गुरपतवंत कित्थे सी?

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भारत सब देख रहा है!

इस बीच, दुनिया के दूसरी तरफ, अमेरिका और कनाडा में भारतीय दूतावास कुछ अनूठी कलाकृति के लिए कैनवास समान बन गए हैं। मोनेट या वान गाग को भूल जाओ; इन खालिस्तानियों ने अपनी हताशा व्यक्त करने के लिए अलग ही मंच तैयार किया है। “किल इंडिया” के पोस्टर घूम रहे हैं, अलाव तापे जा रहे हैं। खैर, इसके लिए शुभकामनाएँ, क्योंकि भारत देख रहा है, और बॉन्ड ब्रांड की चींटियाँ भी, जो खालिस्तानियों के रातों की नींद और दिन का चैन उड़ाने के लिए पर्याप्त है!

भारतीय खुफिया एजेंसियों ने अब मोसाड और CIA को ही अपने तरीकों से चुनौती देना प्रारंभ किया है। बस तीन चार लोग क्या परलोक सिधारे, पूरे के पूरे खालिस्तानी खेमे में त्राहिमाम मचा हुआ। रावलपिंडी से लेकर टोरोन्टो तक मदद की पुकार और चीत्कार गूंज रही है। परंतु अपने खुफिया एजेंट भी तय कर लिए : सब कुछ शांतिपूर्वक तरीके से होगा!

परंतु इन खालिस्तानियों की हालत चुनाव परिणाम के दिन वाले काँग्रेसियों जैसी क्यों हो गई है? उत्तर सरल है : भारत सब देख रहा है! अब, आइए कमरे में हाथी (या मुझे चींटी कहना चाहिए?) को संबोधित करें। ये खालिस्तानी अपनी पैंट से क्यों कांप रहे हैं? यह वास्तव में सरल है: भारत देख रहा है! उनकी हर हरकत, उनका हर विरोध, और हां, जवाबी कार्रवाई करने की उनकी हर कोशिश। तो, मेरे प्यारे खालिस्तानियों, पुल्स आगी पुल्स पर नाचने के लिए तैयार रहें!

ओ पुल्स आगी पुल्स होगा खालिस्तान का नया नारा!

वैसे पुल्स से याद आया, इस मीम ने अलग कहर बरपाया हुआ है। क्या अमृतपाल, क्या गुरपतवंत, रावलपिंडी में शरण किए अपने गोपाल पाजी तक इसके प्रताप से कंपकाँपा रहे हैं।  यह ऐसा है जैसे चींटियों के पास अपनी गुप्त भाषा है, और वे इसका उपयोग खालिस्तानियों के खिलाफ अपनी सेना को एकजुट करने के लिए कर रही हैं। कौन जानता था कि चींटियाँ मीम फ़्रेंडली भी होती हैं?

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ऐसा लगता है कि खालिस्तानी जाल में नहीं फंसे है, अपितु स्वयं जाल में प्रविष्ट किए हैं। इन चरमपंथियों द्वारा भारतीय उच्चायोग पर किए गए हमलों ने उनका काम आसान कर दिया। इसीलिए कहा जाता है कि ऐसा कोई कार्य न करे, जिसके पीछे शत्रु आपको उनकी विजय सुनिश्चित करने हेतु आभार प्रकट करें!

और आइए नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर के बुद्धिमान शब्दों को न भूलें। उन्होंने बार-बार चेतावनी दी है कि भारत की संप्रभुता को चुनौती देने के परिणाम भुगतने होंगे। खैर, किसने सोचा होगा कि उन परिणामों में अथक, आक्रमणकारी चींटियों की सेना शामिल होगी? यह युगों-युगों के लिए एक सबक है! याद रखें, अगली बार जब आप किसी राष्ट्र को चुनौती देने की योजना बनाएं, तो उन विशेष बलों से सावधान रहें जो आपके लिए प्रतीक्षारत हैं!

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