जस्टिन ट्रूडो, तुमसे न हो पायेगा!

चले थे मियां भारत को झुकाने!

मिलिए जस्टिन ट्रूडो से, वह व्यक्ति जो  वैश्विक राजनीति के विद्यालय में ‘ओवरस्मार्ट’ फ्रंटबेंचर की भूमिका निभाता नजर आता है। माने वह व्यक्ति  जो हमेशा अपने सहपाठियों को मामूली आधार पर दंडित करने की कोशिश करता है ताकि वह क्लास का दुलारा और ‘टीचर का प्रिय’ बन पाए । लेकिन यहाँ समस्या यह है: वैश्विक मंच पर उनकी हरकतें उन्हें कोई पॉपुलैरिटी कॉन्टेस्ट नहीं दिला रही हैं।

ट्रूडो के हालिया कारनामों ने उन्हें भू-राजनीति के क्लासिक बैकबेंचर, भारत के साथ बदतमीज़ी करने के लिए प्रेरित किया, और यह कहना सुरक्षित है कि उन्होंने खुद के लिए स्थिति को बद से बदतर बना दिया है। लेकिन बात केवल इनकी वर्तमान बकैती अथवा ‘ज़ेलेन्स्की विथ ए क्लास’ बनने के असफल प्रयास के बारे में नहीं है।

यहाँ चर्चा हो रही है एक ऐसे नौसिखिया की, जो कूटनीति और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में एक महारथी से दो दो हाथ करने का प्रयास कर रहा है। यह एक मछली को पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करते हुए देखने जैसा है; जिसमें अंकल ट्रूडो कतई नहीं सफल होने वाले। तो मित्रों, अपने सीटबेल्ट बाँध लें, और चलिए इस यात्रा पे, ये समझने कि क्यों इस सारे झमेले के अंत में जस्टिन ट्रूडो न घर के रहेंगे, और न ही घाट के।

कैसे है भारत कनाडा से मीलों आगे?

जस्टिन ट्रूडो के वर्तमान कदम, जैसे कैनेडियन संसद में भारत को हड़काना एवं ट्रेड समझौता रद्द करने का निर्णय इत्यादि कुछ लोगों को प्रभावी और दमदार लग सकता है। परन्तु अगर बंधु ये सोचते हैं कि वे ऐसा करके वैश्विक राजनीति के दद्दा बन जायेंगे, तो या तो ये बहुत ही भोले हैं, या फिर इनसे निरा मूर्ख संसार में जन्मा है!

सर्वप्रथम, यहाँ बात हो रही है भारत की, जो 1998 से वैश्विक राजनीति में अमेरिका जैसे महाशक्तियों को धूल चटा रहा है। हम लोग निस्संदेह बहुत परफेक्ट नहीं, परन्तु हमारे देश की कूटनीतिक क्षमता को अंडरएस्टिमेट करने की भूल कृपया न करें।

चलिए, आंकड़ों पर दृष्टि डालते हैं। अगर कनेडा हमसे सभी प्रकार के व्यापार रद्द कर सकता है, तो 8 बिलियन डॉलर का व्यापार रुक जायेगा! अरे, ये तो हमारे वैश्विक व्यापार में चना मामड़ा है! इतने का व्यापार तो हम आजकल इज़राएल के साथ कर ले, जो भौगोलिक और जनसँख्या के अनुपात में कनेडा से बहुत छोटा है! इसके अतिरिक्त जापान से हमारा व्यापार तो 17.15 बिलियन डॉलर है, जो कनेडा के दुगने से भी अधिक है। यूके से तो हम आज भी 36.5 बिलियन पौंड के आसपास का व्यापार करते हैं!

व्यापार की बात करें तो, 2023 के पहले छह महीनों में ही भारत का निर्यात $800 बिलियन के आंकड़े को पार कर गया है! इसके बिल्कुल विपरीत, कनाडा 100 बिलियन डॉलर तक पहुंचने के लिए भी संघर्ष कर रहा है और मई 2023 में निर्यात 3.8 प्रतिशत की गिरावट देखी जा रही है। अभी तो हमने रूस और अमरीका के साथ अपने व्यापार पर चर्चा भी प्रारम्भ नहीं की है, तो यहाँ हानि किसे हो रही?

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कनाडा: जिसके झमेले इंग्लैंड को भी भोला बच्चा बना दे!

अब जब बात अर्थशास्त्र की हुई है, तो आर्थिक आंकड़ों पर भी दृष्टि डाल ही लेते हैं।  भारत सभी बाधाओं को पार करते हुए तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसमें 7.2 प्रतिशत की प्रभावशाली विकास दर है, जो एक मजबूत अर्थव्यवस्था का संकेत है। इस बीच, कनाडा की आर्थिक वृद्धि एक बहुत ही निराशाजनक तस्वीर पेश करती है, जिसमें 2022-23 वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही में मामूली 0.8 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई है।

हालाँकि, कनाडा की चिंताएँ यहीं ख़त्म नहीं होतीं। स्पष्ट रूप से कहें तो, कनाडा के झमेले देख एक बार को ब्रिटेन भी आपको स्वर्ग लगेगा । उदाहरण के लिए अप्रवासियों  के कारण अब कनेडा के प्रशासन को आवास के लाले पड़ गए हैं।

कैनेडियन रियल एस्टेट एसोसिएशन (सीआरईए) के अनुसार, कनाडा में एक घर की औसत कीमत जुलाई 2023 में $668,754 तक बढ़ गई, जो जुलाई 2022 से 6.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है। यह मूल्य टैग कई कनाडाई और नए लोगों के लिए पहुंच से बाहर है . ओंटारियो और ब्रिटिश कोलंबिया में हालात और भी कठिन हो जाते हैं, जहां अधिकांश अप्रवासी, विशेषकर खालिस्तानी प्रवृत्ति के ‘शरणार्थी’ पाए जाते हैं, जहां घर की कीमतें क्रमशः $856,269 और $966,181 तक पहुंच जाती हैं।

लेकिन रुकिए, ये तो कुछ भी नहीं है। मुद्रास्फीति लगभग 6 प्रतिशत तक बढ़ गई है, जिससे औसत कनाडाई बटुए पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है। ट्रूडो सरकार के COVID-19 संकट से निपटने के तरीके ने कई लोगों को निराश किया है, और कई लोग इसीलिए जस्टिन ट्रूडो के प्रशासन से क्रोधित भी है।

इसके अतिरिक्त इस ‘रॉयल मेस’ में क्यूबेक प्रांत में एक अलग फ्रांसीसी भाषी राष्ट्र की लंबे समय से चली आ रही मांग भी शामिल है। क्या इसीलिए ट्रूडो भारत की ओर ध्यान भटकाना चाहते हैं? सोचने वाली बात है!

बेटा जस्टिन, तुमसे न हो पायेगा!

तो जस्टिन ट्रूडो क्यों ऐसा मोर्चा संभाल रहे हैं, जहाँ विजय लगभग असम्भव है? वो कहते हैं, ‘अपने मुंह मियां मिट्ठू’ बनने का अभी कोई इलाज नहीं, और इस बीमारी से जस्टिन बंधू बहुत बुरी तरह ग्रसित हैं!

अपनी निरर्थक नीतियों और स्पष्ट दृष्टिकोण की कमी के लिए अपने ही देशवासियों से घोर आलोचना का सामना करने के बावजूद, ट्रूडो वास्तविकता को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। अधिकांश नेता एक स्थायी और अद्वितीय विरासत बनाने की आकांक्षा रखते हैं, पर ट्रूडो दूरदर्शी नेताओं के साथ नहीं, बल्कि जो बाइडन और वलोडिमिर ज़ेलेंस्की जैसे लोगों के साथ एक अजीब प्रतिस्पर्धा में लगे हुए प्रतीत होते हैं, जो वैश्विक मंच पर सबसे बड़े जड़मति के खिताब के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।

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भारत को नाराज़ करने की ट्रूडो के वर्तमान प्रयास इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। हालाँकि, उनके कार्यों को भारत से त्वरित और उचित प्रतिक्रिया मिली, जिसने प्रतिक्रिया में कनेडा के स्थानीय खुफिया प्रमुख को तुरंत निष्कासित कर दिया। लेकिन भारत यहीं नहीं रुका। अपनी नवीनतम ट्रेवल एडवाइज़री में, उन्होंने कनाडा की तुलना पाकिस्तान से की और अपने नागरिकों से देश में सावधानी बरतने का आग्रह किया। ऊपर से वैश्विक महाशक्तियों ने ट्रूडो का समर्थन करने से भी स्पष्ट मना कर दिया, क्योंकि इस समय भारत से पन्गा न उनके छवि के लिए अच्छा होगा, और न ही उनके राष्ट्र की प्रगति के लिए।

आर्थिक रूप से कहें तो, ट्रूडो की लड़ाई पहले से ही एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे है। सामाजिक रूप से, वह एक तिरस्कृत और बहिष्कृत नेता है। और कूटनीतिक रूप से, ऐसा प्रतीत होता है कि वह ज़ेलेंस्की का अनुसरण कर रहे हैं, यानी न घर के रहे और न ही घाट के। तो श्रीमान ट्रूडो, आप रहने ही दो, क्योंकि भारत को वैश्विक स्तर पर झुकाना आपके बस की बात नहीं!

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