उत्तराखंड सुरंग बचाव अभियान: एक संघर्ष से सफलता की ओर

आज हम लेकर आए हैं एक ऐसे क्षण की कहानी, जिसने उत्तराखंड को एक बड़ी चुनौती में डाल दिया। एक सुरंग में फंसे श्रमिकों को बचाने के लिए चलाए गए इस बचाव अभियान ने हमें सवालों के घेर में खड़ा करदिया। कैसे हुआ यह सब? क्या थी चुनौतियाँ? और कैसे हम इससे सिख सकते हैं? इस चुनौती भरे सवालमय यात्रा में हम सब मिलकर जानेंगे।

उत्तराखंड की सिल्कयारा सुरंग में 17 दिनों का बचाव अभियान, जहां 12 नवंबर से 41 श्रमिक फंसे हुए थे, धैर्य और दृढ़ता की परीक्षा का प्रतीक हैं। यह घटना ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राजमार्ग पर हुई जब भूस्खलन से निर्माणाधीन सुरंग आंशिक रूप से ढह गई, जिससे मजदूर फंस गए। इन घटनाओं के दौरान सामने आने वाली चुनौतियों और सफल परिणाम के लिए किए गए सामूहिक प्रयासों की विस्तृत समझ का उदाहरण प्रस्तुत करती है।

12 नवंबर – 13 नवंबर: प्रारंभिक प्रतिक्रिया और संचार

यह संघर्ष 12 नवंबर को शुरू हुआ, जिसने राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF), बॉर्डर रोड्स आर्गेनाइजेशन (BRO), NHIDCL, और ITBP की त्वरित प्रतिक्रिया को प्रेरित किया था। फंसे हुए श्रमिकों के साथ संचार स्थापित करने, वायु-संपीड़ित पाइप के माध्यम से ऑक्सीजन, बिजली और भोजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था। 13 नवंबर तक, श्रमिकों के सुरक्षित होने की सूचना भी दे दी गई थी, लेकिन ऊपर से ताजा मलबा गिरने के कारण सुरक्षित मार्ग बनाने के प्रयासों में बाधा का सामना करना पड़ा।

14 नवंबर – 17 नवंबर: तकनीकी चुनौतियाँ और सामरिक समायोजन

बचाव प्रयासों को असफलताओं का सामना करना पड़ा क्योंकि “Trenchless” तकनीक का उपयोग करने वाली “Auger” मशीनों को मलबे के माध्यम से ड्रिल करने में कठिनाई हो रही थी। दिल्ली से एयरलिफ्ट की गई एक अत्याधुनिक “Auger” मशीन ने मदद मिली परंतु 22 मीटर के खुदाई के बाद परेशानी का सामना करना पड़ा। इंदौर से एक बैकअप मशीन भी लाई गई थी, लेकिन क्षतिग्रस्त बियरिंग के कारण इसमें भी बाधा आ रही थी। 17 नवंबर को ड्रिलिंग को निलंबित करने के निर्णय के कारण पांच निकासी योजनाओं की घोषणा की गई, जिसमें एक ऊर्ध्वाधर सुरंग (Vertical Tunnel) की ड्रिलिंग भी शामिल थी।

18 नवंबर – 19 नवंबर: मूल्यांकन और ज़िम्मेदारियों को सौंपना

18 नवंबर को ड्रिलिंग फिर से शुरू नहीं हुई, क्योंकि विशेषज्ञों को डर था कि कंपन के कारण और गिरावट हो सकती है। प्रधान मंत्री कार्यालय (PMO) की एक टीम और विशेषज्ञों ने कई निकासी योजनाओं पर काम किया। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने स्थिति की समीक्षा करते हुए “Auger” मशीन से क्षैतिज ड्रिलिंग (Horizontal Drilling) को प्राथमिकता देने की पुष्टि की। सहयोगात्मक “संपूर्ण सरकारी दृष्टिकोण” पर जोर देते हुए पांच एजेंसियों को जिम्मेदारियां सौंपी गईं।

20 नवंबर – 21 नवंबर: वृद्धिशील प्रगति और दृश्य संपर्क

20 नवंबर को छह इंच के पाइप ने फंसे हुए श्रमिकों को सफलतापूर्वक आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्थिति का आकलन करने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर धामी से भी बात की। अगले दिन, एक एंडोस्कोपिक (Endoscopic) कैमरे ने श्रमिकों के साथ दृश्य संपर्क स्थापित किया, जिससे उनकी स्थिति और भरण-पोषण के लिए उपयोग किए जाने वाले तरीकों का पता चला। ध्यान अभी भी सिल्क्यारा की ओर से ड्रिलिंग पर ही केंद्रित था।

22 नवंबर – 25 नवंबर: ड्रिलिंग फिर से शुरू और अप्रत्याशित चुनौतियाँ

22 नवंबर को ड्रिलिंग फिर से शुरू हुई, जिससे महत्वपूर्ण प्रगति हुई। हालाँकि, 23 नवंबर को एक दरार के कारण परिचालन फिर से रुक गया। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने बताया कि फंसे हुए श्रमिकों तक पहुंचने में 15 मीटर की दूरी बाकी है। 25 नवंबर को, “Auger” का जोड़ टूट गया, जिससे वैकल्पिक दृष्टिकोण पर विचार करना आवश्यक हो गया था। फंसे हुए श्रमिकों के बीच तनाव कम करने के लिए मोबाइल फोन और बोर्ड गेम भी भेजे गए था।

26 नवंबर – 28 नवंबर: वैकल्पिक समाधान लागू करना और विजय का क्षण

हैदराबाद से आई प्लाज्मा मशीन ने टूटी “Auger” मशीन को निकालने का काम किया और ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग (Vertical Drilling) शुरू हुई। रैट-होल (Rat-Hole) खनन विशेषज्ञों ने क्षैतिज खुदाई प्रयासों में योगदान दिया। 28 नवंबर तक, बचावकर्मियों ने मलबे के आखिरी हिस्से को सफलतापूर्वक तोड़कर सभी 41 श्रमिकों का बचाव कर लिया। सावधानीपूर्वक आयोजित बचाव अभियान में तकनीकी नवाचार, रणनीतिक योजना और कई एजेंसियों के अथक समर्पण का संयोजन शामिल था।

समन्वय और निरीक्षण में PMO की भूमिका

पूरे ऑपरेशन के दौरान, प्रधान मंत्री कार्यालय (PMO) ने समन्वय और निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उप सचिव मंगेश घिल्डियाल से लेकर प्रमुख सचिव डॉ. पीके मिश्रा और PMO के अधिकारी सक्रिय रूप से शामिल रहे। घटना की सूचना मिलते ही मिश्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जानकारी दी। PMO के अधिकारियों ने ऑपरेशन की निगरानी की, और मिश्रा ने 27 नवंबर को घटना स्थल का दौरा किया। 20 नवंबर को समन्वय बैठक में विभिन्न मंत्रालयों, संगठनों और एजेंसियों को शामिल करते हुए “संपूर्ण सरकारी दृष्टिकोण” का उदाहरण दिया गया।

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जब ड्रिलिंग उपकरण विफल हुआ: विशेषज्ञ की राय

जब ड्रिलिंग उपकरण को चुनौतियों का सामना करना पड़ा तो अंतर्राष्ट्रीय सुरंग विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स ने अंतर्दृष्टि प्रदान की। उन्होंने जल्दबाजी के प्रति आगाह किया और “Auger” मशीन को अपूरणीय क्षति की घोषणा की। डिक्स ने कई समाधानों के अस्तित्व पर जोर दिया और जल्दबाजी में लिए गए निर्णयों के बजाय रणनीतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

फंसे हुए श्रमिकों ने अपना समय कैसे बिताया: साहस की एक झलक

फंसे हुए श्रमिकों ने कठिन परीक्षा के दौरान साहस दिखाया। बचाए गए श्रमिकों में से एक, चमरा ओराँव ने अपने फोन पर लूडो खेलने, प्राकृतिक पानी से स्नान करने और मुरमुरे और इलायची के बीज जैसे साधारण सुखों में आनंद खोजने के अनुभव साझा किए। श्रमिकों ने आशा बनाए रखी, मदद के लिए चुपचाप प्रार्थना की और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ खुद को कायम रखा।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित राजनीतिक नेताओं ने सहयोगात्मक प्रयासों के लिए राहत और सराहना व्यक्त की। राष्ट्रपति ने बचाव टीमों के धैर्य की सराहना की और गडकरी ने इसे एक महत्वपूर्ण बचाव अभियान बताते हुए अच्छे समन्वित प्रयासों की सराहना की।

एक उल्लेखनीय संकेत में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्तिगत रूप से बचाए गए प्रत्येक श्रमिक से फोन पर बात की, उनके साहस और लचीलेपन को भी सराहा। बदले में, श्रमिकों ने केंद्र और राज्य सरकारों के अटूट समर्थन के लिए आभार व्यक्त किया। सफल बचाव अभियान चलाने में पीएम मोदी और सरकार की भूमिका की प्रशंसा पूरे देश में गूंज उठी।

देखा जाये तो, उत्तराखंड सुरंग बचाव अभियान मानव साहस, तकनीकी अनुकूलनशीलता और समन्वित बहु-एजेंसी दृष्टिकोण की प्रभावकारिता के प्रमाण के रूप में खड़ा है। कई चुनौतियों के बावजूद ऑपरेशन की सफलता, प्रतिकूल परिस्थितियों में रणनीतिक योजना और सहयोगात्मक प्रयासों की क्षमता का उदाहरण देती है।
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