बिक्रम चौधरी: दुष्कर्मी, “Hot Yoga” प्रशिक्षक एवं भगोड़ा!

मानवता पे कलंक है!

हमारा प्राचीन योग शास्त्र, जिसका उल्लेख मात्र ही आपको आध्यात्मिक मार्ग पे ले चले, वह योग, जो कभी गहन आध्यात्मिक प्रथाओं का प्रतीक था, दुर्भाग्यवश अब उपभोक्तावाद की भेंट चढ़ चुका है. ये न केवल योगा मैट एवं योगा पैंट्स के उद्भव से परिलक्षित होता है, अपितु योग के मूलभूत सिद्धांतों का भी उपहास उड़ाता है. इसी बीच प्रवेश होता है बिक्रम चौधरी का, एक ठग जो योगाचार्य का भेस धारण कर, न केवल अमेरिका में उत्पात मचाता है, अपितु अपने कार्यों से भारत भूमि को भी कलंकित करता है!

प्रारंभिक जीवन

छल कपट तो लगता है बिक्रम चौधरी के व्यक्तित्व का अभिन्न अंग था. बिक्रम चौधरी का जन्म 1944 में कलकत्ता, ब्रिटिश भारत में हुआ था। इनका दावा था कि इन्होने बालावस्था से ही प्रख्यात बॉडीबिल्डर बिष्णु चरण घोष की शरण में आकर योग का अध्ययन किया. इनके अनुसार, इन्होने अपनी किशोरावस्था में लगातार तीन वर्षों तक राष्ट्रीय भारत योग चैम्पियनशिप जीती थी। वो अलग बात है कि अगर लम्बी लम्बी फेंकने की कोई प्रतियोगिता होती, तो उसमें बिक्रम अनंत काल तक विजेता बने रहते.

असल में बिक्रम के दावों के ठीक विपरीत, भारत में योग आधारित प्रथम प्रतियोगिता 1974 में हुई, यानी जब वह भारत में थे भी नहीं. ESPN पर पॉडकास्ट श्रृंखला “30फॉर30” के लिए साक्षात्कार और जेरोम आर्मस्ट्रांग की पुस्तक के अनुसार, वर्तमान साक्ष्यों ने बिक्रम के योग चैम्पियनशिप जीतने के दावों को सिरे से नकारा है. इसमें ये भी बताया गया कि कैसे दावों के ठीक उलट बिक्रम ने  बिष्णु चरण घोष के अंतर्गत अपना प्रशिक्षण 5 वर्ष की आयु में नहीं, अपितु  1962 में प्रारम्भ किया था, जब वह 18 साल के थे।

बिक्रम का  प्रारंभिक ध्यान बॉडीबिल्डिंग और मसाज पर था। परन्तु वर्षों बाद, 1969 के दौरान, बिक्रम ने बिष्णु चरण घोष और अन्य वरिष्ठ शिक्षकों के अधीन विभिन्न आसनों पर अपना प्रशिक्षण छह महीने में पूरा करने का दावा किया, लेकिन उसे प्राणायाम (साँस लेने के व्यायाम), बंध पर अपना प्रशिक्षण पूरा करने का मौका नहीं मिला, क्योंकि घोष बाबू की १९७० में ही मृत्यु हो गई!

योग शास्त्र को लेकर बिक्रम के दावे उसकी शारीरिक विशेषताओं के साथ असंगत प्रतीत होते हैं। उसके शरीर का स्वरुप, योग शास्त्र के पारंपरिक आदर्शों से बहुत अलग रहा है, एवं उसकी स्व-घोषित संबद्धता पर संदेह पैदा करता है।

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चले बिक्रम अमेरिका की ओर!

1971 में, बिक्रम चौधरी ने संयुक्त राज्य अमेरिका  की ओर प्रस्थान किया, एवं एक नए अध्याय का प्रारम्भ किया, और अपने योग ब्रांड को व्यापक दर्शकों के सामने पेश किया। लॉस एंजेलिस में अपने प्रथम स्टूडियो की स्थापना करके, उसने अपनी विशिष्ट “बिक्रम योगा” का प्रचार किया।

असंख्य विवादों के बीच, बिक्रम चौधरी और उसके “बिक्रम योगा” का प्रभाव पूरे यूएस में तेजी से फैला। 1990 के दशक में, बिक्रम ने नौ-सप्ताह की अवधि वाले शिक्षक प्रमाणन पाठ्यक्रम शुरू किए, जिसमें कई प्रशिक्षक शामिल हुए। धीरे धीरे इस प्रोग्राम का प्रभाव अमेरिका के बाहर भी तेजी से फैलने लगा.

हालाँकि, इस सफलता की चकाचौंध के पीछे एक स्याह पहलू छिपा हुआ है, जैसा कि नेटफ्लिक्स द्वारा प्रसारित वृत्तचित्र “बिक्रम: योगी, गुरु, प्रीडेटर” में दर्शाया गया है।

बिक्रम का कुख्यात “बिक्रम योगा” / “हॉट योगा”

जब व्यक्ति अपने संस्कृति एवं अपने आदर्शों से विमुख हो जाता है, उसी समय वह विनाश के पथ पर अग्रसर हो जाता है. यह सच्चाई बिक्रम चौधरी के लिए भी सिद्ध होती है, जिसने योग की अपनी ‘अनोखी’ शैली का प्रचार किया, जो “हॉट योगा” के नाम से जाना जाता है, परन्तु जिसका योग शास्त्र से दूर दूर तक कोई नाता नहीं!

परन्तु प्रश्न तो अब भी व्याप्त है, “बिक्रम योगा” है किस चिड़िया का नाम? यह विशिष्ट योग शैली बिक्रम चौधरी की ‘रचनात्मक’ दृष्टि से उभरी है। इसमें 26 आसन और दो साँस लेने वाले व्यायामों का एक क्रम शामिल है, जिसे एक स्टूडियो में जानबूझकर एक ऐसे वातावरण में परफॉर्म किया जाता है, जो 105°F (40.6°C) तक गर्म किया जाता है। इस गर्म वातावरण के पीछे का इनका तर्क था लचीलेपन को बढ़ाना, रक्त परिसंचरण में सुधार करना, आदि। हालाँकि, सच्चाई इससे कोसों दूर है!

जब प्राणायाम को अमेरिकियों ने “Cardiac Coherence Breathing” के नाम से हथियाने का सोचा भी नहीं होगा, तभी से बिक्रम चौधरी अमेरिका समेत संसार के कई समुदायों को चूना लगा रहे थे. न तो इनका “बिक्रम योगा” हठ योग के समान जटिल था, और न ही इसका बाबा रामदेव द्वारा सिखाये जाने वाले “पतंजलि योग” से कोई सम्बन्ध था. घूम फिरके ठेठ दुपहरी में कुछ उटपटांग पोज को इन्होने “योगासन” के रूप में  प्रचार करने का दुस्साहस किया.

क्या आध्यात्मिकता के एक प्रतिबिम्ब पर कोई अपना कॉपीराइट जमा सकता है? हाँ, यदि आप बिक्रम चौधरी हैं तो! जिसकी योग पद्दति योग शास्त्र के आसपास भी न हो, उसने अपने “बिक्रम योगा” को एक्लूसिव बनाने के लिए योग शास्त्र को ही चुनौती दे दी, और कॉपीराइट का मुकदमा दर्ज किया, कि इनका योग ही सबसे उचित है, बाकी सब बकवास है.

२०११ में इसी उद्देश्य से बिक्रम ने योगा टू द पीपल के विरुद्ध अमेरिका के एक न्यायालय में याचिका दायर की,  जो इसी  के एक पूर्व शिष्य द्वारा स्थापित एक प्रतिस्पर्धी योग स्टूडियो था, एवं रणनीतिक रूप से न्यूयॉर्क शहर में चौधरी के बिक्रम योग स्टूडियो में से एक के करीब स्थित था। परन्तु यहाँ इन्हे मुंह की खानी पड़ी, क्योंकि अमेरिकी न्यायालय ने आश्चर्यजनक रूप से स्पष्ट किया कि योग शास्त्र या योग आसन किसी कॉपीराइट के अधीन नहीं हो सकते!

बिक्रम के घिनौने दुष्कर्म

परन्तु बिक्रम की वास्तविक सोच कितनी निकृष्ट हो सकती है, इसका आभास बहुत ही कम लोगों को रहा होगा. जनवरी 2014 तक, बिक्रम को यौन उत्पीड़न, असॉल्ट और विभिन्न प्रकार के भेदभाव के आरोप वाले पांच मुकदमों का सामना करना पड़ा। इनके विरुद्ध खड़े होने वालों में सबसे अग्रणी थी इन्ही की अधिवक्ता रही मिनाक्षी जाफ़ा-बोडेन। अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने महिलाओं एवं भांति भांति के अल्पसंख्यकों इनके कुत्सित और घृणित आचरण को देखा। इतना ही नहीं, बिक्रम के विरुद्ध इनके विद्रोह का कारण भी यौन शोषण था, जिसका विरोध करने पर इन्हे बिक्रम चौधरी ने निष्कासित किया.

एक समानांतर मामले में, बिक्रम के विरुद्ध योग शिक्षिका सारा बॉन ने यौन उत्पीड़न का मुकदमा दायर किया। इस कानूनी दांवपेंच के अंत में जनवरी 2016 में जूरी द्वारा जाफ़ा-बोडेन को वास्तविक क्षतिपूर्ति के रूप में $924,500 देने का निर्णय सुनाया गया. जूरी ने चौधरी के कार्यों को दुर्भावनापूर्ण, दमनकारी नीतियों का अनुसरण करने और धोखाधड़ी के लिए दोषी माना, जिससे मीनाक्षी को $6.4 मिलियन की अतिरिक्त क्षतिपूर्ति प्रदान हुई.

ये कानूनी कार्यवाही चौधरी की सार्वजनिक छवि और उसके कथित व्यवहार के बीच स्पष्ट अंतर को उजागर करती है, जिससे उसके चरित्र पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लग गया. ईवा ऑर्नर द्वारा निर्देशित 2019 नेटफ्लिक्स डॉक्यूमेंट्री “बिक्रम: योगी, गुरु, प्रीडेटर” में, बिक्रम के वास्तविक आचरण को चित्रित किया गया। डॉक्यूमेंट्री उसके अभद्र भाषा को उजागर करती है, और उसके दुष्कर्मों एवं भेदभावपूर्ण व्यवहार पर भी प्रकाश डालती है.

नस्लीय भेदभाव एवं “श्वेत वर्ण” की लालसा!

विक्रम की लालसा बहुत ही घिनौनी और निकृष्ट थी, विशेषकर श्वेत महिलाओं के लिए. इनके योगा क्लब्स में मानो केवल इन्ही का प्रवेश वैध माना जाता था, बाकी लोगों के लिए मानो “प्रवेश निषेध” का बोर्ड टांगने हेतु तैयार रहते थे बिक्रम चौधरी! मिनाक्षी जाफ़ा-बोड्डन, जो बिक्रम के उत्पीड़न का शिकार हुई थी, अपने कार्यकाल के दौरान महिलाओं और अल्पसंख्यकों के प्रति उसके भेदभावपूर्ण व्यवहार से भली भांति परिचित थी, जिसकी और उन्होंने न्यायिक एजेंसियों का ध्यान भी आकृष्ट किया!

2015 के अदालती बयानों के अनुसार, बिक्रम चौधरी की अपमानजनक टिप्पणियाँ उनके चरित्र को और उजागर करती हैं। इनके टिप्पणियों में मिनाक्षी के वकील कार्ला मिन्नार्ड की उपस्थिति के प्रति इनके अपमानजनक विचार भी सम्मिलित हैं, जहाँ इसने विशेष रूप से, मिनाक्षी के वकील, कार्ला मिन्नार्ड के लिए बेहद अभद्र और अश्लील भाषा का उपयोग किया था. ये इसलिए भी संभव है क्योंकि इन्ही कार्ला मिन्नार्ड ने एक समय पेंडोरा विलियम्स का प्रतिनिधित्व किया, जिन्हे अश्वेत होने के कारण बिक्रम ने अपने प्रशिक्षण पाठ्यक्रम से निष्कासित किया, और उसकी फीस भी वापिस करने से स्पष्ट मना कर दिया!

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भारत वापसी और इनका वर्तमान जीवन

दुर्भाग्य तो देखिये, आज भी बिक्रम चौधुरी जैसा व्यक्ति निर्भीक होकर स्वतंत्र घूम रहा है. जब इनके पूर्व कानूनी सलाहकार, मिनाक्षी “मिक्की” जाफ़ा-बोडेन द्वारा दायर याचिका के आधार पर इन्हे दोषी पाया, और इन्हे अविलम्ब ७ मिलियन डॉलर की कुल क्षतिपूर्ति देने को कहा गया, तो इसने अमेरिकी एजेंसीज़ को ठेंगा दिखाते हुए २०१६ में अमेरिका त्याग दिया, और भारत में आकर शरण ले ली!

कई आरोपों और एक आपराधिक मुकदमे के बावजूद, बिक्रम ने पश्चाताप का कोई संकेत नहीं दिया. 2016 के अंत में रियल स्पोर्ट्स पर ब्रायंट गंबेल के साथ एक साक्षात्कार में, बिक्रम ने कहा, “मुझे महिलाओं को क्यों सताना पड़ेगा? लोग मेरे शुक्राणु की एक बूंद के लिए दस लाख डॉलर खर्च करते हैं”. ऐसी निर्लज्जता देखी है कहीं?

मई 2017 में लॉस एंजिल्स के एक न्यायाधीश ने जाफ़ा-बोडेन के बकाया 7 मिलियन डॉलर के मुआवजे और दंडात्मक क्षति का भुगतान किए बिना भारत भागने के पीछे एक अरेस्ट वॉरंट जारी किया. विडंबना यह है कि इतने कार्रवाई के बाद भी, कुछ प्राणी ऐसे हैं, जो इनके योगा स्टूडियोज़ में भाग लेते हैं, और इनके “बिक्रम योगा” का प्रशिक्षण लेते हैं. ऐसी क्या दुविधा है कि अमेरिका समेत अनेक देश इसे पकड़ तक नहीं पा रहे? इन सब का छोड़िये, भारत को किस बात का भय है?  यदि नित्यानंद और गुरुमीत राम रहीम जैसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है, तो बिक्रम चौधरी उनकी तुलना में अभी बालक ही है! बस एक FIR की देर है!

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