2022 की तुलना में अब तक 2023 के फ़िल्मी परिदृश्य को देखकर मुख से एक ही संवाद निकला, “मजा नहीं आ रहा!” परन्तु 20 अक्टूबर को कुछ ऐसा हुआ, जिसने भारतीय सिनेमा को पुनः उत्साह और प्रतिस्पर्धा के जोशीले वातावरण से परिपूर्ण किया है। बॉलीवुड निर्माताओं द्वारा लिए एक निर्णय ने न केवल बहुभाषीय सिनेमा को पुनर्जीवित किया है, बल्कि पुनः सिद्ध किया कि क्यों बॉलीवुड उपहास का पात्र बना हुआ है, पटकथा लेखन और व्यावसायिक, दोनों ही पहलुओं में।
इस वर्ष, 20 अक्टूबर को पड़ने वाले विजयादशमी के भव्य त्योहार से पूर्व सप्ताह में, 19 से 20 अक्टूबर के बीच विभिन्न क्षेत्रों की कम से कम छह से सात फिल्में सिल्वर स्क्रीन पर जनता के समक्ष आई। एक तरफ जहां बॉलीवुड की ओर से ‘गणपत’ और ‘यारियां 2’ जैसी फिल्में आई, तो लोकप्रिय एक्शन निर्देशक लोकेश कनगराज ने “LEO” के साथ अपने प्रसिद्ध LCU (लोकेश सिनेमैटिक यूनिवर्स) में एक और किस्त जोड़ी।
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कन्नड़ स्टार शिव राजकुमार ने अपनी बहुभाषीय फिल्म “घोस्ट” को दर्शकों के सामने पेश किया, तो प्रतिस्पर्धी तेलुगु फिल्म उद्योग में “भगवंत केसरी” और “टाइगर नागेश्वर राव” नामक दो बड़ी रिलीज़ हुईं, जो वास्तव में इसी नाम के एक डकैत से प्रेरित थीं। यहां तक कि बंगाली फिल्म उद्योग ने भी “बाघा जतिन” नामक एक अनूठी परियोजना के माध्यम से अपना योगदान दिया, जो वीर क्रांतिकारी जतिंद्र नाथ मुखर्जी पर आधारित थी।
तो बॉलीवुड कैसे भद्द पिटी, और बहुभाषीय सिनेमा ने कैसे धूम मचाई? असल में इसका कारण ‘LEO’ के साथ ओटीटी मुद्दे से सम्बंधित हैं। ओटीटी पर “LEO” की रिलीज की तारीख इसकी फ़िल्मी रिलीज की तारीख से सिर्फ चार सप्ताह दूर है। इसके चक्कर में पीवीआर और सिनेपोलिस जैसी कुछ हिंदी मल्टीप्लेक्स श्रृंखलाओं ने फिल्म के निर्माताओं को एक अल्टीमेटम जारी किया, जिसमें ओटीटी रिलीज में देरी की मांग की गई, अन्यथा वे फिल्म की स्क्रीनिंग नहीं करते।
परन्तु ‘LEO’ के निर्माताओं को मल्टीप्लेक्स ओनर्स की ये गुंडागर्दी रास न आई और फिल्म के निर्माताओं ने ओटीटी रिलीज के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया, और साथ ही उक्त मल्टीप्लेक्स चेन्स में हिंदी और तमिल संस्करणों की रिलीज रद्द कर दी। इस साहसिक निर्णय ने उन लोगों से सराहना अर्जित की है जो मानते हैं कि मल्टीप्लेक्स मालिकों को यह तय नहीं करना चाहिए कि कोई फिल्म ओटीटी प्लेटफार्मों पर कब रिलीज हो सकती है।
लेकिन मजे की बात तो यह निकली कि इन्ही मल्टील्पेक्स चेन्स को “LEO” से अधिक “गणपत” पर विश्वास था, उन्हें उम्मीद थी कि यह एक ब्लॉकबस्टर साबित होगी जो “LEO” पर भारी पड़ेगी। हाँ, वास्तव में उनमें यह सोचने का साहस था कि टाइगर श्रॉफ जैसा आदमी उन्हें लोकेश कनगराज की चुनौती से पार पाने में मदद करेगा! हालाँकि, यह दांव बुरी तरह भारी पड़ गया और उत्तरी क्षेत्रों में सीमित उपस्थिति होने के बावजूद, “LEO” शानदार सफलता के साथ आगे बढ़ रहा है। फिल्म दुनिया भर में करोड़ रुपये का कलेक्शन हासिल करने में कामयाब रही। मिली-जुली समीक्षा मिलने और बहुचर्चित “विक्रम” जितनी उल्लेखनीय न होने के बावजूद, केवल दो दिनों में 200 करोड़ रुपये कमाए।
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इसी भांति “भागवंत केसरी” ने भी “गणपत” को दिन में तारे दिखा दिए! “गणपत” ने तीन दिन में जितने नहीं कमाए होंगे, उससे कहीं इस फिल्म ने कमा लिए, जबकि ये आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के अतिरिक्त कुछ ही राज्यों में प्रदर्शित हुआ था! विकास बहल द्वारा निर्देशित होने और “LEO” के बराबर भारी बजट होने के बावजूद, यानी लगभग 150 – 200 करोड़ के बीच, अपने पहले दो दिनों में 5 करोड़ से भी कम की कमाई की। जहां तक दिव्या खोसला कुमार की “यारियां 2” की बात है, जिसके सीक्वल की किसी ने मांग नहीं की थी, तो जितना कम बोलें, उतना ही अच्छा।
फिल्म उद्योग की गतिशीलता में यह बदलाव बॉलीवुड के लिए एक चेतावनी के रूप में काम करना चाहिए, जिससे उन्हें सम्मोहक स्क्रिप्ट बनाने और सार्थक सिनेमा पेश करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। इस प्रकार, दिसंबर का महीना अंततः तय करेगा कि सिनेमाई वर्चस्व के सिंहासन पर कौन दावा कर सकता है: शक्तिशाली लेकिन अदूरदर्शी बॉलीवुड या अनाड़ी लेकिन अभिनव बहुभाषी सिनेमा!
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