भारत और मालदीव के बीच राजनयिक विवाद सोशल मीडिया पर शुरू हुआ और दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों तक पहुंच गया। यह सब 4 जनवरी को शुरू हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लक्षद्वीप का दौरा किया और खूबसूरत द्वीप के छायाचित्र पोस्ट किए। जबकि पीएम मोदी ने अपने पोस्ट में कहीं भी मालदीव का जिक्र नहीं किया था।
इन छायाचित्रों को देख मालदीव के तीन नेताओं ने भारत और पीएम मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया। ट्रोल्स के बीच जो युद्ध था उसे कूटनीतिक स्थिति तक बढ़ा दिया गया। इसी के बाद भारत को जवाब देना पड़ा।
भारत में मालदीव के उच्चायुक्त इब्राहिम शाहीब को विदेश मंत्रालय में बुलाया गया और उन्हें पीएम मोदी के खिलाफ मालदीव के कुछ मंत्रियों की टिप्पणियों पर भारत की कड़ी चिंताओं के बारे में बताया गया। हालांकि यह वार्तालाप केवल 5 मिनट ही चली जिसमें भारत ने कड़े शब्दों में अपना रुख साफ कर दिया। जिसके बाद मोइज्जू प्रशासन ने अपने तीनों नेताओं को अनिश्चित काल के लिए निलंबित कर दिया।
वहीं, मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोझ्ज्जू ने अपने ताजा बयान में कहा है कि भारत 15 मार्च तक मालदीव में रह रहे अपने सैनिकों को वापस बुला ले। मोइज्जू ने चीन की यात्रा से वापस लौटने के बाद यह समय सीमा तय की है। हालांकि भारत ने अब तक उनकी इस मांग पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। आइये जानते हैं मालदीव में भारत के कितने सैनिक हैं और वे वहां क्या कर रहे हैं?
मालदीव में क्या कर रहे है भारतीय सैनिक
भारत का कहना है कि सैनिक मालदीव के नागरिकों को मानवीय मदद पहुंचाने के साथ राहत बचाव कार्य में मदद करते हैं। भारत ने मालदीव को दो हेलीकॉप्टर और एक ड्रॉनियर विमान भी दे रखा है। इनका इस्तेमाल मुख्य रूप से समुदी निगरानी, खोज एवं बचाव अभियान और चिकित्सा निकासी में किया जाता है।
भारत के पहले हेलीकॉप्टर और चालक दल ने मालदीव में 2010 में काम शुरू किया था। मालदीव में भारत के 77 सैनिक तैनात है। इसके अलावा भारतीय सशस्त्र बलों की 12 मेडिकल टीम भी वहां है।
मालदीव का चीन के प्रति झुकाव
मालदीव को झूठे सपने दिखाकर चीन अपने सपने को पूरा करने का जाल बिछा रहा है। हिंद महासागर पर चीन अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है। जिसके लिए ड्रैगन मालदीव को अपनी मोहर बना रहा है। चीन के प्रेम में अंधे हो चुके मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू को कोई साजिश नजर नहीं आ रही है। जिसके कारण वे चीन के चक्रव्यूह में फंसते जा रहे हैं और अपने देश की बर्बादी की शुरुआत कर रहे हैं।
मालदीव का भारत को आंख दिखाने की कोशिश करने के पीछे भी चीन ही है। शी जिनपिंग के साथ बढ़ती मोइज्जू की दोस्ती के पीछे चीन का ही फायदा है। पाकिस्तान और श्रीलंका की तरह ही मालदीव भी चीन के डेब्ट ट्रैप डिप्लोमेसी में फंसते जा रहा है। इन देशों को भी चीन ने अपना मित्र बनाया और कर्ज के जाल में फंसाया था। चीन पहले कमजोर देशों को कर्ज के जाल में फंसाता है। उसके बाद कर्ज वसूलने के नाम पर मनमानी करता है.
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन ने मालदीव के कर्ज के बारे में रिपोर्ट पेश की है। जिसके अनुसार मालदीव ने जितना कर्ज ले रखा है उसका 60 फीसदी हिस्सा चीन से लिया है। कर्ज की यह राशि 1.37 बिलियन डॉलर है। लगभग 5.21 लाख जनसंख्या वाला छोटा सा देश मालदीव चीन की डेब्ट ट्रैप डिप्लोमेसी में फंस रहा है। चीन वहां मैन्युफैक्चरिंग और इंफ्रास्क्चर सेक्टर में भी निवेश कर रहा है। आने वाले निकट समय में अगर मालदीव और चीन की दोस्ती इतनी ही घनिष्ठ रही तो मालदीव को दूसरा श्रीलंका और पाकिस्तान बनने में तनिक भी देर नहीं लगेगी।
कर्ज देकर अपने चंगुल में फंसाता है चीन
चीन हर गरीब देश को पैसे देता है, चाहे वह अफ्रीका में हो या साउथ ईस्टर्न एशिया में। चीन ने कई सालों से पाकिस्तान, किर्गिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और आसपास के कई देशों को मदद करने के बहाने बड़े-बड़े कर्ज दिए हैं या फिर उन्हें इस तरीके प्रोजेक्ट बनाकर दिए, जिसका आउटपुट उस देश को कुछ नहीं मिलता। इसके बाद यह देश चीन के कर्ज तले फंस जाते हैं और वह आगे जाकर ऐसे नेगोशिएशंस करता है, जिसके बाद कर्ज लेने वाले देश को अपना कुछ हिस्सा उसे देना पड़ता है।
श्रीलंका ने हंबनटोटा और पाकिस्तान ने ग्वादर बंदरगाह चीन के कर्ज नहीं चुका पाने के कारण उसको लीज पर दे दिया है. मालदीव भी एक ऐसा देश है, जो करीब 1.5 बिलियन डॉलर के चीनी कर्ज में डूब चुका है।
विश्लेषकों का मानना है कि घरेलू समस्याओं से मतदाताओं का ध्यान भटकाने के लिए मालदीव के राजनीतिक दल इंडिया आउट नामक कैंपिंग चलकर राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसे में मालदीव की आंतरिक राजनीति भारत के साथ उसके अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित कर रही है, लेकिन इसके बाद भी मालदीव में भारत की भूमिका को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है।
भारत और चीन के लिए क्यों महत्वपूर्ण है मालदीव
भारत और चीन दोनों के लिए मालदीव भी रणनीतिक रूप से काफी अहम है और इसी कारण दोनों ही देश इसपर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं। हिंद महासागर में मालदीव की लोकेशन उसे अहमियत प्रदान करती है, क्योंकि मालदीव हिंद महासागर में स्थित एक टोलगेट की तरह काम करता है। इस द्वीप श्रृंखला के दक्षिणी और उत्तरी हिस्स में संचार के दो महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग स्थित है।
यह पश्चिमी एशिया में अदन की खाड़ी एवं दक्षिण पूर्व एशिया में मल्लिका जलडमरू के बीच समुद्री व्यापार के लिए प्रमुख है। इसके साथ ही खाड़ी देशों से जो भी तेल आता है, वह यहीं से होकर गुजरता है। ऐसे में चीन तेजी से बढ़ते हुए मालदीव में अपनी पहुंच बढ़ाने के प्रयास कर रहा है।
भारत के लिए मालदीव भी अहम है, क्योंकि ये लक्षद्वीप से मात्र 700 किलोमीटर दूर है और भारत के मुख्य भूभाग से मात्र 1200 किलोमीटर की दूरी पर है। भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी और सागर सुरक्षा सहायता के तहत भी मालदीव जरूरी हो जाता है। मालदीव लंबे समय तक भारत के प्रभाव में रहा है।
मालदीव में मौजूदगी से भारत को हिंद महासागर के एक प्रमुख हिस्से पर नजर रखने की क्षमता मिल जाती है। यहां पर जब भी कोई राष्ट्रपति चुना जाता था तो वह सबसे पहले भारत आता था, लेकिन इस बार राष्ट्रपति चुने गए मोहम्मद मोइज्जू ने सबसे पहले तुर्की की यात्री की और अब हाल ही में वह चीन का दौरा कर के आएं हैं। इससे यह साफ हो जाता है कि मालदीव और भारत के रिश्ते मोइज्जू की लीडरशिप में खराब होते जा रहे हैं।
पिछले कुछ सालों में मालदीव ने भारत से बनाई दूरी
भारत पिछले कुछ सालों से मालदीव से दूर होता आ रहा है, इसकी वजह यह रही कि पूर्व की अब्दुल्ला यामीन की सरकार को चीन ज्यादा रास आया और उन्होंने भारत के साथ बेरुखी दिखाई। मालदीव में चीन की दिलचस्पी हाल के वर्षों में काफी बढ़ी है और इससे भारत का असहज होना लाजिमी है। वैश्विक संबंधों में या आम राय बन रही है कि जहां-जहां चीन होगा, वहां-वहां भारत मजबूत नहीं रह सकता है।
मालदीव से लक्षद्वीप की दूरी महज 1200 किलोमीटर है, ऐसे में भारत यह नहीं चाहता है कि चीन पड़ोसी देशों के जरिए उसके और करीब पहुंचे। एक रिपोर्ट के अनुसार, इस छोटे से देश पर चीन का करीब 1.5 बिलियन डॉलर का कर्ज है। यह कर्ज उसकी जीडीपी के एक तिहाई से भी ज्यादा है।
पूर्व राष्ट्रपति नशीद ने यामीन सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था कि चीन ने मालदीव के करीब 16 छोटे द्वीप लीज पर ले रखे हैं और वहां पर वह निर्माण कार्य कर रहा है। नशीद ने यामीन सरकार पर भ्रष्टाचार का भी आरोप लगाया था। यह कयास लगाए जा रहे थे कि चीनी निर्माण कार्यों के कारण मालदीव के चीनी कर्ज के जाल में फंसने की आशंका है. हालांकि चीनी विदेश मंत्रालय ने नशीद के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा था कि मालदीव में वह कोई राजनीति नहीं कर रहा है।