Israel Hamas war: इतिहास साक्षी है इज़राएल के प्रतिशोधी शक्ति का!

ऐसे हमलों का करारा जवाब इज़राएल के लिए आम दिनचर्या समान है!

Israel Hamas war: 48 घंटों से भी कम समय में, अनेक मोर्चों पर हमास ने इज़राएल पे धावा बोल दिया। लेकिन इस आक्रमण का मूल्य इज़राएल हमास से ब्याज़ समेत ले रहा है, क्योंकि जवाब में इज़राएल ने आधिकारिक तौर पर उनके खिलाफ युद्ध (Israel Hamas war) की घोषणा कर दी है। उनका संकल्प दृढ़ है: जब तक हमास का विध्वंस नहीं होगा, इज़राएल चैन से नहीं बैठेगा!

इसी बात को ध्यान में रखते हुए इज़राइल के रक्षा मंत्री ने गाजा पर पूर्ण नाकाबंदी लगा दी है, यानी गाज़ा को किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं मिलेगी!  इसके अतिरिक्त इज़राइल ने गाजा में जमकर कहर बरपाया है, और कई हवाई हमलों के माध्यम से महत्वपूर्ण ठिकानों को ध्वस्त कर दिया है, जिसमें वह जगह भी शामिल है जहां हमले का षड्यंत्र कथित तौर पर रचा गया था। यही नहीं, इस्लामिक नेशनल बैंक एवं अल वॉटन टॉवर भी ध्वस्त किये गए, जो हमास को वित्तीय एवं मीडिया के माध्यम से सहायता प्रदान करते थे।

परन्तु ये ऐसा प्रथम अवसर नहीं है, और जिन्हे लगता है कि हमास के हमले से इज़राएल पस्त पड़ जायेगा, उन्हें भी ज़बरदस्त झटका (Israel Hamas war) लगने वाला है। नमस्कार मित्रों, और आज हम चर्चा करेंगे कि क्यों जब बात इज़राएल से पन्गा लेने की हो, तो टेंशन शत्रु के लिए अधिक है, इजरायल के लिए नहीं!

Israel Hamas war: यह प्रथम आघात नहीं

शनिवार की एक सुबह जब हज़ारों इज़राएल के निवासी एक संगीत फेस्टिवल का आनंद ले रहे थे, तो हमास अचानक से असुरों की भांति टूट पड़ा! चारों और हाहाकार मच गया, और हमास ने किसी को नहीं छोड़ा, छोटे छोटे बच्चों को भी नहीं!

वर्तमान अपडेट्स के अनुसार, इस घातक आघात में 400 से अधिक इजरायलियों ने अपनी जान गंवा दी है, जबकि 1,000 से अधिक लोग घायल बताये गए हैं। संभवत: 300 से अधिक लोगों को हमास ने बंधक बना लिया है, जिसमें इज़रायली सेना के सैनिक भी सम्मिलित हैं। ऐसी त्रासदी के समक्ष इज़राएल बिना संभावित खतरों के बारे में ध्यान दिए हमास को तगड़ा सबक (Israel Hamas war) सिखाने के मार्ग पर उद्यत है।

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परन्तु एक साथ अनेक मोर्चों पर आक्रमण इज़राएल के लिए कुछ नया नहीं है। न ही यह पहली बार है कि इज़राएल को ललकारने वालों को बाद में अपने ही किये पर पछताने का भी अवसर न मिला हो। जिस तरह भारत चीन, पाकिस्तान और यहां तक कि कनाडा जैसे अपने विरोधियों को आंखें दिखा रहा है, वो  तरह इज़राइल दशकों से ऐसा कर रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जब राष्ट्रीय सुरक्षा की सुरक्षा की बात आती है इज़राएल ने ही एक प्रकार से वर्तमान भारतीय सुरक्षा नीति का मार्गदर्शन किया है।

ये कथा प्रारम्भ होती है 1967 से, जब भारत को नाथू ला और चो ला में सीमा पर झड़पों में चीन का सामना करना पड़ा था। इस बीच, इज़राइल ने सीरिया के साथ अपनी सीमा पर खुद को संकट में पाया, जो 1948 में इज़राएल के सृजन के बाद से ही उसके सबसे कट्टर शत्रुओं में से एक है।

कारण तो कई है, परन्तु इज़राएल का यहूदी बहुल होना ही उसके पड़ोसियों के गले की फाँस बन गया! इसके अतिरिक्त सीरिया की ज़िद थी कि जॉर्डन नदी का उपयोग इज़राइल को अपनी जलापूर्ति की आवश्यकताओं के लिए न दें! अधीरता में, सीरिया ने इजराइली गांवों और खेतों पर गोलाबारी करने के लिए गोलान हाइट्स का इस्तेमाल किया, जो कि लेवांत क्षेत्र में गैलिली सागर से 3,000 फीट ऊपर एक बेसाल्टिक पठार है।

लेकिन इज़राएल भी शांत बैठने वालों में से नहीं था! यही नहीं, जब युद्ध के बादल मंडराने लगे, तो मोरोक्को के तत्कालीन राजा हसन  ने गुप्त रूप से अरब लीग की बैठकों को रिकॉर्ड किया, जिसमें मिस्र, सीरिया और जॉर्डन समेत युद्धरत देशों के बारे में महत्वपूर्ण विवरण शामिल थे। संक्षेप में, मोरोक्को ने इज़राएल को सीरिया एवं अन्य अरबी राष्ट्रों के विरुद्ध आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराई! जून 1967 में लगातार छह दिनों के संघर्ष के बाद, इज़राइल ने मिस्र, सीरिया, इराक, सऊदी अरब और यहां तक कि पाकिस्तान की संयुक्त सेना को करारा झटका दिया, जिसने अरबियों के समर्थन में अपने कुछ फाइटर जेट्स भी भेजे थे!

अपने रिस्क पर इज़राएल से बैर करें!

एक वो दिन था, और एक आज का दिन! जिसने भी इज़राएल से पन्गा मोल लिया, उसने सदैव मुंह की खाई! इसके बाद भी मिस्र, सीरिया और बाद में ईरान जैसे देशों ने विभिन्न बहानों के तहत इज़राइल पर आक्रमण करने का दुस्साहस किया, परन्तु इज़राएल ने हर चुनौती का मुकाबला दृढ़ता से किया।

वर्तमान घटना की भांति 1973 में यहूदियों के अति महत्वपूर्ण उत्सव योम किपर [जो संयोग से रमज़ान वाले ही समय पड़ा] के अवसर पर अरबियों ने पुनः धावा बोल दिया। प्रारम्भ में इज़राइल को असफलताओं का सामना करना पड़ा, लेकिन अंततः उन्होंने दृढ़ संकल्प के साथ मुकाबला किया। युद्ध गतिरोध में समाप्त हुआ, जो कुछ हद तक 1965 के युद्ध के दौरान भारत की स्थिति का स्मरण कराता है। परन्तु ताशकंद शिखर सम्मेलन की भांति इज़राइल को 1978 कैंप डेविड समझौते पर हस्ताक्षर करने के साथ अपने बेशकीमती सिनाई प्रायद्वीप को छोड़ना पड़ा। फिर भी, यह ध्यान देने योग्य है कि मिस्र ने बाद में एक राज्य के रूप में इज़राइल की वैधता को मान्यता दी।

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यह वही इज़राएल है जिसने म्यूनिख ओलंपिक में फिलिस्तीनी आतंकवादियों द्वारा 11 इज़राइली एथलीटों की जघन्य हत्या का बदला लेने तक विश्राम नहीं किया था। इज़राइल ने 1976 में एंटेबे हवाई अड्डे पर इज़राएल लगभग 106 इज़राइली यात्रियों को छुड़ाया। उनके प्रमुख, लेफ्टिनेंट कर्नल योनातन नेतन्याहू वीरगति को प्राप्त हुए, परन्तु इज़रायली कमांडो ने अपने नागरिकों को बचाके ही दम लिया ।

तो इतना तो तय है – जो भी इज़राएल से पन्गा मोल लेगा, उसका हमास जैसा ही हाल होगा! इजरायली रक्षा मंत्री ने हमास के हर अवशेष को नष्ट होने तक जारी रखने की कसम खाई है।

उल्लेखनीय रूप से, इज़राइल को इस संकट के दौरान यूके, भारत और यहां तक कि संयुक्त अरब अमीरात से स्पष्ट समर्थन मिला है। यहां तक कि ईरान ने भी इन हमलों के मद्देनजर इजरायल द्वारा उन पर हमला करने पर जवाबी कार्रवाई की धमकी देते हुए खुद को हमास से दूर कर लिया है। यह देखना बाकी है कि इज़राइल हमास का क्या हाल करता है, लेकिन इसके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, हमास के इतिहास बनाने में समय नहीं लगेगा।

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