बहुत कठिन है दानिश कनेरिया होना!

दानिश कनेरिया ने खोला पूरा कच्चा चिटठा

वर्ष था 2019, और माह था दिसंबर! अचानक एक खुलासे ने क्रिकेटिंग जगत को जड़ से हिला दिया था, जब पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर शोएब अख्तर ने बताया कि कैसे टीम में धार्मिक आधार पर भेदभाव होता था। इस रहस्योद्घाटन में शोएब ने विशेष रूप से दो क्रिकेट प्रतिभाओं, दानिश कनेरिया और यूसुफ योहाना के साथ किए गए व्यवहार को लक्षित किया।

क्रिकेट की दुनिया में, जहां प्रतिभा, समर्पण और जुनून ही सफलता के एकमात्र निर्धारक होने चाहिए, वहां जो कहानी सामने आई वह निराशाजनक थी। शोएब अख्तर की स्पष्ट स्वीकारोक्ति कि उनके अपने साथियों ने दानिश कनेरिया और यूसुफ योहाना जैसे व्यक्तियों को उनकी जातीयता के कारण अपमानित किया, से पाकिस्तानी जनता के भीतर गहरी जड़ें जमा चुकी घृणा भी सामने आई।

‘आजतक को हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में कनेरिया ने इस बात का खुलासा किया । इतना सब कुछ भोगने-झेलने के बावजूद उन्होंने कहा कि उनके लिए उनका धर्म सबसे अहम है और वो सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म के लिए आवाज उठाते रहेंगे। तो आज हमारी चर्चा होगी दानिश कनेरिया की इसी स्वीकारोक्ति पर, और क्यों उन्होंने न अपने संस्कृति को त्यागा, और न ही अपनी मातृभूमि को, जिसके लोगों ने उसे कभी अपना न माना!

 कैसे शाहिद आफरीदी एन्ड कम्पनी ने कर दिया दानिश का जीना मुहाल!

दानिश कनेरिया हाल ही में भारतीय पत्रकार आरफा खानुम शेरवानी के साथ तीखी नोकझोंक को लेकर सुर्खियों में आए थे। उनका मौखिक द्वंद्व भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट विश्व कप मुकाबले के दौरान रोमांचक माहौल पर केंद्रित था, जिसपे आरफा ने अनुचित आपत्ति जताई थी। हालाँकि दानिश इसलिए चर्चा का केंद्र नहीं कि उन्होंने भारतीय वामपंथियों की क्लास लगाईं, और न ही इसलिए कि वे सनातन के लिए पीएम मोदी के प्रयासों के प्रशंसक है। यह पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करने वाले एक खिलाड़ी के रूप में उनकी उतार-चढ़ाव भरी यात्रा में निहित है।

मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा परिकल्पित ‘कॉस्मोपॉलिटन आदर्शों’ के विपरीत, पाकिस्तान में ऐसा धार्मिक उन्माद उत्पन्न हुआ जिसकी अल्लामा मुहम्मद इकबाल ने भी कल्पना नहीं की थी। कई प्रयासों की बदौलत, गैर मुस्लिम समुदायों की आबादी, जो 1947 तक लगभग 25 प्रतिशत से अधिक थी, 2011 तक घटकर 5 प्रतिशत से भी कम हो गई थी।
देश की क्रिकेट टीम, जो इस बदलाव का प्रतिबिंब है, में गैर-मुस्लिम समुदायों का सीमित प्रतिनिधित्व देखा गया। आश्चर्यजनक रूप से, ऐसी पृष्ठभूमि के केवल 7 क्रिकेटरों ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की जर्सी पहनी, जिसमें दानिश के बड़े चचेरे भाई अनिल दलपत ने पहले हिंदू विकेटकीपर के रूप में इतिहास रचा।

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इसी सम्बन्ध में दानिश कनेरिया ने बताया कि बतौर एक अल्पसंख्यक खिलाड़ी उनका करियर पाकिस्तान में कैसा था। दानिश कनेरिया ने अपने करियर को लेकर कहा, “मेरा करियर भगवान की कृपा से अच्छा जा रहा था। मैं अच्छा कर रहा था। मैं चौथा सबसे अधिक विकेट लेने वाला पाकिस्तानी खिलाड़ी था। मैं काउंटी क्रिकेट भी खेल रहा था। मुझे इंजमाम-उल-हक ने अच्छा सपोर्ट किया। वह एक अकेले इंसान थे, जिन्होंने एक कैप्टन के तौर पर मेरा सपोर्ट किया।”

शाहिद आफरीदी की पोल खोलते हुए उन्होंने बताया, “उनके [इंज़माम] अलावा केवल शोएब अख्तर ने साथ दिया। लेकिन शाहिद अफरीदी और बाकि लोगों ने मुझे बहुत सताया। वो मेरे साथ खाना नहीं खाते थे। कनवर्जन की बात करते थे। शाहिद आफरीदी मेन है, जो मुझे बहुत दफा इस्लाम कबूल करने को कहते थे।”

“सनातन से सर्वोपरि कुछ नहीं!”

स्पॉट फिक्सिंग के आरोपों को संबोधित करते हुए, जिसने उनके करियर को विवादों में डाल दिया था, दानिश ने बताया, “शाहिद अफरीदी के नेतृत्व में पाकिस्तानी टीम के कई प्रमुख खिलाड़ियों ने लगातार मुझसे इस्लाम में परिवर्तित होने का आग्रह किया। मुझे गलत तरीके से झूठे स्पॉट फिक्सिंग के आरोपों में फंसाया गया था।”

पर ऐसा कैसे हुआ, इसके बारे में दानिश ने आगे बताया, “कुछ लोग अब आठ वर्षों के बाद मेरे कथित अपराध स्वीकारोक्ति पर चर्चा कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि रिकॉर्ड को सही तरीके से स्थापित किया जाए। मुझे हमारे क्रिकेट बोर्ड से कभी समर्थन या समर्थन नहीं मिला, चाहे वह इजाज भट हो या नजम सेठी। उन्होंने मेरे हिन्दू होने के वजह से आंखें मूंद लीं , क्योंकि वे पूरी तरह से जानते थे कि मेरे पास रिकॉर्ड तोड़ने की क्षमता है। अगर मैं मैदान पर पुनः कदम रखता, तो मैं कई अन्य रिकॉर्ड बनाता। यह अपरिहार्य था, और वे जानते थे कि मेरे पास सभी रिकॉर्ड तोड़ने की क्षमता है।”

इतना सब कुछ भोगने-झेलने के बावजूद उन्होंने कहा कि उनके लिए उनका धर्म सबसे अहम है और वो सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म के लिए आवाज उठाते रहेंगे। कनेरिया ने आरोप लगाया है कि पाकिस्तान टीम के पूर्व कप्तान शाहिद अफरीदी ने कई बार उन पर इस्लाम कबूलने के लिए दबाव डाला था। उनसे कहा जाता था कि ऐसा करने पर वो लंबे वक्त तक पाकिस्तानी क्रिकेट टीम में खेल पाएँगे।

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कनेरिया ने कहा, “मेरे लिए मेरा धर्म, सनातन धर्म सबसे बढ़कर है। उससे ऊपर मेरे लिए कुछ भी नहीं। मेरे जिंदगी में राम भगवान का चरित्र है। उनके जीवन ने हमें यही सिखाया है कि सनातन और सनातन धर्म के लिए आवाज उठाओ। जहाँ कुछ गलत हो रहा है, मैं वही कह रहा हूँ। पाकिस्तान में लोगों के साथ जो परिस्थिति है, वही कह रहा हूँ।”

दानिश कनेरिया की अपनी आस्था के प्रति अटूट प्रतिबद्धता, साथ ही पाकिस्तान में हिंदू समुदाय के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ उनका निडर रुख, सनातन धर्म के मूल्यों के लिए एक शक्तिशाली प्रमाण के रूप में कार्य करता है। ऐसे समय में जब उनके भारतीय समकक्ष अपने सांस्कृतिक जड़ों के साथ मजबूती से खड़े होने से पूर्व दस बार सोचते हैं, दानिश कनेरिया सिद्ध करते हैं कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी एक सनातनी होने को गर्व का विषय बनाना चाहिये, लज्जा का नहीं।

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