योगी आदित्यनाथ से ‘आशीर्वाद’ क्या लिया रजनीकांत ने, लिबरल बिरादरी में त्राहिमाम मच गया!

BURNOL ही आउट ऑफ़ स्टॉक हो चुका है!

११ अगस्त भारतीय फिल्म उद्योग के लिए किसी वरदान से कम नहीं रहा है. इसका लाभ केवल सन्नी पाजी ने ही नहीं, अपितु अपने थलाइवा यानी रजनीकांत ने भी उठाया, जिनकी वर्तमान फिल्म “जेलर” को जनता से भरपूर प्रेम मिला.

परन्तु इसलिए रजनी अन्ना चर्चा का केंद्र नहीं है. उन्होंने हाल ही में उत्तर प्रदेश की यात्रा की, और वहां पर इनके कारनामों के कारण ये चर्चा का केंद्र बने हुए हैं. असल में इन्होने योगी आदित्यनाथ से वार्तालाप किया, और आते ही योगी आदित्यनाथ के पाँव भी छुए, जिससे सोशल मीडिया पर हल्ला मच गया!

बस, फिर क्या था, पॉपकॉर्न से भी अधिक तीव्रता से अपने लिबरल बिरादरी वाले उछलने लगे,मानो रजनी अन्ना ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली हो! एक X [ट्विटर] यूज़र ने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए लिखा, “रजनीकांत सीएम योगी आदित्यनाथ के समक्ष अपना शीश झुकाते हैं! ऐसे धूर्त व्यक्ति को एक घृणास्पद व्यक्ति के समक्ष झुकता देख मैं बहुत भयभीत हूँ! इससे नीचे भी कोई गिर सकता है?”

ये तो कुछ भी नहीं है. अपने अभिनय के लिए कम, और अपनी बकवास के लिए अधिक चर्चा के केंद्र में रहने वाले सिद्धार्थ सूर्यनारायण X पर पोस्ट करते हैं, “जो कोई रक्तपिपासु कट्टरपंथी के सम्मान में पैर छूता है, वह थलाइवर कहलाने के लायक नहीं है!” वो अलग बात है कि जनता ने इन्हे उतना ही भाव दिया, जितना कि भारतीय क्रिकेट टीम इस समय क्रिकेट पर दे रही है!

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एक स्वघोषित रिव्यूवर जॉर्ज तो दो कदम आगे बढ़ते हुए रजनीकांत द्वारा स्क्रीन पर राजनीतिक रूप से जागरूक कार्यकर्ता के रूप में उनके चित्रण और दक्षिणपंथी नेता योगी आदित्यनाथ के साथ उनकी वास्तविक जीवन की बातचीत के बीच विसंगति की ओर इशारा किया। इनके पोस्ट ने सार्वजनिक व्यक्तित्व और व्यक्तिगत मूल्यों के बीच संरेखण के बारे में सवाल उठाए, अंततः पाठकों से अपने नायकों को चुनते समय समझदार होने का आग्रह किया।

परन्तु रजनीकांत का ये पहला ऐसा मामला नहीं है, और न ही ये पहली बार हुआ है जब थलाइवा को अपने संस्कृति के प्रति अपना स्नेह दिखाने के लिए लिबरलों के कोपभाजन का शिकार बनना पड़ा हो. इसका एक उदाहरण तमिल राजनीति के कथित तारक ईवी पेरियार रामास्वामी के साथ उनका साहसिक टकराव है। रजनीकांत ने पेरियार द्वारा आयोजित 1971 की एक विवादास्पद रैली की खुले तौर पर आलोचना की, जिसमें  हिंदू देवताओं राम और सीता को अनुचित तरीके से चित्रित किया गया था। रैली में देवी-देवताओं की नग्न छवि और चप्पलों की माला दिखाई गई।

अब ऐसे में पेरियार के चमचे भला कैसे मौन रहते? इन्होने रजनीकांत के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया. परन्तु थलाइवा भी कम नहीं थे! वे अपनी बात पर अड़े रहे, उन्होंने अपने दावों के समर्थन में समाचार लेखों से साक्ष्य उपलब्ध कराए और माफी मांगने से इनकार कर दिया। पीछे हटने से इनके इनकार ने विरोध के सामने उनके अटूट विश्वास को प्रदर्शित किया।

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इन घटनाओं में एक बात तो स्पष्ट है : रजनीकांत को किसी से अपने व्यक्तित्व के लिए प्रमाणपत्र लेने की आवश्यकता नहीं! चाहे वह उनकी ऑन-स्क्रीन उपस्थिति हो या उनकी वास्तविक दुनिया की बातचीत, वह प्रचलित मानदंडों को चुनौती देने और चिंतन को प्रेरित करने से डरते नहीं हैं। यह दृढ़ आचरण, भले ही उन्हें तिरस्कार और आलोचना का पात्र बनाये, परन्तु उन लोगों से प्रशंसा भी प्राप्त करता है जो प्रामाणिकता को महत्व देते हैं। जैसे-जैसे चर्चाएं उनके इर्द-गिर्द घूमती रहती हैं, रजनीकांत के कार्य आत्मनिरीक्षण को प्रेरित करते हैं, जो इनके आचरण के प्रति जनता के सम्मान को और दृढ बनाता है।

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