खेलों को लंबे समय से प्रेरित करने, एकजुट करने और मानवीय उपलब्धि के शिखर को प्रदर्शित करने की उनकी क्षमता के लिए मनाया जाता रहा है। फिर भी, गौरव और विजय के बीच, ऐसे क्षण आए हैं जिन्होंने खेल की दुनिया पर काली छाया डाल दी है, जिससे इसकी अखंडता पर हमेशा के लिए दाग लग गया है। यहां, हम उन 11 सबसे शर्मनाक घटनाओं का जिक्र कर रहे हैं जिन्होंने खेलों को कई मायनों में कलंकित किया.
1) The Hockey scandal at Berlin [1936]:
बर्लिन ओलंपिक्स १९३६ को दो प्रमुख कारणों से जाना जाता है: हिटलर का शक्ति प्रदर्शन एवं जेसी ओवेन्स की उपलब्धियां. परन्तु कुछ बातें ऐसी भी है, जो इस संस्करण के बारे में कम ही बताई जाती हैं, और जिनमें से एक है ब्रिटिश इंडिया की ओलम्पिक यात्रा. दो बार ओलम्पिक स्वर्ण जीतकर भारत बर्लिन १९३६ में मेजर ध्यानचंद के नेतृत्व में अपना कौशल दिखाने आई थी. परन्तु उन्हें केवल प्रतिद्वंदियों से ही नहीं भिड़ना था. एडोल्फ हिटलर ने एक समय भारतीयों के बारे में अनाप शनाप बका, जिससे क्रोधित होकर भारतीयों ने ओलम्पिक के बहिष्कार की मांग की. अब वो तो नहीं हुआ, परन्तु ब्रिटिश इंडिया उन चंद टीमों में सम्मिलित था, जिसने न तो अपना झंडा हिटलर के समक्ष झुकाया, और न ही हिटलर को सैल्यूट किया.
इसका प्रतिशोध जर्मन टीम ने अपनी तरह से लेने की सोची. ये जानते हुए भी कि भारत के कौशल के समक्ष वे कुछ भी नहीं, उन्होंने भारतीयों खिलाडियों पर धावा बोला. लेकिन इनके आक्रामक तरीकों से भारतीयों का जोश और बढ़ गया, और उन्होंने जर्मनी को 8-1 से कूटकर लगातार तीसरी बार स्वर्ण पदक जीता!
2) The Jewish Exclusion [1936]:
परन्तु यही एक घटना नहीं थी, जिसके पीछे बर्लिन ओलम्पिक विवादों के घेरे में था. कोई तुष्टिकरण में कितना नीचे गिर सकता है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण अमेरिकी टीम ने प्रदर्शित किया. अब हिटलर के यहूदियों पर विचार से कोई अपरिचित नहीं था, परन्तु जो कार्य अमेरिकी टीम ने किया, उसे स्पष्ट भाषा में निर्लज्जता ही कहा जायेगा। 4 x 100 मीटर रिले से कुछ घंटे पूर्व दो प्रतिभागियों को आश्चर्यजनक रूप से हटा दिया गया. उनके नाम थे मार्टी ग्लिकमैन और सैम स्टॉलर। उनका अपराध : वे यहूदी थे, और अमेरिकी नहीं चाहते थे कि इनकी विजय से हिटलर कुपित हो!
3) The Munich Olympics Massacre [1972]:
1972 म्यूनिख ओलंपिक उस क्रूर आतंकवादी हमले से हमेशा के लिए प्रभावित रहेगा। इज़राइली ओलंपिक टीम के ग्यारह सदस्यों ने एक भयावह हमले में अपनी जान गंवा दी, जिसने राजनीतिक हिंसा के लिए प्रमुख खेल आयोजनों की संवेदनशीलता को उजागर किया। इसपर IOC के अध्यक्ष एवेरी ब्रन्डेज के रवैये ने यहूदियों को और अधिक क्रोधित किया, जिसके पीछे अगले ही वर्ष उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा!
4) Pakistan’s ‘Sportsmanship’ [1972]:
इसी बीच एक ऐसी त्रासदी हुई, जिसे कई लोगों ने म्यूनिख ओलम्पिक के उस हमले के पीछे अनदेखा किया. १९७२ में आखिरकार यूरोपियन टीमों ने एशिया का वर्चस्व तोड़ते हुए हॉकी में स्वर्ण पदक प्राप्त किया. वेस्ट जर्मनी ने पाकिस्तान को हराते हुए ये उपलब्धि प्राप्त की. परन्तु पाकिस्तान को ये हार स्वीकार नहीं थी. ये स्वाभाविक है कि हार जीत सबको नहीं पचती, परन्तु जो पाकिस्तान ने किया, उसे स्पोर्ट्समैनशिप तो कदापि नहीं कहा जा सकता.
पहले तो कई बार पाकिस्तानी प्रशंसको ने धावा बोला, फिर सीधा FIH के अध्यक्ष पर धावा बोला. जब वे मैच हार गए, तो उन्होंने न केवल वेस्ट जर्मनी के ध्वज को राष्ट्रगान के समय पीठ दिखाई, अपितु अपने रजत पदक पैरों पर पहने. आज भी इस बात का आश्चर्य है कि पाकिस्तानियों पर इस कार्य के लिए आजीवन प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगा!
5) The Ben Johnson Scandal [1988]:
1988 के सियोल ओलंपिक में कनाडाई धावक बेन जॉनसन ने 100 मीटर स्पर्धा में अद्वितीय गौरव हासिल किया, लेकिन कुछ दिनों बाद स्टेरॉयड के लिए पॉजिटिव परीक्षण के बाद उनका स्वर्ण पदक छीन लिया गया। जॉनसन की शर्मनाक हार ने खेलों में डोपिंग के व्यापक मुद्दे और इससे प्रतिस्पर्धा की अखंडता को होने वाले नुकसान पर जोर दिया।
6) The Nancy Kerrigan Attack [1994]:
नैन्सी केरिगन पर उसके प्रतिद्वंद्वी टोन्या हार्डिंग के पूर्व पति द्वारा किए गए कुख्यात हमले से फिगर स्केटिंग जगत स्तब्ध था। इस घटना ने ईर्ष्या और प्रतिद्वंद्विता की एक घिनौनी कहानी का खुलासा किया जिसने खेल भावना के बदसूरत पक्ष को प्रदर्शित किया।
7) The Riot at Eden Gardens [1996]:
किसी को भी हारना अच्छा नहीं लगता, और क्रिकेट विश्व कप नॉकआउट में तो बिल्कुल भी नहीं। 252 रनों के मॉडेस्ट लक्ष्य का पीछा करते हुए जब भारत सेमीफाइनल में श्रीलंका से भिड़ रहा था तो तनाव आसमान छू रहा था। भारत ने नवजोत सिद्धू के रूप में एक विकेट जल्दी खो दिया था, लेकिन सचिन तेंदुलकर ने किला संभाले रखा, जिसमें आश्चर्यजनक रूप से संजय मांजरेकर ने मदद की, जिन्होंने लगभग 25 रन बनाए।
98/1 पर स्थिति भारत के नियंत्रण में थी, जब सचिन तेंदुलकर 65 के प्रभावशाली स्कोर पर आउट हो गए। इससे एक बड़ा पतन हुआ, और भारत जल्द ही 100 से अधिक रनों की बड़ी हार की ओर देख रहा था, जब 8वां विकेट महज 120 रन पर गिर गया। इस समय, भारतीय दर्शकों ने अपना नियंत्रण खो दिया और बर्बरता का सहारा लिया, जिसके परिणामस्वरूप मैच रद्द कर दिया गया और श्रीलंका डिफ़ॉल्ट रूप से फाइनल में पहुँच गया।
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8) The Match Fixing Explosion [2000]:
बमुश्किल भारत इस काले दिन की यादों से उबर पाया था, जब वर्ष 2000 ने विश्व क्रिकेट को हमेशा के लिए बदल दिया था। मनोज प्रभाकर और तहलका पत्रिका महीनों से, वास्तव में वर्षों से मैच फिक्सिंग के बारे में चिल्ला रहे थे. परन्तु 15 जून 2000 को हैंसी क्रोन्ये ने मैचों को फिक्स करने की बात कबूल करते हुए वो पिटारा खोला, जिसने क्रिकेट के अस्तित्व पर ही प्रश्न उठा दिया । इनमें कई दक्षिण अफ़्रीकी, साथ ही भारतीय और पाकिस्तानी खिलाड़ी सम्मिलित थे, जिनमें मोहम्मद अज़हरुद्दीन जैसे खिलाड़ी भी शामिल हैं। इसने सचमुच ‘जेंटलमैन स्पोर्ट’ के रूप में क्रिकेट की प्रतिष्ठा को नष्ट कर दिया, और प्रशंसकों को इस घाव से उबरने में कई साल लग गए!
9) The Salt Lake City Scandal [2002]:
एक चौंकाने वाले रहस्योद्घाटन में, यह उजागर हुआ कि साल्ट लेक सिटी बिड समिति के अधिकारियों ने 2002 के शीतकालीन ओलंपिक के लिए मेजबान के रूप में शहर के चयन को सुरक्षित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के सदस्यों को रिश्वत दी थी। इस घोटाले ने निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा की ओलंपिक भावना को तोड़ दिया और खेलों की प्रतिष्ठा को धूमिल कर दिया।
10) The Lance Armstrong Doping Scandal [2013]:
कभी जिस लांस आर्मस्ट्रांग को विपरीत परिस्थितियों में भी विजेता के रूप में उभरने वाला चैम्पियन बताया जाता था, उसने एक ही झटके में अपने सम्पूर्ण करियर पर पानी फेर दिया. साइकलिंग आइकन के रूप में लांस आर्मस्ट्रांग की जबरदस्त प्रगति तब ढह गई जब उन्हें एक विस्तृत डोपिंग योजना के पीछे के मास्टरमाइंड के रूप में उजागर किया गया। अपने सात टूर डी फ़्रांस खिताब छीन लिए जाने के बाद, आर्मस्ट्रांग की गरिमा में गिरावट इस बात की याद दिलाती है कि कुछ एथलीट सिस्टम को धोखा देने के लिए किस हद तक जा सकते हैं।
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11) FIFA World Cup Scandal [2022]
2022 का विश्व कप संस्करण इस बात की याद दिलाता है कि लोग व्यक्तिगत लाभ के लिए कितना नीचे गिर सकते हैं। यहां तक कि लियोनेल मेस्सी की प्रतिष्ठित जीत भी फीफा विश्व कप के कतर संस्करण पर लगे दाग को नहीं मिटा सकी। निर्माण श्रमिकों को बुनियादी अधिकारों से भी वंचित किए जाने की खबरों से लेकर, फीफा द्वारा रूस को भाग लेने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास करने तक, यह विश्व कप फुटबॉल के लिए कम और उन विवादों के लिए अधिक जाना गया, जिन्होंने इसे खराब कर दिया।
ये शर्मनाक घटनाएं लगातार स्मरण कराती हैं कि खेल की दुनिया मानव स्वभाव के स्याह पहलुओं से अछूती नहीं है। जीत, प्रसिद्धि और वित्तीय लाभ की खोज कभी-कभी व्यक्तियों और संगठनों को बेईमानी, भ्रष्टाचार और विश्वासघात के रास्ते पर ले जा सकती है। इन घटनाओं का स्थायी प्रभाव वर्षों तक प्रतिध्वनित होता है, जो हमें उन मूल्यों की सुरक्षा के लिए सतर्क रहने के लिए प्रेरित करता है जिनका खेल प्रतिनिधित्व करते हैं – निष्पक्षता, ईमानदारी और वास्तविक मानवीय उपलब्धि का उत्सव।