यूरोप से “लतियाये” गए सोरोस!

अब क्या करोगे मिस्टर सोरोस?

अराजकता के अघोषित मठाधीश जॉर्ज सोरोस एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है, परन्तु इस बार अलग कारणों से. इनके ‘Open Border Policies’ के पीछे यूरोप के कई देश इनसे कुपित है, क्योंकि इसके कारण अब यूरोप में अवैध प्रवासी उत्पात मचा रहे हैं, जिसके कारण अब सोरोस और उनकी मण्डली यूरोप से बोरिया बिस्तर समेटने पर विवश है!

इनके नीतियों के प्रति बढ़ते विरोध के पीछे , जॉर्ज सोरोस और उनके ओपन सोसाइटी फाउंडेशन ने यूरोपीय संघ के देशों में अपने सभी संचालन तत्काल प्रभाव से बंद करने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। यह कदम क्षेत्र में सोरोस के प्रभाव में एक महत्वपूर्ण मोड़ है और राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में एक गहरे बदलाव का प्रतीक है।

जॉर्ज सोरोस को लोग अलग अलग कारणों से जानते हैं. कई आंदोलनकारियों के लिए वे किसी देवता से कम नहीं, तो आम जनता, विशेषकर राष्ट्रवादियों के लिए वह एक “कपटी, अराजकता समर्थक उद्योगपति”, जो लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर संसार भर में उपद्रवियों एवं आतंकियों को बढ़ावा देता रहा है!

तो फिर यूरोप से इनके निष्कासन की नौबत क्यों आई? असल में जॉर्ज सोरोस स्वयं हंगरी से नाता रखते हैं, और इन्होने ही “Open Border Policies” को बढ़ावा दिया था, जिसके पीछे यूरोप में अवैध प्रवासियों, विशेषकर कट्टरपंथी तत्वों की भरमार हो गई, और वे स्वीडन, यूके, जर्मनी, फ्रांस जैसे कई बड़े देशों में उपद्रव मचाने लगे!

जॉर्ज सोरोस का भारत एवं उसके वर्तमान प्रशासन के प्रति रोष भी किसी से नहीं छुपा है. कुछ माह पूर्व इन्होने अडानी हिंडनबर्ग प्रकरण के परिप्रेक्ष्य में सार्वजानिक तौर पर मोदी सरकार को अपदस्थ करने की अपील की, ताकि “भारत में लोकतंत्र बहाल हो”. परन्तु वर्तमान परिस्थितियों को देखकर ऐसा लगता है कि ये अपना संगठन ही बचा ले तो बहुत होगा!

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ऐसे में सोरोस के यूरोप से जाने पर मिश्रित भावनाएं पैदा हो सकती हैं, लेकिन एक बात स्पष्ट है: उनके जाने से उनकी विचारधारा और हस्तक्षेप के प्रभाव के बारे में चर्चा शुरू हो गई है। कई लोग लोकतंत्र के चैंपियन के रूप में उनकी स्वयं-घोषित भूमिका को उनके कार्यों के साथ असंगत मानते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई बार अस्थिरता और सामाजिक अशांति हुई है। इसके अतिरिक्त इनके बेटे को अब सोरोस के साम्राज्य की कुंजी मिल चुकी है, और यदि वे अपने पिता के ‘आदर्शों के अनुरूप’ नहीं निकले, तो फिर लोकतंत्र को ख़तरा पहुँचाने वाले इस व्यक्ति के किले को ढहाने में अधिक समय नहीं लगेगा!

कुछ लोगों को लगता है कि जॉर्ज सोरोस का यूरोप से निष्कासन “मानवतावाद” के लिए हानिकारक होगा. परन्तु जिस प्रकार से इन्होने वैश्विक  राजनीति पर अपना नकारात्मक प्रभाव डाला है, उस अनुसार इनका यूरोप से निष्कासन यूरोप के लिए ही लाभकारी होगा! परन्तु ये बिलकुल मत सोचियेगा कि जॉर्ज सोरोस शांत बैठेंगे. सूत्रों के अनुसार इनका अगला निशाना चीन है, वो अलग बात है कि इनके आगमन से पूर्व ही चीन राजनीतिक एवं आर्थिक अस्थिरता के मार्ग पर अग्रसर हो जायेगा!

जॉर्ज सोरोस का निष्कासन इस बात पर पुनर्मूल्यांकन का अवसर भी प्रदान करता है कि इन पहलों को कैसे आगे बढ़ाया जाता है और लोकतंत्र की वास्तव में रक्षा कैसे की जाती है। यह बदलाव अंततः सकारात्मक होगा या नकारात्मक, यह अभी तक देखा जाना बाकी है, लेकिन यह निस्संदेह सोरोस की विरासत और यूरोपीय राजनीतिक परिदृश्य दोनों के प्रक्षेप पथ में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतीक है।

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