एक सज्जन पुरुष ने कहा था, “जीवन का सबसे उच्चतम उपयोग कुछ ऐसे रचने में है, जो जीवन के बाद भी बनी रहे!” ये बात हमारे भारतीय टीवी के ‘भीष्म पितामह” यानी मुकेश खन्ना पर शत प्रतिशत चरितार्थ होती है.
इस लेख में जानिये अविस्मरणीय कलाकार मुकेश खन्ना के बारे में, जिन्होंने भीष्म से लेकर शक्तिमान जैसे कई अद्वितीय रोल किये, और कैसे उनके योगदान ने पीढ़ियों से दर्शकों के दिलों पर एक अमिट छाप छोड़ी है।
एक कठिन राह से “भीष्म पितामह” तक!
मुकेश खन्ना ने अपना करियर सिनेमा से प्रारम्भ किया, जब १९८१ में फिल्म “रूही” में इन्हे एक छोटा सा रोल मिला. इनके प्रभावशाली प्रतिभा एवं रूपवान व्यक्तित्व के बाद भी, इन्हे प्रारम्भ में काफी स्ट्रगल करना पड़ा. परन्तु इनका भाग्य इनसे नहीं रूठा था, क्योंकि इनका परिचय हुआ बी आर चोपड़ा से.
क्या आपको पता है कि भीष्म पितामह के लिए मुकेश प्रथम विकल्प नहीं थे? पुनीत इस्सर की भांति इन्हे किसी और रोल के लिए प्रारम्भ में चुना गया था. स्वयं मुकेश खन्ना के शब्दों में, “हमारी यात्रा प्रारम्भ हुई जब [चोपड़ा साब] इन्होने महाभारत के लिए मुझे बुलाया. मैं उस समय फिल्में कर रहा था, और हीरो था, परन्तु उन्होंने पूछा कि क्या मैं महाभारत कर सकता हूँ. मैंने पूछा, “क्या रोल मिलेगा?” उन्होंने बोला, “दुर्योधन का”. परन्तु परिस्थितियां ऐसी बैठी कि भीष्म पितामह की भूमिका निभाने का सौभाग्य मुझे मिला!”
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एक वो दिन और एक आज का दिन. आज भी मुकेश खन्ना को इस रोल के लिए सर्वाधिक प्रशंसा मिलती है. इस रोल ने मनोरंजन उद्योग में मुकेश के लिए एक विशिष्ट स्थान प्राप्त किया. परन्तु उस समय के फिल्म उद्योग ने इनके साथ न्याय किया, और इन्हें सपोर्टिंग रोल ही ऑफर किये गए. परन्तु कई फिल्मों में इन्हे जो भी अवसर मिला, उसे खूब भुनाया और अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, चाहे वह “तहलका” हो या फिर “सौदागर”!
कैसे हुआ शक्तिमान का उदय
हालाँकि, 1997 में मुकेश खन्ना ने एक ऐसा निर्णय लिया जिसने भारतीय टेलीविजन के परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल दिया। आम लोगों को पसंद आने वाली घरेलू सुपरहीरो श्रृंखला बनाने की उनकी इच्छा को प्रारम्भ में किसी ने नहीं भाव दिया! सभी का एक ही ध्येय था : “अब कौन उतनी मेहनत करे?”
परन्तु इन चुनौतियों और तंज से विचलित न होकर मुकेश ने अपना रास्ता खुद चुना और इस तरह, “शक्तिमान” का जन्म हुआ! इस अभूतपूर्व शो ने एक्शन, नैतिकता और भारतीय मूल्यों के अनूठे मिश्रण से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। मुकेश खन्ना का शक्तिमान का चित्रण एक सांस्कृतिक क्रान्ति बन गया, जिसने एक पीढ़ी को प्रेरित किया और भारतीय दर्शकों की सामूहिक चेतना पर एक अमिट छाप छोड़ी।
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“शक्तिमान” द्वारा प्राप्त व्यापक लोकप्रियता के बाद, मुकेश खन्ना ने अपनी विरासत को बढ़ावा देना जारी रखा। उन्होंने पहली भारत की सर्वप्रथम फुल लेंथ एनिमेटेड फिल्म, “हनुमान” में अपना सर्वस्व अर्पण किया। उनकी दमदार आवाज ने पवनपुत्र हनुमान के चरित्र को जीवंत कर दिया और अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। आज भी, मुकेश खन्ना का हनुमान का चित्रण सभी उम्र के लोगों को मंत्रमुग्ध और मोहित करता है।
समर्थन करे या विरोध, इन्हे अनदेखा नहीं कर सकते!
मुकेश खन्ना भी विवादों से अछूते नहीं हैं, और कुछ लोग उन्हें घमंडी करार दे सकते हैं। हालाँकि, निर्विवाद सत्य यह है कि उन्होंने विशेष रूप से भारतीय टेलीविजन में जो विरासत बनाई है, उसकी बराबरी आज भी बहुत कम लोग कर सकते है. जो व्यक्ति “चंद्रकांता” में अपने काल्पनिक किरदार से प्रभाव डाले, तो उसमें कुछ तो बात होगी.
मुकेश खन्ना की यात्रा महत्वाकांक्षी अभिनेताओं और टेलीविजन हस्तियों के लिए प्रेरणा का काम करती है। उनके दृढ़ संकल्प, लचीलेपन और अपनी कला के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें एक सच्चे पथप्रदर्शक के रूप में अलग खड़ा किया है। श्रद्धेय भीष्म पितामह के अवतार से लेकर प्रतिष्ठित सुपरहीरो शक्तिमान में जान फूंकने तक, उनके योगदान ने भारतीय टेलीविजन के परिदृश्य को आकार दिया है और लोकप्रिय संस्कृति पर एक अमिट प्रभाव छोड़ा है।
जैसा कि हम मुकेश खन्ना के शानदार करियर और स्थायी विरासत का उत्सव मनाते हैं, आइए हम दर्शकों की पीढ़ियों पर उनके गहरे प्रभाव को स्वीकार करें। पात्रों को जीवंत बनाने, नैतिक मूल्यों को स्थापित करने और दर्शकों के साथ भावनात्मक संबंध बनाने की उनकी क्षमता उनकी असाधारण प्रतिभा और अटूट समर्पण का प्रमाण है.
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