वर्ल्ड कप में कुछ माह शेष है, और कोई उत्सुकता ही नहीं!

अकर्मण्यता का ही पुरस्कार है!

स्मरण है २०११ के वो गौरवशाली पल, जब महेंद्र सिंह धौनी के एक शॉट ने पूरे देश को उत्सव मनाने का एक नया अवसर दिया? क्या दिन थे वो, छह माह पूर्व से ही तैयारियां प्रारम्भ हो जाती, खिलाडियों के सफल प्रदर्शन के लिए मंगल कामना की जाती, हर टोटका अपनाया जाता, ताकि विपक्षी टीम कुछ भी करे, पर विजयी न हो. परन्तु २०२३ में तो स्थिति कुछ और ही है.

इस लेख में जानिये भारतीय क्रिकेट के इस नैतिक और सांस्कृतिक पतन के बारे में, जिसके कारण अब लोगों का क्रिकेट से भी मोहभंग होने लगा है, और कैसे खिलाडियों की अकर्मण्यता ही इस पतन को और बढ़ावा दे रहा है.

दोषी कौन?

वर्ल्ड कप में मात्र दो माह शेष है, परन्तु टिकट बुकिंग की छोड़िये, मीडिया या जनता के बीच इसको लेकर अंश मात्र भी उत्सुकता नहीं दिखाई देती. कभी एक मैच के लिए सरकार से दो दो हाथ करने को तैयार भारतीय प्रशंसकों में से कइयों को आज ये भी पता नहीं होगा कि किसका मैच है, और भारत किस किस टीम के विरुद्ध भिड़ेगा!

इसके लिए दोषी कौन? BCCI? भारत सरकार? या स्वयं भारतीय क्रिकेट टीम? कोई माने या न माने, परन्तु जो लोग कभी एक क्रिकेट मैच के टिकट के लिए गली के चिंटू से लेकर शहर के विधायक चचा से सेटिंग करने को तैयार हो जाते थे, अब वे ६० प्रतिशत डिस्काउंट पर भी विश्व कप टिकट खरीदने को शायद ही तैयार होंगे. या तो कहेंगे , आईपीएल का देखेंगे, या फिर भारतीय फुटबॉल टीम अथवा नीरज चोपड़ा के नए कारनामों का अपडेट जानने को उत्सुक होगा. निस्संदेह भारत बदल रहा है, पर किस कीमत पर?

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वैसे भी, किस आधार पर भारतीय क्रिकेट टीम का समर्थन कोई करेगा? उनका, जिनके लिए देश का मान सम्मान, कुछ नहीं मायने रखता? एक समय सीरीज़ हारने पर अच्छे अच्छे भावुक हो जाते, और आज उस वेस्टइंडीज़ से विजय प्राप्त करने को श्रेष्ठता समझ रहे हैं, जो अब क्रिकेट विश्व कप खेलने योग्य भी नहीं! कभी पाकिस्तान से हारने का ख्याल मात्र ही कई क्रिकेटरों को उद्वेलित कर देता, और लाख गालियों के बाद भी पाकिस्तानी खिलाडियों के साथ गर्मजोशी दिखाने में भारतीय खिलाड़ी कोई प्रयास अधूरा नहीं छोड़ते!

ये हेकड़ी लेकर कहाँ जायेंगे?

भारतीय खिलाडियों की इसी निर्लज्जता पर पूर्व दिग्गज तक क्रोधित हैं. भारत को पहली बार विश्व कप विजेता बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व कप्तान कपिल देव ने ‘द वीक’ से हुई बातचीत में कहा है, “इन खिलाड़ियों के बारे में एक अच्छी बात यह है कि वे आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। लेकिन गलत बात यह है कि इन खिलाड़ियों को लगता है कि वे सब कुछ जानते हैं। वे घमंड में डूबे रहते हैं, इसलिए उन्हें लगता है कि उन्हें किसी से कुछ भी पूछने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन हमारा मानना है कि एक अनुभवी व्यक्ति अच्छी मदद कर सकता है।”

परन्तु कपिल पाजी अकेले नहीं थे. कभी बड़े बड़े धुरंधर के रातों की नींद उड़ा देने वाले वेंकटेश प्रसाद ने इन घमंडी क्रिकेटरों को आड़े हाथों लेते हुए ट्वीट किया, “पैसा और पावर होने के बाद भी हम छोटी-छोटी कामयाबी का जश्न मनाने के आदी हो गए हैं और चैम्पियन टीम बनने से कोसों दूर हैं। हर टीम जीतने के लिए ही खेलती है और भारत भी ऐसा ही करता है। लेकिन समय के दृष्टिकोण और रवैया भी खराब प्रदर्शन होने का बड़ा कारण है”

भारतीय क्रिकेट खत्म?

तो क्या भारतीय क्रिकेट का अंत निश्चित है? कम से कम वर्तमान परिस्थितियों का आंकलन करते हुए तो यही लगता है! लोग अब अपना ध्यान हॉकी, बैडमिंटन, मुक्केबाज़ी, एथलेटिक्स, यहाँ तक की फुटबॉल पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. आशा भी आप उन्ही से करोगे न, जो कुछ करके दिखाएं?

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भारतीय क्रिकेट के वर्तमान ध्वजवाहकों को कोटि कोटि प्रणाम, जिन्होंने अपनी निकृष्टता से लोगों को मोहभंग होने पर विवश किया. कभी जिन क्रिकेटरों के लिए संसार की हर शक्ति से लड़ने को भारतीय तैयार रहते थे, आज उनमें न उत्साह है, न कुछ कर दिखाने की ललक. अब भी न चेते, तो विश्व कप में ही भारतीय क्रिकेट का डेथ सर्टिफिकेट छाप दिया जायेगा, जिसके लिए केवल यही दोषी होंगे!

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