आखिर अमेरिका पन्नू की सुरक्षा के लिए चिंतित क्यों है?

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WHY?फाइनेंशियल टाइम्स के एक नवीन लेख में संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत से सम्बंधित एक चिंताजनक प्रसङ्ग सामने आया है। लेख के अनुसार, अमेरिकी अधिकारी एक सिख अलगाववादी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नून की हत्या के षड्यंत्र को विफल करने में सफल रहे, ज्ञात हो कि पन्नून के पास अमेरिका और कनाडा दोनों की नागरिकता है। ऐसा कहा जा रहा है कि भारत सरकार ही इस षड्यंत्र के पीछे है, इस प्रसङ्ग के कारण दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव आना स्वाभाविक है।

गुरपतवंत सिंह पन्नून कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं; वह एक अलग सिख देश, खालिस्तान की अभ्यर्थना करने वाले अमेरिका स्थित आतंकवादी संगठन सिख्स फॉर जस्टिस के जनरल काउंसिल हैं। लेख के अनुसार इस समूह की गतिविधियों और पन्नून की भूमिका के कारण पन्नून भारत सरकार के लक्ष्य है, और उनका वध करने का तथाकथित षड्यंत्र भी रचा जा चुका था जिसे अमेरिकी अधिकारियों ने कथित तौर पर निरस्त कर दिया।

हालाँकि, इस षड्यंत्र को असफल करने से संबंधित विवरण अस्पष्ट हैं। विषय से परिचित सूत्रों ने यह निर्दिष्ट नहीं किया है कि क्या हस्तक्षेप नई दिल्ली में अमेरिका के विरोध का परिणाम था या क्या यह एफबीआई की प्रत्यक्ष भागीदारी थी जिसने षड्यंत्रकर्ताओं की योजना को बाधित किया।

यह भी उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने भारत को चेतावनी तब दी थी जब भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जून में वाशिंगटन गए थे।

एनएससी के प्रवक्ता एड्रिएन वॉटसन ने बताया कि इस मुद्दे को नई दिल्ली के साथ उच्चतम स्तर पर उठाया गया है।

वाशिंगटन ने कथित रूप से अपने सहयोगियों के एक व्यापक समूह के साथ पन्नून विषय का विवरण साझा किया है। सूचना का यह प्रसार कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा वैंकूवर में हुए तथाकथित राजनैतिक हत्या के सार्वजनिक रहस्योद्घाटन के पश्चात हुआ। ज्ञात हो कि भारत ने निज्जर की हत्या में आवृत होने के कनाडा के आरोपों को निराधार बताते हुए सिरे से निरस्त कर दिया था।

भारत के विदेश मंत्रालय ने एफटी की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए उल्लेख किया कि हाल ही में भारत-अमेरिका सुरक्षा वार्ता में, अमेरिका ने संगठित अपराधियों, शस्त्रधारियों, आतंकवादियों और अन्य अराजक तत्वों के बीच संबंधों के बारे में गुप्त सूचना साझा की।

फाइनेंशियल टाइम्स द्वारा संपर्क किए जाने पर पन्नुन ने स्वयं यह स्वीकृत नहीं किया कि अमेरिकी अधिकारियों ने उसे उसके जीवन के प्रति आपद् के विषय में सूचित किया था या नहीं। एफटी को दिए गए उसके वक्तव्य में पन्नुन ने इस विषय अर्थात उसकी निजी सुरक्षा का भार अमेरिकी सरकार पर डाल दिया। उसने कहा कि अमेरिकी धरती पर उसके जीवन को कथित तौर पर भारतीय हत्यारों से मिल रहे दण्डोद्यम का उत्तर देना अमेरिकी अधिकारियों पर ही निर्भर है।

व्हाइट हाउस ने आगे कहा कि जब अमेरिका ने यह मुद्दा उठाया तो भारत सरकार ने आश्चर्य और चिंता दोनों व्यक्त की। भारतीय अधिकारियों ने कहा कि “इस प्रकृति की गतिविधि नीतिगत नहीं थी,” सरकार ऐसे षड्यंत्रों में कभी भी संलिप्त नहीं होती।

उत्तम अति उत्तम! गुरपतवंत सिंह पन्नून के संबंध में नूतन पुरातन सभी घटनाक्रम स्पष्ट हैं, लेकिन अब कई प्रश्न भी उठ खड़े हुए हैं, जो न केवल अमेरिका से, बल्कि वैश्विक स्तर पर, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण अर्थात ग्लोबल साउथ के परिप्रेक्ष्य से, उत्तर मांगते हैं वह भी प्रक्रोश और आक्रोश के साथ।

सर्वप्रथम और सर्वमहत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि अमेरिका भारत द्वारा आतंकवादी घोषित किए गए व्यक्ति को आश्रय क्यों दे रहा है? यदि भारत ने बगदादी या बिन लादेन जैसे कुख्यात आतंकवादियों को सर्वे भवन्तु सुखिनः बोलकर अतिथि बना लिया होता तब? तो अमेरिका की क्या प्रतिक्रिया होती? यह तुलना अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक दोहरे मानक को रेखांकित करती है, जहां नियम देश देश के आधार पर भिन्न होते हैं।

तदानोपरांत पन्नुन जिस संगठन से जुड़ा है अर्थात सिख फॉर जस्टिस का विषय है । स्वतंत्र सिख राज्य की अभ्यर्थना करने वाला यह समूह अमेरिका के भीतर से ही काम कर रहा है। ऐसे संगठन को, जिसे भारत अपनी क्षेत्रीय अखंडता के लिए चुनौती मानता है, उसे अमेरिकी धरती पर कार्य करने की अनुमति क्यों दी गयी? यह स्थिति वैश्विक स्तर पर अलगाववादी आंदोलनों पर अमेरिका के द्वैविध्य, द्वैरूप्य और निकृति को चिह्नित करती है।

पन्नून के विषय में अमेरिकी सरकार की उच्च स्तरीय भागीदारी भी चकित करने वाली है। पन्नून जैसे व्यक्ति के लिए इतनी चिंता क्यों है? क्या उसकी कथा में कुछ और भी है, वस्तुतः सीआईए के साथ संबंध, जैसा कि अमेरिका करता भी आया है? अंतरराष्ट्रीय संबंधों में ऐसी कुटिलता नई नहीं हैं, जहां गुप्त वञ्चनाओं ने ऐतिहासिक रूप से भू-राजनीति को आकार देने में भूमिका निभाई है।

इसके अलावा, खालिस्तान आंदोलन और पाकिस्तान के आईएसआई के बीच संबंध तो प्रज्ञात सत्य है। इससे अमेरिका की मंशा पर संदेह पैदा होता है. क्या अमेरिका भारत को अस्थिर करने के लिए पाकिस्तान के साथ सहयोग कर रहा है, क्योंकि भारत एक ऐसा देश है जो अब एक महत्वपूर्ण वैश्विक क्रीडक है, डीडॉलराइजेशन जैसे आंदोलनों का नेतृत्व कर रहा है, ब्रिक्स का नेतृत्व कर रहा है और तेजी से आर्थिक विकास का प्रदर्शन कर रहा है?

पन्नून का नूतन वीडियो संदेश जिसमें भारतीय अधिकारियों को धमकी दी गई थी और सिखों को एयर इंडिया से उड़ान न भरने का निर्देश दिया गया था, अर्थात बम विस्फोट की अभिशस्ति । क्या इसका मतलब यह है कि अमेरिका पन्नून को संरक्षण देते हुए ऐसी अभिशस्तियों का भी समर्थन करता है? यह अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर अमेरिका के द्वैरूप्य को और प्रकाशमान करती है।

अंत में, ट्रूडो और अमेरिका दोनों द्वारा किए गए दावों की वैधता का अनुसन्धान होना ही चाहिए। ट्रूडो, जिन्होंने वैंकूवर में एक हत्या में नई दिल्ली की संलिप्तता के बारे में आरोप लगाए थे, उन्होंने कोई तार्किक साक्ष्य नहीं दिए। इसी तरह, हत्या की षड्यंत्र के बारे में अपने अभिकथन के समर्थन में अमेरिका के पास क्या साक्ष्य हैं? पारदर्शी साक्ष्य की कमी अंतरराष्ट्रीय संबंधों और न्याय के लिए चिंता का विषय है।

बाईडेन शासन करने के लिए बहुत वृद्ध हैं और उनके पास कार्यालय में केवल कुछ महीने ही शेष हैं। उनके लिए बुद्धिमानी होगी कि वह भारतीय मधुमक्खी के छत्ते में अंगुष्ठ प्रवेश न करे। भारतीय मधुमक्खी का डंक अत्यंत पीड़ादायक है।

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