पीएम मोदी का यूके को संदेश स्पष्ट है: दोनों हाथों में लड्डू का सोचे भी नहीं। एक हाथ से व्यापार का ऑफर और दूसरे हाथों से भारतीय अपराधियों को आश्रय देना अब बिल्कुल नहीं चलेगा।
इस लेख में जानिये यूके के साथ भारत के वार्तालाप की उन शर्तों के बारे में, जिनपर कम ही चर्चा होती है।
यूके पर बढ़ रहा दबाव
बॉलीवुड से आगे बढ़ें, क्योंकि असली ड्रामा भारत और यूके के बीच हो रहा है! कथित तौर पर प्रधानमंत्री मोदी ने भारत-ब्रिटेन व्यापार संबंधी हर बैठक में विजय माल्या और नीरव मोदी के प्रत्यर्पण का मुद्दा उठाया है।
इस समय सबसे अधिक दबाव में ऋषि सुनक की ब्रिटिश सरकार है क्योंकि भारतीय प्रतिनिधिमंडल लंबित प्रत्यर्पण के संबंध में लगातार दबाव बना रहे हैं। ऐसा लगता है कि जैसे ही ब्रिटेन के प्रतिनिधि भारत में कदम रखते हैं, वे माल्या और नीरव मोदी को न्याय का सामना करने के लिए वापस भेजने की मांग करने लगते हैं।
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वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे के मुताबिक, पीएम मोदी प्रत्यर्पण कार्यवाही की प्रगति के बारे में जानने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। यह एक प्रकार का अनुष्ठान बन गया है। कल्पना कीजिए कि आप ब्रिटेन के एक प्रतिनिधि हैं और पहला प्रश्न आप पर एक बाउन्सर की तरह फेंका गया है!
भगोड़ों को आश्रय देने वालों से व्यापार नहीं!
असल में पीएम मोदी का संदेश स्पष्ट है: दो नावों पर सवारी करने की अंग्रेजी खुजली अंग्रेजों को ही ले डूबेगी। पीएम मोदी ने यूके सरकार को एक सख्त संदेश दिया है: आप इसे दोनों तरीकों से नहीं कर सकते। एक व्यापार भागीदार और भगोड़ों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह होने से काम नहीं चलेगा। यह एक ही समय में दो घोड़ों की सवारी करने की कोशिश करने और एक सुगम यात्रा की उम्मीद करने जैसा है। क्षमा करें, यूके, लेकिन मोदी आपको इतनी आसानी से परेशान नहीं होने दे रहे हैं।
किंगफिशर एयरलाइंस के कुख्यात चेयरमैन विजय माल्या को 2019 से प्रत्यर्पित करने का आदेश दिया गया है, लेकिन वह अभी भी यूके में हैं। इस बीच, हीरा कारोबारी नीरव मोदी 2019 में गिरफ्तारी के बाद से दक्षिण लंदन की वैंड्सवर्थ जेल में रह रहा है। भारत और ब्रिटेन के बीच 1992 में हस्ताक्षरित प्रत्यर्पण संधि में कुछ रुकावटें आती दिख रही हैं।
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ब्रिटेन की मुसीबतें सिर्फ भगोड़ों से खत्म नहीं होतीं। देश पर भारत विरोधी तत्वों, विशेषकर खालिस्तानियों को शरण देने का आरोप लगाया गया है। हालांकि अपने कनाडाई समकक्षों की तरह निर्लज्ज नहीं होने के बावजूद, इस मुद्दे को संबोधित करने में ब्रिटेन की अनिच्छा उसके औपनिवेशिक अहंकार के बारे में सवाल उठाती है जो अभी भी कायम है।
भारत पीछे हटने वाला या बेनेफिट ऑफ डाउट देने के मूड़ में नहीं। गेंद अब ब्रिटेन के पाले में है। क्या न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाएंगे, या वे अहंकार का नृत्य जारी रखेंगे? ब्रिटेन को यह तय करना होगा कि वह व्यापार को प्राथमिकता देना चाहता है या भगोड़ों को आश्रय देना चाहता है। दोनों स्थिति में इन्हे लाभ नहीं होगा, पर भारतीय अपराधियों को आश्रय देने से इनकी छवि और रसातल में जाती रहेगी।
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