“भारत ने जी20 के मंच का इस्तेमाल अपने स्वयं के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किया है, जो वैश्विक मुद्दों पर सहयोग की बजाय विभाजन को बढ़ावा देने के लिए है। चीन विरोधी मुद्दों को उठाकर भारत ने जी20 की एकता को तोड़ा और चीन के हितों को नुकसान पहुँचाया”।
बताओ, न सम्मिट में उपस्थिति देंगें, न ढंग के प्रतिनिधि भेजेंगें, और कोई प्रतिकूल निर्णय आने पर ऐसे बिदकेंगे, जैसे इनके शान को ठेस पहुंचाई गई है. परन्तु प्रश्न तो ये उठता है: आखिर ऐसा क्या हुआ जी 20 की वर्तमान सम्मिट में जो चीन इतना बिलबिलाया हुआ है? ऐसा भी क्या कर दिखाया भारत ने, जिससे इनके रातों की नींद उड़ी हुई है?
शायद इसका उत्तर हाल ही में लांच हुए India Middle East Europe Economic Corridor (IMEEEC), एक ऐसा रणनीतिक निर्णय जिससे चीन के अति महत्वकांक्षी BRI का अंत तय है. आइये जानते हैं इस अनोखे आर्थिक कॉरिडोर के बारे में, और जानते हैं भारत के रणनीतियों एवं वैश्विक ट्रेड पर चीनी वर्चस्व पे इस रणनीति के प्रभाव के बारे में!
क्या है ये India Middle East Europe Economic Corridor?
हाल ही में संपन्न हुए G20 सम्मिट में भारत ने कई उपलब्धियां प्राप्त की, परन्तु उनमें सबसे उल्लेखनीय थी India Middle East Europe Economic Corridor की नींव पड़ना. भारत, सऊदी अरब, UAE, फ्रांस, जर्मनी, इटली, US एवं EU के गणमान्य सदस्यों ने हाल ही में इस आर्थिक कॉरिडोर से सम्बंधित MOU [memorandum of understanding] पर हस्ताक्षर किया है. इस अभियान का प्रमुख उद्देश्य उक्त क्षेत्रों के आर्थिक क्षमताओं का उत्तम उपयोग एवं ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट को बढ़ावा देना है.
घोषणा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने प्रसन्नता जताते हुए IMEC का महत्त्व गिनाया, और बताया कि कैसे ये जहाज़मार्ग एवं रेलवे में भारी निवेश को बढ़ावा देगा, जिससे सऊदी अरब, जॉर्डन, UAE एवं इज़राएल के माध्यम से भारत और यूरोप कनेक्ट हो सकेंगे.
IMEC को अमेरिका समेत EU, फ़्रांस, जर्मनी, जापान, इटली, यहाँ तक कि विश्व बैंक तक का समर्थन प्राप्त है. कई लोगों का मानना है कि ये चीन के अति महत्वकांक्षी बेल्ट एन्ड रोड परियोजना को एक उचित प्रत्युत्तर होगा, जिसके लिए सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने २० बिलियन डॉलर का दान देने की घोषणा भी की है.
अब IMEC में दो मुख्य कॉरिडोर होंगे : एक पूर्वी कॉरिडोर, जो भारत को खाड़ी देशों से प्रत्यक्ष रूप से कनेक्ट करेगा, और दूसरा कॉरिडोर खाड़ी देशों को यूरोप से कनेक्ट करेगा। इसमें रेलवे, शिप रेल ट्रांजिट, एवं सड़क परिवहन से जुड़ा एक समावेशी नेटवर्क सम्मिलित होगा, जो भारत, मिडिल ईस्ट एवं यूरोप को आर्थिक तौर पर सशक्त बनाने एवं जोड़ने में अति सहायक होगा.
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क्या लाभ मिलेगा इससे भारत को?
इज़राएल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू का मानना है, “इज़राएल इस अभियान का स्वागत करता है. इस लिंक [IMEEC] से एक ऐसा multi-year vision साकार होगा, जो मिडिल ईस्ट, इज़राएल और समस्त संसार का रंग रूप बदल देगा. ये विजन भारत में प्रारम्भ होता है, UAE, सऊदी अरब, जॉर्डन एवं इज़राएल से गुज़रते हुए यूरोप पहुंचेगा!”
ये बयान पर्याप्त है IMEEC Corridor के लाभ समझाने के लिए. इस कॉरिडोर का सर्वप्रथम लाभ यह है कि इससे कई देशों, विशेषकर चीन के Belt and Road Initiative (BRI) के प्रकोप से मुक्ति मिलेगी. चीन के इस प्रोजेक्ट को कई मामलों में आलोचना का सामना करना पड़ा है. चाहे क़र्ज़ के मायाजाल में छोटे देशों को फंसाना हो, या फिर पर्यावरण को ठेंगा दिखाना, या फिर कोविड की महामारी को बढ़ावा देना, चीन के BRI ने मानव कल्याण को छोड़कर सब कुछ किया है.
परन्तु IMEEC से केवल अमेरिका या यूरोप का लाभ नहीं होगा। भारत ने बहुत सोच समझकर इस परियोजना के लिए स्वीकृति भरी है. मानिये भारत के पास एक उत्पाद, जिसका मूल्य 1000 रुपये प्रति उत्पाद है, परन्तु चीन की हेकड़ी और उसके चोंचलों के पीछे दूसरे देशों तक एक्सपोर्ट होते होते इसका मूल्य होता है 5000 रुपये. अब IMEEC कॉरिडोर के होते हुए ये मूल्य अधिक से अधिक 2000 या 3000 रुपये हो सकता है. अर्थात हर उत्पाद पे 2000 से 3000 रुपये की बचत. इस वैकल्पिक रुट से भारत के व्यापारिक विकल्पों में ज़बरदस्त वृद्धि होगी, जिससे आर्थिक जुझारूपन को भी बढ़ावा होगा!
परन्तु किस्से केवल भारत ही लाभान्वित नहीं होगा. IMEEC से अन्य एशियाई देश भी उत्सुक होंगे, जिससे उत्पादन, खाद्य आपूर्ति, एवं अन्य सप्लाई चेन में भी व्यापक परिवर्तन आने की सम्भावना है. इस कॉरिडोर का नेटवर्क ऐसा है, कि इसमें क्षेत्रीय economic integration and cooperation के लिए पूरी पूरी सम्भावना है!
इसके अतिरिक्त भारत का आर्थिक परफॉर्मेंस भी विगत कुछ माह से प्रशंसनीय रहा है. 2023 के प्रथम छह माह में भारत ने 800 बिलियन डॉलर का करिश्माई आंकड़ा पार कर लिया है. व्यापारिक निर्यात में मामूली गिरावट के बावजूद, भारत वैश्विक व्यापार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बना हुआ है।
इसके अलावा, भारत की अंतरिक्ष उपलब्धियाँ, जिसका उदाहरण चंद्रयान 3 की सफलता है, नए अवसर खोलती है। ये सफलताएँ संभावित रूप से भारत के बढ़ते सेवा निर्यात में योगदान दे सकती हैं, इसके राजस्व प्रवाह में और विविधता ला सकती हैं और संभवतः इसे सेवा निर्यात में $400 बिलियन के प्रतिष्ठित मील के पत्थर की ओर प्रेरित कर सकती हैं।
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क्यों चीन इससे भयभीत है?
हालांकि चीन ने प्रस्तावित कॉरिडोर पर स्पष्ट रूप से कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन चीन के बयान के समय और उक्त कॉरिडोर के अनावरण ने उत्सुकता बढ़ा दी है। तो, जब चीन की वैश्विक व्यापार पर मजबूत पकड़ प्रतीत होती है तो वह इतना चिंतित क्यों है? कई कारक इस पर प्रकाश डालते हैं:
- Corpus Fund and Debt Conditions:
एक प्रमुख अंतर वित्तीय दृष्टिकोण में निहित है। आईएमईसी ने ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (पीजीआईआई) द्वारा वित्तपोषित 600 अरब डॉलर के एक कॉर्पस फंड की कल्पना की है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह चीन के बीआरआई से एकदम अलग है, जहाँ लाभार्थी देशों को क़र्ज़ के मायाजाल में फंसाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता. न्यायसंगत आर्थिक पहल के रूप में यह रणनीति आईएमईसी के आकर्षण को बढ़ाती है।
- Focus on Regional Cooperation and Environmental Benefits:
एक और उल्लेखनीय अंतर आईएमईसी के भीतर क्षेत्रीय सहयोग और पर्यावरण संबंधी विचारों पर जोर है। BRI की तुलना में इस कॉरिडोर में सतत विकास और इकोलॉजिकल सुरक्षा उपायों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। आईएमईसी का लक्ष्य सहयोग को बढ़ावा देना और पर्यावरण की दृष्टि से जिम्मेदार बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देना है।
- BRI Erosion:
चीन की BRI को दूसरे मोर्चे पर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. उदाहरण के लिए लम्बे समय से चीन के सहयोगी रहे इटली ने इस परियोजना से अलग होने का फैसला किया है। इटली में राजनीतिक बदलावों से प्रभावित यह घटनाक्रम बीआरआई के भीतर संभावित बदलावों का संकेत देता है। यदि इस तरह के प्रस्थान जारी रहे, तो अंत में पाकिस्तान और तुर्की को छोड़कर बीआरआई में कोई नहीं बचेगा।
- China’s Economic Challenges:
चीन की अर्थव्यवस्था को हाल ही में महत्वपूर्ण प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है, जिससे आयात और निर्यात दोनों में उल्लेखनीय गिरावट आई है। यह आर्थिक कमजोरी, बढ़ते कर्ज और अन्य आर्थिक चिंताओं के साथ, प्रस्तावित IMEEC कॉरिडोर को चीन के लिए आशंका का स्रोत बनाती है।
कुल मिलाकर प्रस्तावित IMEEC कॉरिडोर इसमें भाग लेने वाले देशों के लिए अपार संभावनाएं रखता है, जो एक वैकल्पिक व्यापार मार्ग की पेशकश करता है, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देता है, बुनियादी ढांचे की कनेक्टिविटी को बढ़ाता है और संभावित रूप से आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है। यह पहल न केवल क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करती है बल्कि इसमें वैश्विक व्यापार गतिशीलता को नया आकार देने और इसमें शामिल देशों की आर्थिक भलाई में योगदान करने की भी क्षमता है। साथ ही, यह वैश्विक व्यापार पर चीनी अर्थव्यवस्था के आधिपत्य को हमेशा के लिए खत्म कर देगा।
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