पाकिस्तान के पास एक समय एक क्रिकेट टीम थी। अब उसके पास केवल मौलानाओं की टीम है।

एक आतंकवादी मुल्क, जिसकी विषैली सोच का जन्म ही 10 लाख से ज़्यादा हिन्दू और सिक्खों की हत्या और बलात्कार से हुआ था, जिसका संचालन एक दुष्ट सेना कर रही है। एक ऐसा आतंकवादी मुल्क, जिसे कुछ लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए और भारत की बरबादी के लिए भाड़े पर लेते हैं, एक ऐसा आतंकवादी मुल्क, जो वैश्विक जिहाद उद्योग का केंद्र भी है, और जिसे हर वक़्त सेना और मुल्लाह का खतरनाक गठजोड़ और घातक बनाने के लिए जुगत भिड़ाता रहता है। यही है पाकिस्तान की सच्चाई, जिसे जानबूझकर अनदेखा करने की कोशिश में लगे रहते हैं हमारे अमन की आशा वाले ढोंगी।

सीमांत आतंकवाद की तरह क्रिकेट भी अब सेना और मुल्लाह के गठजोड़ के लिए काफिरों पर अपना वर्चस्व जमाने के लिए एक संभावित् ब्रह्मास्त्र के तौर पर परख रही है, जिनपर हर किस्म की जीत इनके श्रेष्ठता का प्रतीक है।

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पाकिस्तान के ड्रेस्सिंग रूम में तबलीघी जमात की सेंध बहुत पहले पड़ चुकी है, जिसमें इस्लामी प्रतीक दिखाना अनिवार्य है, जैसे खिलाड़ियों द्वारा नमाज़ जैसा की हमने वर्ल्ड कप में कई बार देखा, हर जवाब की शुरुआत ‘अल्लाह का शुक्र है’ से शुरू करना, इत्यादि। इसकी अवहेलना करने वाले क्रिकेटरों का क्या हश्र होता है, ज़रा यूनिस खान और शोएब अख्तर से पूछिएगा, जिनमें यूनिस भाई को कप्तानी के पद से उन्ही के साथियों ने ज़बरदस्ती हटाया था। शोएब अख्तर को भी मुफ़लिसी के दिन देखने पड़े थे। दानिश कनेरिया ने भी बताया था कि शोएब को एक हिन्दू की पैरवी करने की बड़ी सजा मिली थी.

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दूसरे धर्मों से ताल्लुक रखने वाले या तो परिवर्तित करा लिए जाते हैं, या फिर एकदम ही किनारे कर दिये जाते हैं। ईसाई क्रिकेटर युसुफ योहाना को इंजमाम और सईद अनवर के निरंतर दबाव के बाद धर्म परिवर्तन करना पड़ा था , और बन गए वो मोहम्मद युसुफ। टेस्ट में पाकिस्तान के लिए सर्वाधिक विकेट चटकाने वाले हिन्दू क्रिकेटर दानिश कनेरिया को न सिर्फ टीम से, बल्कि क्रिकेट से भी बदकिस्मती से निष्कासित किया, और स्पॉट फिक्सिंग के मकड़जाल में उन्ही को बली का बकरा बना दिया गया।

हद तो तब हो गयी, जब 2007 के प्रथम टी20 विश्व कप के लिए अनुभावी यूनिस के ऊपर शोएब मलिक को तरजीह दी गयी, और वो इसलिए पाकिस्तान को ठीक लगा, क्योंकि फ़ाइनल के बाद शोएब मलिक ने दुनिया भर के मुसलमानों से इस हार के लिए माफी मांगी। ये अलग ही बात है की इस मैच का मैन ऑफ दी मैच भारत के प्रख्यात गेंदबाज इरफान पठान थे। समझे बाबू?

अब तुलना कीजिये इस 1997 के क्लिप से, जब सईद अनवर ने भारत के खिलाफ अपने ताबड़तोड़ 194 रन की पारी के बाद रवि शास्त्री को धाराप्रवाह अँग्रेजी में इंटरव्यू देते दिखे, जो अब तो लगभग इस्लामिक उपदेश समान लगता है.

अगर आईसीसी में थोड़ी भी गैरत बाकी है, तो उन्हे पाकिस्तान के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं को अपने धार्मिक आडंबरों का प्रचार करने के अपराध में कड़ी कारवाई करनी चाहिए। ये सारे धार्मिक कथन और धार्मिक प्रतीक जो मैच के बाद पुरुस्कार समारोह में दिखाती है पाकिस्तान, इस पर डंडा चलवाना अनिवार्य है। खेल के प्रतियोगिताओं में ऐसी विषैली सोच के प्रचार और प्रसार के लिए कोई जगह नहीं है।

वैसे भी, अगर दक्षिण अफ्रीका को रंगभेद के लिए सभी खेल प्रतियोगिताओं से 21 सालों के लिए निष्कासित किया जा सकता है, तो पाकिस्तान को आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए क्यूँ नहीं प्रतिबंधित किया जा सकता?

ऐसा इसलिए है की भारत के दूसरे संस्थानों की तरह बीसीसीआई के पास भी जिगरा नहीं है ऐसे कड़े फैसले लेने का। इनके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और गौरव से ज़्यादा महत्वपूर्ण है मुनाफा कमाना। जब तक सरकार इनकी बाहें न मरोड़े, तब तक इनसे कुछ कड़े फैसले की उम्मीद भी मत करिएगा!

और इन्हे अलग करने से मतलब सिर्फ कूटनीतिक पहल तक सीमित नहीं होनी चाहिए भाई। इसे हर मोर्चे पर जाना चाहिए, चाहे वो राजनीति हो, या विदेशी दौरे, यहाँ तक की लोगों को भी इस नीति को पूरा समर्थन देना चाहिए। जब पाकिस्तान के खिलाफ आप मैच खेलते हो न, तो आप ये सबूत दुनिया को देते हो की ये एक आम देश ही है। हमें इनसे कोई दिक्कत नहीं। इसने भारत को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है। जब इनके अभिनेताओं को हम अपनी फिल्मों में जगह देते हैं, तो हम अपने देश की इज्ज़त की मिट्टी पलीद करते हैं।

ऐसा करने से आप हमारे देश की सुरक्षा एजेंसियों और कूटनीतिज्ञों की मेहनत ज़ाया कर रहे हैं, हमारे जवानों के बहाये खून पर आप थूकते हैं, और जिन गांवों को पाकिस्तान की गोलाबारी उजाड़ देती है, उनकी दशा पर हंसी उड़ातें हैं आप। आप साबित करते हैं की आप उस मुल्क के वासी हैं, जिसमें कोई स्वाभिमान नहीं है, और जो मनोरंजन और मुनाफे को इज्ज़त और आत्मरक्षा के ऊपर रखता है।

और आप चाहते हो की सारा विश्व आपका सम्मान करे, और आप एक महाशक्ति बनें? दिल बहलाने को ग़ालिब, ये खयाल अच्छा है!

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