चुनाव से पहले ही लड़खड़ाया इंडिया गठबंधन, मामता ने बोला बाय-बाय

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने एकला चलो का नारा दे दिया है। ममता बनर्जी ने ऐलान कर दिया है कि टीएमसी लोकसभा चुनाव में अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेगी।

ममता बनर्जी, इंडिया गठबंधन, भाजपा, कांग्रेस

लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी इंडिया गठबंधन को पश्चिम बंगाल में जोर का झटका लगा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने एकला चलो का नारा दे दिया है। ममता बनर्जी ने ऐलान कर दिया है कि टीएमसी लोकसभा चुनाव में अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेगी। ममता के इस ऐलान के साथ ही विपक्षी इंडिया गठबंधन की तस्वीर और भविष्य पर संकट के बादल गहरे हो गए हैं। 

तृणमूल और कांग्रेस के बीच दरार तब और बढ़ गई जब बनर्जी ने दावा किया कि उन्हें राहुल गांधी की न्याय यात्रा के बंगाल से गुजरने के बारे में सूचित नहीं किया गया था। इंडिया गठबंधन पार्टियों को आमंत्रित करने के कांग्रेस के दावों के विपरीत, बनर्जी ने जोर देकर कहा, “उन्होंने मुझे सूचित करने की भी जहमत नहीं उठाई, भले ही मैं इंडिया गठबंधन का हिस्सा हूं। जहां तक बंगाल की बात है तो मेरा उनसे कोई संबंध नहीं है.”

बनर्जी ने खुलासा किया, ”मैंने कई प्रस्ताव दिये, लेकिन उन्होंने शुरू से ही उन्हें खारिज कर दिया. तभी से हमने बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है.” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि टीएमसी भाजपा को हराने की अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर अपनी रणनीति तय करेगी।

ममता बनर्जी ने दो टूक कहा कि हमने पहले ही कह रखा है कि कांग्रेस 300 सीटों पर चुनाव लड़े और क्षेत्रीय दलों को अपने क्षेत्र में बीजेपी से मुकाबला करने दिया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि क्षेत्रीय दल एक साथ रहेंगे लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि अगर वह हस्तक्षेप करेंगे तो हमें फिर से विचार करना होगा।

तृणमूल और कांग्रेस के बीच कलह तब और गहरा गई जब कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने ममता बनर्जी पर जुबानी हमले शुरू कर दिए। चौधरी ने जोर देकर कहा कि ममता बनर्जी 2011 में कांग्रेस की दया से सत्ता में आई और घोषणा की कि इस बार चुनाव उनकी दया पर नहीं लड़ा जाएगा।

वहीं, असम में अपनी न्याय यात्रा के दौरान डैमेज कंट्रोल की कोशिश कर रहे राहुल गांधी ने बनर्जी के साथ अपने सकारात्मक रिश्ते पर जोर दिया। राहुल ने कहा कि “सीट-बंटवारे पर बातचीत चल रही है। ममता बनर्जी मेरी और हमारी पार्टी की बहुत करीबी हैं।’ ऐसी टिप्पणियाँ मायने नहीं रखेंगी; ये ऐसी चीजें नहीं हैं जो चीजों को बाधित करेंगी।

दोनों पार्टियों के बीच सीट बंटवारे पर असहमति तब स्पष्ट हो गई जब यह खबर आई कि तृणमूल कांग्रेस बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को अधिकतम तीन सीटें देने को तैयार है। 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने दो सीटें जीती थी, जबकि टीएमसी ने 22 सीटें हासिल की थीं। बनर्जी के अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा से ऐसा लगता है कि बंगाल में कांग्रेस के लिए दरवाजे मजबूती से बंद हो गए हैं।

और पढ़े:- राम मंदिर के बाद अब ज्ञानवापी की बारी, पक्षकारों को दी जाएगी ASI सर्वे की रिपोर्ट 

इंडिया गठबंधन, जिसका लक्ष्य भाजपा के खिलाफ एकजुट मोर्चा पेश कर आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने का था, अब यह गठबंदन महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है। बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने का ममता बनर्जी का निर्णय गठबंधन के भीतर गठबंधन बनाना दर्शाता है। भाजपा के खिलाफ एकजुट मोर्चा पेश करने की गठबंधन की क्षमता अब सवालों के घेरे में आ गई है, जिससे उनकी चुनावी संभावनाओं को संभावित झटका लग सकता है।

बंगाल में भाजपा लगातार टीएमसी पर हमलावर है। भाजपा नेता लगातार टीएमसी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव 2024 में टीएमसी का बहुत कुछ दांव पर लगा है। राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से सबसे ज्यादा 23 टीएमसी के पास हैं। इसके बाद भाजपा का नंबर आता है। इस समय भाजपा के पास बंगाल से लोकसभा में 17 सांसद हैं, जबकि कांग्रेस के पास दो सीटें हैं।

राज्य में टीएमसी के एक नेता कहते हैं कि बंगाल में भाजपा के विरुद्ध टीएमसी के जीतने के ज्यादा चांस हैं। कांग्रेस के लिए सीट छोड़ने का मतलब भाजपा को फेवर करना है। दूसरी बात यह कि अगर नेशनल लेवल पर कांग्रेस फेल होती है और भाजपा जीतती है तो जरूरी है कि टीएमसी अच्छे नंबर के साथ लोकसभा में जाए ताकि वे मजबूत विपक्ष की भूमिका निभा सके।

अन्य सहयोगियों ने कांग्रेस पर खड़े किए सवाल

समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस को जमीनी हकीकत को समझना होगा। वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने सपा गठबंधन में 114 सीट पर चुनाव लड़ा था, पर वह सिर्फ 7 सीट जीत पाई थी। इसी तरह 2014 लोकसभा चुनाव में 2 और 2019 में सिर्फ 1 सीट मिली थी। ऐसे में कांग्रेस को अपनी स्थिति को समझते हुए ही सीटों पर दावेदारी करनी चाहिए। सपा रालोद के साथ सीट बंटवारा कर चुकी है और दूसरी छोटी पार्टियों के साथ भी चर्चा जारी है।

इसी तरह बिहार में सीट बंटवारे पर राजद और जदयू की ताकत बढ़ गई है। झारखंड में जेएमएम इस बार कांग्रेस को 2019 की तर्ज पर सीट देने के लिए तैयार नहीं है। तमिलनाडु में डीएमके के साथ सीट बंटवारे को लेकर बयानबाजी चल रही है। ऐसे में कांग्रेस पर दवाब बढ़ गया है। पार्टी के एक नेता ने कहा कि अब कांग्रेस को गठबंधन बरकरार रखने की बात माननी होगी, वर्ना गठबंधन टूटने के लिए उसे जिम्मेदार माना जाएगा।

जैसा कि बनर्जी की घोषणा के साथ बंगाल में राजनीतिक परिदृश्य एक भूकंपीय बदलाव से गुजर रहा है, इंडिया गुट को अपनी रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करने और क्षेत्रीय गतिशीलता की जटिलताओं से निपटने की आवश्यकता होगी। 

सामने आ रहे घटनाक्रम राजनीतिक गठबंधनों की जटिल प्रकृति और उस नाजुक संतुलन को रेखांकित करते हैं जिसे पार्टियों को चुनावी सफलता हासिल करने के लिए बनाए रखना चाहिए। आने वाले दिनों में चुनावों से पहले व्यापक राजनीतिक परिदृश्य पर इस निर्णय के प्रभाव का पता चलेगा।

Exit mobile version