हृदयगति को तनिक स्थिर करते हुए देवियों और सज्जनों से विनम्र अनुरोध है कि वे अपने आसान के कमरबंद यानि बेल्ट बांध ले, क्योंकि एक बार पुनः आपको रोमांच, एक्शन, ड्रामा और कॉमेडी से पूर्ण, भारतीय राजनीति की नई कड़ी आपकी सेवा में प्रस्तुत है। जितना ट्विस्ट एक हॉलीवुड फिल्म में न मिले, उससे अधिक की मिलेगी सदैव गारंटी, क्योंकि अब बारी है नीतीश कुमार की!
परंतु उससे पूर्व, एक छोटा सा रीकैप! महाराष्ट्र में अपने ही काका को टोपी पहनाते हुए अजीत पवार ने पुनः एनडीए का हाथ थाम लिया है, और अब शिंदे सरकार में बतौर उपमुख्यमंत्री सारी सुविधाओं का आनंद उठाया रहे हैं। वैसे आनंद से स्मरण हुआ, इस निर्णय पे खान मार्केट मंडली की तड़प और चुभन को देखने का आनंद भी अद्वितीय होगा!
अब नीतीश की बारी?
पहले उद्धव निपटे, फिर शरद काका का नंबर आया, तो अब अगले कौन : नीतीश कुमार? ऐसा हम नहीं, सोशल मीडिया के विशेषज्ञ कहते फिर रहे हैं, और आग में पेट्रोल डालते हुए चिराग पासवान ने यहाँ तक कह दिया कि कई विधायक इनके संपर्क में है। भैया, इतनी जल्दी तो कांच का गिलास न टूटे, जितनी जल्दी गठबंधन टूट रहे! शायद यही राजनीति है!
जो भी हो, महाराष्ट्र की घटना ने बॉलीवुडिया भूकंप की तरह राजनीतिक परिदृश्य को हिलाकर रख दिया है। जाति और पहचान की राजनीति के पवार ब्रांड को भारी झटका लगा, विशेषकर तब, जब उद्धव ठाकरे और कांग्रेस नीलगिरी के पेड़ पर कोआला की तरह शरद पवार के समर्थन से चिपक गए। वैसे कई राजनीतिक विश्लेषकों प्रफुल्ल पटेल के साथ एक साक्षात्कार काफी मददगार साबित हो सकता है। यह एक राजनीतिक रूबिक क्यूब को सुलझाने जैसा है, लेकिन अधिक हास्यपूर्ण मोड़ और कम रंगों के साथ!
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विपक्षी एकता का सच
लेकिन रुकिए, और भी बहुत कुछ है! पटना में विपक्ष की बैठक भी एक कारण है, जिसके पीछे अब नीतीश के इस अनोखे परमोसन की चर्चा हो रही है! । नीतीश कुमार की राजनीतिक किस्मत सीसे के गुब्बारे से भी तेजी से डूब रही है और यादव कुनबे का दूसरा जत्था भी उन्हें बचाने में सक्षम नहीं हो सकता है। यह एक डूबता हुआ जहाज है, दोस्तों, और हम सब हाथ में पॉपकॉर्न की बाल्टी लेकर अराजकता देखने के लिए उपस्थित है।
और हमें उस स्वर्णिम क्षण को नहीं भूलना चाहिए जब विपक्षी एकता घोटाला एक जादूगर की चाल के गलत होने से भी अधिक तेजी से उजागर हुआ था। इसके लिए हमें राहुल गांधी को धन्यवाद देना चाहिए! यूनिटी को एक कॉमेडी शो में बदलने की उनकी त्रुटिहीन टाइमिंग और कुशलता सराहना की पात्र है। जहां तक शरद पवार की बात है तो ऐसा लगता है कि भाई ने अपनी प्राथमिकताएं तय कर ली हैं। अफवाह यह है कि वह 2029 तक सत्ता से बाहर रहना बर्दाश्त नहीं कर सकते। इसे कहते हैं राजनीति के प्रति घनघोर कमिटमेंट!
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तो, प्रिय दर्शकों, अपनी सीट बेल्ट बांध लें और नीतीश कुमार बनाम चिराग पासवान की लड़ाई, बुद्धि की लड़ाई, अप्रत्याशित गठबंधन और राजनीतिक फूहड़ कॉमेडी के लिए तैयार हो जाएं। हर मोड़ और बदलाव के साथ सत्ता के गलियारों में ठहाके गूंजते हैं। कौन शीर्ष आएगा? केवल समय ही बताएगा, लेकिन एक बात निश्चित है – भारतीय राजनीति हमें आश्चर्यचकित करना, मनोरंजन करना और हंसी के ठहाकों से लहालोट करना कतई न छोड़ेगी!
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