अभिसार शर्मा के चीन प्रेम की “New York Times” ने खोली पोल!

अब किसका सहारा लोगे खान मार्किट वालों?

आपने उस संवाद को सुना ही होगा, “भाईसाब ये किस लाइन में आ गए आप?” लगता है न्यू यॉर्क टाइम्स ने इस संवाद को सार्थक बनाने का निर्णय कर लिया है!

इस लेख में जानिये अभिसार शर्मा के विरुद्ध न्यू यॉर्क टाइम्स के आरोपों के बारे में, और कैसे अब खान मार्किट बिरादरी के पास अब सर छुपाने को भी जगह न होगी!

जिस लेख ने हलचल मचा के रख दी

मीडिया के उद्योग में “सनसनीखेज़ खुलासे” कोई नई बात नहीं! इसके लिए बहुचर्चित न्यूज़ एजेंसी न्यूयॉर्क टाइम्स काफी बार चर्चा का केंद्र बनी रहती है. इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है, परन्तु इस बार भारतीय वामपंथियों के लिए प्रसन्न होने वाली कोई बात नहीं! इस बार प्रतिष्ठित प्रकाशन ने अपनी खोजी निगाह कुख्यात फर्जी समाचार विक्रेता अभिसार शर्मा और उसके मीडिया आउटलेट “न्यूज़क्लिक” की ओर मोड़ दी है, जो चीनी प्रचार और फंडिंग के जाल को उजागर कर रहा है।

ये कैसे संभव है? सारी रामकथा प्रारम्भ हुई “ए ग्लोबल वेब ऑफ चाइनीज़ प्रोपेगेंडा लीड्स टू ए यूएस टेक मुगल” नामक अपने व्यापक खोजी लेख में, जहाँ न्यूयॉर्क टाइम्स शिकागो से शंघाई तक फैले एक वित्तीय नेटवर्क की गहराई से पड़ताल करता है, जो दुनिया भर में चीनी चर्चाओं को प्रसारित करने के लिए अमेरिकी संसाधनों का उपयोग करता है।

इस नेटवर्क के पीछे का व्यक्ति नेविल रॉय सिंघम है, जो एक प्रकार से एक चीनी स्लीपर सेल को अमेरिका में संचालित कर रहे हैं. थॉटवर्क्स में अपने समय के दौरान चुपचाप वामपंथी कारणों को वित्त पोषित करने का खुलासा हुआ था। थॉटवर्क्स को 785 मिलियन डॉलर में बेचने के बाद, उनकी सक्रियता और तेज़ होती दिख रही थी।

मनी ट्रेल के बाद, NYT ने महाद्वीपों में बहने वाले लाखों डॉलर का पता लगाया। दक्षिण अफ़्रीकी राजनीतिक दल से लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका में यूट्यूब चैनलों और घाना और जाम्बिया में गैर-लाभकारी संस्थाओं तक, नेटवर्क का प्रभाव व्यापक था। यहां तक कि ब्राज़ील में भी, पैसे को ब्रासील डे फाटो नामक एक प्रकाशन तक अपना रास्ता मिल गया, जिसने शी जिनपिंग की प्रशंसा करते हुए भूमि अधिकारों पर लेख प्रस्तुत किए।

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न्यूज़क्लिक का चीनी कनेक्शन

परन्तु असली कथा तो यहाँ से प्रारम्भ होती है. इसी लेख में न्यूज़क्लिक के चीनी कनेक्शन पर भी चर्चा हुई, जिसके पीछे २०२१ में प्रवर्तन निदेशालय ने इस वामपंथी पोर्टल का द्वार एक बार खटखटाया था! न्यूज़क्लिक पर वीडियो में चीन के इतिहास के प्रति प्रशंसा व्यक्त की गई और श्रमिक वर्गों के लिए प्रेरणा का दावा किया गया। इस तरह का ज़बरदस्त प्रचार साइट की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता के बारे में गंभीर सवाल उठाता है, खासकर जब से यह “फासीवादी ताकतों द्वारा बेरोजगार” पत्रकारिता की आवाज़ होने का दावा करता है। स्मरण रहे, न्यूज़क्लिक को प्रारम्भ से कई वामपंथियों का घोर समर्थन प्राप्त है, जिसमें से कुछ तो भीमा कोरेगांव हिंसा में आरोपित भी है!

NYT द्वारा आगे की जांच से पता चला कि ये समूह निकट समन्वय में काम करते थे। लेखों को क्रॉस-पोस्ट करना, सोशल मीडिया पर सामग्री साझा करना और यहां तक कि स्टाफ सदस्यों और कार्यालय स्थानों को साझा करना आम प्रथाएं थीं। नेटवर्क आपस में जुड़ा हुआ और गुप्त था, अक्सर अपने संबंधों का खुलासा किए बिना साक्षात्कार आयोजित करता था।

इस जांच के नतीजे निस्संदेह दूरगामी होंगे। पत्रकारिता की निष्ठा, विश्वसनीयता और स्वतंत्रता पर सवाल उठाये जायेंगे। जनता मीडिया आउटलेट्स और पत्रकारों से जवाबदेही और पारदर्शिता की मांग करेगी। हो सकता है कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने अनजाने में ही भारतीय मीडिया की दुनिया में पुनर्गणना शुरू कर दी हो, ऐसे कंकालों को उजागर किया हो जिनके बारे में कई लोगों को उम्मीद थी कि वे दबे रहेंगे।

२०२१ में टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी अपनी रिपोर्ट में ये बात उठाई थी. रिपोर्ट के अंश अनुसार, “PPK Newsclick Studio Pvt Ltd’ को जो 38 करोड़ रुपए की बड़ी फंडिंग मिली थी, उसका मुख्य स्रोत इसी कारोबारी को माना जा रहा है, जिसके सम्बन्ध चीन से हैं। वेबसाइट को ये रकम 2018-21 के बीच विदेश से भेजी गई थी। कारोबारी नेविल रॉय सिंघम (Neville Roy Singham) के सम्बन्ध चीन की सत्ताधारी पार्टी ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CPC)’ के एक प्रोपेगेंडा संगठन से है। ‘भीमा-कोरेगाँव’ हिंसा से भी इस न्यूज़ पोर्टल के तार जुड़ रहे हैं क्योंकि जो रकम इसे मिली, उसका कुछ हिस्सा तथाकथित एक्टिविस्ट्स को गया।

इसमें ‘एल्गार परिषद’ के गौतम नवलखा का नाम भी शामिल है, जो फ़िलहाल जेल में बंद है। न्यूजक्लिक के संस्थापक और मुख्य संपादक प्रबीर पुरकायस्था से संबंधों को लेकर ED ने जेल में ही गौतम नवलखा से पूछताछ भी की है। वेबसाइट को जो रकम मिली, उसके एक बड़े हिस्से को उसने ‘सेवाओं का निर्यात (Export Of Services)’ के रूप में प्रदर्शित किया है। पुरकायस्था ने सिंघम के CPC से सम्बन्ध होने या फिर खुद के पोर्टल के चीनी सरकार से सम्बन्ध होने से इनकार किया है”।

भारत में “स्वतंत्र पत्रकारिता” का असली चेहरा!

अब जब स्वयं वामपंथियों के अघोषित अब्बा न्यू यॉर्क टाइम्स ने इस बात पर प्रकाश डाला है, तो निस्संदेह ये बात अनदेखी नहीं जाएगी. यूट्यूब पे विगत कुछ वर्षों से ऐसे पत्रकारों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है, जिन्हे रीच या  सब्सक्राइबर मिले न मिले, डोनेशन भरपूर मिलता है, ताकि “स्वतंत्र पत्रकारिता” बुलंद रहे!

न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा लगाए गए आरोपों को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। अमेरिकी तकनीकी मुगल और चीनी प्रचार के बीच संबंध इस बात को लेकर चिंता पैदा करता है कि चीन के प्रभाव की लंबी भुजाएं मीडिया में घुसपैठ करके और कहानियों को आकार देकर कितनी दूर तक फैली हुई हैं। देशों और राजनीतिक संस्थाओं के लिए जनता की राय को अपने पक्ष में प्रभावित करने के लिए मीडिया आउटलेट्स को सॉफ्ट पावर टूल के रूप में उपयोग करना असामान्य नहीं है। हालाँकि, जब पत्रकारिता और प्रचार के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है, तो यह मीडिया पर जनता के विश्वास को खत्म कर देती है।

समाचार के उपभोक्ताओं के रूप में, हमें उन स्रोतों के बारे में सतर्क और समझदार होना चाहिए जिन पर हम भरोसा करते हैं। सूचनाओं की अधिकता और बड़े पैमाने पर गलत सूचनाओं के युग में, किसी भी बात को सच मानने से पहले तथ्यों की जांच और सत्यापन करना महत्वपूर्ण है। जितनी तत्परता से पत्रकार अधिकारों के लिए लड़ते हैं, क्या उतनी ही तत्परता से वे अपने दायित्व निभाने को तैयार है?

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जहां न्यूयॉर्क टाइम्स की जांच ने न्यूज़क्लिक की संदिग्ध प्रकृति और उसके संबंधों को उजागर किया है, वहीं यह भारत में मीडिया की व्यापक स्थिति पर भी सवाल उठाता है। देश का मीडिया परिदृश्य तेजी से ध्रुवीकृत हो गया है, मीडिया आउटलेट विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं और निहित स्वार्थों के साथ जुड़ गए हैं। समाचार उपभोक्ताओं के रूप में, यह जरूरी है कि हम विविध दृष्टिकोणों की तलाश करें और विभिन्न दृष्टिकोणों के बारे में सूचित रहें। सत्ता के साथ जवाबदेही आती है, और पत्रकारों को सच्चाई और सार्वजनिक हित की सेवा करने के अपने कर्तव्य से कभी नहीं चूकना चाहिए।

न्यूयॉर्क टाइम्स की जांच भारतीय मीडिया परिदृश्य के लिए एक चेतावनी के रूप में कार्य करती है। यह यूट्यूब पत्रकारों की वर्तमान पीढ़ी की उचित जांच की मांग करता है जो निरंकुश चीनी शासन के प्रति नरम रुख रखते हैं। जैसे-जैसे भारत का मीडिया परिदृश्य इस महत्वपूर्ण मोड़ से गुजर रहा है, हमें यह सुनिश्चित करने के लिए सच्चाई, सटीकता और पत्रकारिता की अखंडता को प्राथमिकता देनी चाहिए कि चौथा स्तंभ लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ बना रहे।

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