क्या आपको वे दिन याद हैं जब हम अपने पसंद की फिल्में देखने के लिए निकटतम वीडियो पार्लर से किराए की सीडी लाते थे? जो अधिक धनवान थे, उनके पास Rewritable डिस्क्स की सुविधा होती थी, और इस दिशा में अग्रणी कंपनी मोजर बेयर थी. इसका टैगलाइन भी बड़ा लुभावना था, “हेलो हैपीनेस”!
परन्तु इस कम्पनी को बोरिया बिस्तर समेटे हुए पांच वर्ष हो चुके हैं. तो ऐसा क्या हुआ कि कभी डिजिटल स्टोरेज में अग्रणी MoserBaer अचानक से दिवालिया होकर बंद हो गया? कुछ लोगों का मानना है कि मोजर बेयर बदलते समय के साथ तालमेल नहीं बिठा सका, जबकि अन्य का तर्क है कि वित्तीय गलत कदमों के कारण इसकी मृत्यु हुई।
हालाँकि, एक और भी एंगल है, जिसपर कम ही चर्चा होती है: कोयला घोटाले में इसकी भागीदारी और कांग्रेस पार्टी के प्रभावी नेता कमल नाथ के साथ इसके करीबी संबंध। आइये जानते हैं मोजर बेयर के उत्थान और पतन के बारे में, और आज चर्चा होगी उन कारणों पे, जिसके पीछे इस कम्पनी को लेने के देने पड़ गए!
टाइम रिकॉर्डर बनाने से सीडी और डीवीडी में अग्रणी निर्माता बनने तक
Moser Baer की यात्रा १९८३ में प्रारम्भ हुई, जब महत्वकांक्षी उद्यमी दीपक पुरी ने अपना उद्यम कलकत्ता से नई दिल्ली शिफ्ट किया. प्रारम्भ में Moser Baer India ने टाइम रिकॉर्डर निर्माण में निवेश किया, जहाँ उन्होंने जापान के Maruzen Corporation of Japan एवं Moser Baer Sumiswald of Switzerland के साथ तकनीकी साझेदारी की.
1988 तक कम्पनी ने डेटा स्टोरेज उद्योग में अपना भाग्य आजमाने का निर्णय किया, जिसमें इन्होने 5.25-inch floppy diskettes के निर्माण से अपनी यात्रा प्रारम्भ की. जैसे जैसे तकनीक में विकास हुआ, Moser Baer भी विकसित होता गया और 1993 तक वह 3.5-inch floppy diskettes बनाने लगा, जिन्हे MFDs के नाम से भी जाना जाता था.
90 के दशक के अंत में Moser Baer ने अपने उद्यम का विस्तार करते हुए recordable Compact Disks (CD-Rs) एवं recordable (DVD-Rs) के निर्माण में अपना हाथ आजमाया. परन्तु 2006 में तो गजब ही हो गया! Moser Baer ने अपना दृष्टिकोण और विस्तृत करते हुए Photovoltaic cells एवं होम एंटरटेनमेंट में अपना भाग्य आजमाया, और जल्द ही घर घर में चर्चित हो गया! 90 के दशक के अंत से ही ये magnetic and optical media data storage products का अग्रणी निर्माता था, जिसके 85 प्रतिशत उत्पाद एक्सपोर्ट्स के लिए चिन्हित थे!
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MoserBaer का कोयला घोटाला कनेक्शन!
तो फिर ऐसे फलते फूलते उद्यम को किसकी नज़र लग गई?
ऐसा क्या हुआ जिसके पीछे भारतीय टेक उद्योग में एक समय अग्रणी रहे MoserBaer अचानक से ठप पड़ गया! अधिकतम लोगों का मानना है कि डेटा स्टोरेज के उद्यम में मेमोरी कार्ड, एक्सटर्नल हार्ड ड्राइव के उद्भव से इस उद्यम का खेल बिगड़ने लगा. परन्तु ये एक कारक हो सकता है, इस उद्यम के विनाश का मूल कारण नहीं!
सितंबर २०१८ में MoserBaer के वित्तीय हालत को देखते हुए इसके लिक्विडेशन अर्थात दिवालियापन के घोषणा के आदेश दिए गए. इसके अतिरिक्त कम्पनी को कई वित्तीय अनियमितताओं के लिए आरोपित पाया गया.
परन्तु जिस विषय पर कम ही चर्चा होती है, वह है MoserBaer का कोयला घोटाले के साथ कनेक्शन. कोयला आवंटन में तत्कालीन केंद्र सरकार एवं कई राज्य सरकारों द्वारा की गई धांधली से आधिकारिक तौर पर 1.86 लाख करोड़ का नुक्सान केंद्रीय राजकोष को हुआ. इसी के पीछे २०१२ से २०१३ के बीच छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रायगढ़ एवं जांजगीर जिलों में स्थित चार कोयला आधारित पावर प्लांट्स को आवंटित भूमि की परमीशन रिवोक कर दी!
इन कंपनियों में से एक था SKS इस्पात, जो तत्कालीन पर्यटन मंत्री सुबोध कान्त सहाय से सम्बंधित थी. ऐसे ही एक कम्पनी थी MoserBaer, जिसने ऊर्जा सेक्टर में अपना भाग्य आजमाने के लिए छत्तीसगढ़ को चुना, और जिसने जांजगीर जिले में अपना पावर प्लांट स्थापित करने का प्रयास किया. इसी उद्देश्य से 2008 में Moser Baer Power & Infrastructure Ltd की स्थापना हुई, जिसका प्रमुख उद्देश्य था थर्मल पावर एवं इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश. परन्तु कोयला घोटाले ने न केवल इनके अरमानों पर पानी फेरा, अपितु अप्रत्यक्ष रूप से इनके विनाश की नींव रखी.
कमलनाथ से नाता
कथा में असल मोड़ तो यहीं से आता है. MoserBaer से जुड़े रतुल पुरी पिछले कई वर्षों से जांच एजेंसियों के राडार पर रहे हैं, परन्तु बहुत ही कम ऐसा हुआ कि मीडिया कवरेज में इनका या इनके पिता दीपक पुरी का नाम आया हो.
रतुल पुरी को ₹354 करोड़ के बैंक धोखाधड़ी मामले में आरोपों का सामना करना पड़ा, जिसमें आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, जालसाजी और भ्रष्टाचार सहित आरोप शामिल थे। 20 अगस्त, 2019 को उनकी गिरफ्तारी ने सवाल खड़े कर दिए और कंपनी की विरासत पर ग्रहण लगा दिया।
परन्तु बात केवल इतने तक सीमित नहीं है. रतुल पुरी तो अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले तक में आरोपित है. अगस्त 2019 में गिरफ्तार किया गया था, बाद में उन्हें दिसंबर में जमानत पर रिहा कर दिया गया, जिससे उनकी कानूनी उलझनें और बढ़ गईं।
इस बीच, प्रवर्तन निदेशालय ने 354 करोड़ रुपये के बैंक धोखाधड़ी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले की चल रही जांच में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है। अगस्त २०२३ में बैंक ऑफ सिंगापुर के पूर्व रिलेशनशिप मैनेजर नितिन भटनागर को हाल ही में मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तार किया गया था।
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इस मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जड़ें अगस्त 2019 में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दर्ज की गई एक एफआईआर से जुड़ी हैं। आरोप मोजर बेयर इंडिया लिमिटेड (एमबीआईएल) और उसके प्रमोटरों द्वारा कथित तौर पर सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया को धोखा देने और धोखा देने के इर्द-गिर्द घूमते हैं। 354.51 करोड़ रुपये का. बैंक द्वारा सीबीआई में शिकायत दर्ज कराने के बाद मामला शुरू किया गया था।
सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय दोनों ने पहले रतुल पुरी, उनके माता-पिता दीपक और नीता पुरी और अन्य सहित कई व्यक्तियों पर आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, जालसाजी और भ्रष्टाचार के आरोप में मामला दर्ज किया है। रतुल पुरी, जो उस समय एमबीआईएल के कार्यकारी निदेशक के रूप में कार्यरत थे, को ईडी ने 2019 में गिरफ्तार किया था और वर्तमान में जमानत पर बाहर हैं।
जो बात इस कथा को और भी दिलचस्प बनाती है, वह मोजर बेयर के पीछे के परिवार पुरीस और कांग्रेस पार्टी के एक प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति कमल नाथ के बीच संबंध है। क्या यह महज़ संयोग है कि इन प्रभावशाली परिवारों के बीच संबंध हैं, और क्या ये संबंध इस जटिल गाथा के सीमित मीडिया कवरेज में कोई भूमिका निभा सकते हैं? क्या यह एक कारण हो सकता है कि मोजरबेयर जैसे समृद्ध उद्यम को ऐसे अपमानजनक अंत का सामना करना पड़ा?
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