भाजपा के वयोवृद्ध नेता और राम मंदिर आंदोलन के जनक लालकृष्ण आडवाणी को 96 साल की उम्र में देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी दी।
लालकृष्ण आडवाणी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और भाजपा के संस्थापक सदस्य नाना जी देशमुख के बाद ये सम्मान पाने वाले भाजपा और RSS से जुड़े तीसरे नेता हैं।
प्रारंभिक जीवन
लालकृष्ण आडवाणी का जन्म पाकिस्तान के कराची में आठ नवंबर, 1927 को हुआ था। अपनी आरंभिक शिक्षा उन्होंने कराची के सेंट पैट्रिक हाई स्कूल से ग्रहण की, आगे हैदराबाद, सिंध के डीजी नेशनल स्कूल में अध्ययन जारी रखा। इसी बीच देशभक्तिपूर्ण आदर्शों ने उन्हें 14 साल की उम्र में राष्ट्रिच स्वयंसेवक संघ में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
हालांकि, भारत विभाजन की विभीषिका के बीच हिन्दुओं पर आए भारी जीवन संकट में उनके परिवार को पाकिस्तान छोड़कर 1946 में भारत आना पड़ा था। तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी ने पाकिस्तान में रह रहे स्वयंसेवकों से कहा था कि वे भारत के उस हिस्से में आ जाएं जहां बहुसंख्यक हिन्दू रहते हैं, वहां भविष्य में कुछ भी घट सकता है। इसके बाद उनका परिवार मुंबई आकर बस गया।
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राजनीतिक सफर
1947 में विभाजन के बाद आडवाणी दिल्ली चले आए और राजस्थान में आरएसएस के प्रचारक बन गए। 1947 से 1951 तक उन्होंने शाखा में आरएसएस सचिव के रूप में अलवर, भरतपुर, कोटा, बूंदी और झालावाड़ में कार्य किए। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा जनसंघ के गठन के बाद 1951 में इस पार्टी से जुड़े। उन्हें राजस्थान में पार्टी की इकाई का सचिव नियुक्त किया गया। वह 1970 में राज्यसभा के सदस्य बने और 1989 तक इस सीट पर रहे। दिसंबर 1972 में वह भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष चुने गए।
इस के बाद आडवाणी ने अटल बिहारी वाजपेयी के साथ 1980 में भाजपा की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आडवाणी भाजपा की जुझारू हिंदुत्व विचारधारा के चेहरे के रूप में उभरे। उन्होंने 1980 के दशक में वाजपेयी के साथ पार्टी के उत्थान की योजना बनाई और भाजपा को 1984 में दो संसदीय सीटों से 1992 में 121 सीटों और 1996 में 161 सीटों तक पहुंचा दिया था। 1996 के चुनावों के दौरान भारतीय लोकतंत्र में एक ऐतिहासिक मोड़ तब आया जब भाजपा लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई।
लालकृष्ण आडवाणी को 1975 में पूर्व प्रधानमंत्री मरोरजी देसाई की सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री नियुक्त किया गया था। उन्होने 1998 और 1999 में भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में केंद्रिय गृह मंत्री और 2002 में उप प्रधानमंत्री के रूप में भी कार्य किया।
अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी का दोस्ती
कहा जाता है राजनीति में दोस्ती लम्बे समय तक नहीं चल पाती। कई बार राजनैतिक मतभेद होते-होते आपसी मनभेद हो जाता है, लेकिन इस मामले में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की दोस्ती की कहानी एकदम उलट है। दोनों की दोस्ती साझा राजनीतिक विचारधाराओं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के आदर्शों के प्रति साझा प्रतिबद्धता के कारण हुई थी।
इसी के साथ राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान दोनों का तालमेल और भी अधिक स्पष्ट हो गया। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए समर्थन जुटाने में आडवाणी के नेतृत्व को वाजपेयी की राजनीतिक कौशल का पूरक बनाया गया था। साथ में, उन्होंने आंदोलन की जटिलताओं को सुलझाया और इस प्रक्रिया में भारतीय जनता पार्टी को एक प्रमुख राजनीतिक ताकत के रूप में मजबूत किया।
दोनों को इसका फायदा 1998 में मिला जब प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी और उपप्रधानमंत्री के रूप में आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने केंद्र में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई। 65 सालों तक यह दोस्ती अटूट रही। हमेशा दोनों एक दूसरे का साथ देते रहे। अगस्त 2018 में अटल बिहारी वाजपेयी का स्वर्गवास हो गया और यह जोड़ी टूट गयी। लेकिन जनता के दिल में इस जोड़ी की जगह बरकरार है।
1984 में बीजेपी को मिली 2 सीट पर जीत
आडवाणी बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। गठन के बाद पार्टी को एक बड़े मुद्दे की तलाश थी। 1984 में जब विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस ने राम मंदिर के मुद्दे को छेड़ा तो बीजेपी ने भी इसमें रुचि लेना शुरू कर दिया। हालांकि, 1984 में हुए आम चुनाव में पार्टी कोई कमाल नहीं कर सकी थी और महज 2 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी।
आडवाणी ने लोगों तक पहुंचाया राम मंदिर का मुद्दा
इसके बाद पार्टी ने जोर-शोर से राम मंदिर के मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया। 1989 में हुए लोकसभा में बीजेपी को इसका फायदा भी हुआ और पार्टी ने 11.36 फीसदी वोट हासिल किए। 1981 में 2 सीट जीतने वाली पार्टी इस बार 85 सीटें जीतने में कामयाब रही थी और लेफ्ट और जनता दल की सरकार बनी। इसके बाद आडवाणी ने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली और इस तरह यह मुद्दा लोगों तक पहुंचा।
राम जन्मभूमि आंदोलन
लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राम जन्मभूमि आंदोलन 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण प्रकरण के रूप में सामने आया। इस दौरान बड़े पैमाने पर आयोध्या में भागवान राम के मंदिर को लेकर आंदोलन होने लगे जिसमें आडवाणी ने अहम भूमिका निभाई थी।
1990, सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा
1990 में, आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली। इसका मकसद राम मंदिर आंदोलन के लिए समर्थन जुटाना था. विवाद और हिंसा का सामना करने के बावजूद, रथ यात्रा ने भाजपा की प्रतिष्ठा को काफी हद तक बढ़ा दिया और अयोध्या मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर सामने ला दिया।
बीजेपी ने 80+ सीटें जीतीं
हिंदुत्व के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की आडवाणी की रणनीति 1991 के लोकसभा चुनावों में फलदायी साबित हुई। भाजपा ने 80 सीटें जीतीं। इस चुनावी सफलता को आडवाणी के दृष्टिकोण की पुष्टि के रूप में देखा गया।
बाबरी विध्वंस
6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था। राम मंदिर आंदोलन के लिए समर्थन जुटा रहे आडवाणी को व्यापक रूप से विध्वंस के लिए जिम्मेदार और प्रमुख व्यक्तियों में से एक माना जाता था। इस घटना के दूरगामी परिणाम हुए जैसे इस घटना के बाद के राज्य चुनावों में भाजपा की जीत और पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार अटल बिहारी सरकार का गठन हुआ।
1992 में विवादास्पद बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद, भारतीय जनता पार्टी को चुनौतियों और जीत दोनों का सामना करना पड़ा। विवादास्पद घटना के बावजूद, भाजपा को 1990 के दशक के बाद के राज्य चुनावों में समर्थन मिलता रहा। पार्टी को 1998 में केंद्र में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के गठन के रूप में देखा गया। अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री की भूमिका निभाई, जबकि लाल कृष्ण आडवाणी उप प्रधान मंत्री के रूप में कार्यरत थे। यह ऐतिहासिक क्षण पारंपरिक राजनीतिक परिदृश्य से एक महत्वपूर्ण प्रस्थान का प्रतीक था।
उपप्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल
उपप्रधानमंत्री के रूप में लाल कृष्ण आडवाणी का कार्यकाल भारतीय शासन में एक महत्वपूर्ण चरण था। 2002 से 2004 तक सेवा करते हुए, आडवाणी ने प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में नीतियों और कार्यक्रमों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका प्रभाव औपचारिक कर्तव्यों से परे भी बढ़ा और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शासन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आडवाणी के कार्यकाल में कूटनीतिक पहल, आर्थिक सुधार और राष्ट्रीय सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया। उनके रणनीतिक कौशल और राजनीतिक अनुभव ने उस अवधि के दौरान भारत सरकार में सबसे शक्तिशाली शख्सियतों में से एक के रूप में उनकी स्थिति को मजबूत किया, जिससे देश की नीतियों और राजनीतिक परिदृश्य पर एक अमिट प्रभाव पड़ा।
प्राण प्रतिष्ठा में नहीं हुए शामिल
राम मंदिर आंदोलन के जनक लाल कृष्ण आडवाणी 22 जनवरी को आयोध्या में राम मंदिर प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए थे। उनके इस फैसल ने कई लोगों को अचंभे में डाल दिया था। उनके प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम न आने के कारण के पीछे उनकी सेहत और बढ़ती ठंड को बताया गया था।
आडवाणी को भारत रत्न
लाल कृष्ण आडवाणी को भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने की जानकारी उनके शिष्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी। पीएम मोदी ने पहले सोशल मीडिया पर और फिर उसके बाद ओडिशा की रैली में इसका जिक्र किया। 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा और अब राम रथ के सारथी को भारत रत्न देने का फैसला। पीएम मोदी ने राम मंदिर के उद्घाटन को संपूर्ण कर दिया। भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष और पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने का ऐलान केवल सम्मान नहीं, बल्कि एक शिष्य का अपने गुरु के प्रति समर्पण भी है। या कहें, गुरुदक्षिणा भी।
आलोचक उन्हें विभाजनकारी कहते हैं
आडवणी की हिंदुत्व विचारधारा और 1990 की रथ यात्रा जैसी घटनाओं को कई लोग सांप्रदायिक तनाव और धार्मिक ध्रुवीकरण में योगदान के रूप में देखते हैं और कई लोग उन्हें भारत पर बुरा प्रभाव डालने वाला बताते हैं। लाल कृष्ण आडवाणी इन आलोचनाओं का सामना करने के बावजूद भारत की राजनीति में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में खड़े हैं।
हिंदू एकता के वास्तुकार: हालांकि कुछ लोगों द्वारा इसे लोल कृषण आडवाणी को विभाजनकारी करार दिया गया है, लेकिन हिंदू एकता को राजनीतिक वास्तविकता बनाने में उनकी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने प्रभावी ढंग से हिंदू समाज के एक महत्वपूर्ण हिस्से को संगठित किया, राजनीतिक परिदृश्य में योगदान दिया और पहले से खंडित समुदाय को सशक्त बनाया है।
राजनीतिक रणनीतिकार: वहीं, आडवाणी ने कांग्रेस पार्टी के राजनीतिक पतन की शुरुआत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय जनता पार्टी में उनके रणनीतिक नेतृत्व ने कांग्रेस के आधिपत्य को चुनौती दी, जिससे भारतीय राजनीति में एक नए युग का मार्ग प्रशस्त हुआ जिसे बाद में प्रधानमंत्री मोदी ने भुनाया।
राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रवर्तक: आडवाणी द्वारा राम जन्मभूमि आंदोलन की शुरुआत ने राष्ट्रीय भावनाओं को जागृत करते हुए एक ऐतिहासिक अध्याय जोड़ा। विवादास्पद होते हुए भी, इस आंदोलन ने राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया।
भाजपा की बढ़त में अभिन्न भूमिका: उनके नेतृत्व ने भाजपा की बढ़त में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और राज्य चुनावों में बाद की जीत ने पार्टी की बढ़ती स्वीकार्यता को और बढ़ा दिया। आडवाणी की रणनीतिक दृष्टि ने भाजपा को एक प्रमुख राजनीतिक ताकत में बदलने की नींव रखी, एक ऐसी विरासत जो भारतीय राजनीति को आकार देती रही है।
भारत रत्न सम्मान के योग्य
लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न मिलना भारतीय राजनीति पर उनके गहरे प्रभाव को मान्यता देने लायक है। हिंदू एकता के प्रमुख वास्तुकार और राम जन्मभूमि आंदोलन के आरंभकर्ता के रूप में, आडवाणी ने देश की कहानी को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी रणनीतिक कुशलता, भाजपा के उत्थान में उनकी भूमिका और कांग्रेस के प्रभुत्व को चुनौती देने में योगदान भारत के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है।
भारत रत्न न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धियों को स्वीकार करता है, बल्कि उनके द्वारा चलाए गए परिवर्तनकारी आंदोलनों को भी स्वीकार करता है, जिन्होंने राष्ट्र के सांस्कृतिक और राजनीतिक पुनरुत्थान में योगदान दिया।
भारतीय राजनीति के इतिहास में लाल कृष्ण आडवाणी की यात्रा एक परिवर्तनकारी यात्रा के रूप में उभरती है, जो देश के इतिहास के ताने-बाने में जटिल रूप से बुनी गई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ उनके शुरुआती जुड़ाव से लेकर भारतीय जनता पार्टी के गठन और उत्थान में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका तक, आडवाणी की विरासत लचीलेपन और रणनीतिक प्रतिभा का प्रतीक है।
अटल बिहारी वाजपेयी के साथ साझा किया गया सौहार्द और राम जन्मभूमि आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका उनके स्थायी प्रभाव के प्रमाण के रूप में खड़ी है। राम मंदिर का उद्घाटन, एक बड़ी उपलब्धि और उन्हें दिया गया भारत रत्न एक ऐसे राजनेता की पहचान की पुष्टि करता है जिसके योगदान ने भारत के सांस्कृतिक और राजनीतिक पुनरुत्थान को आकार दिया। भारतीय राजनीति की सूक्ष्म छवि में, लाल कृष्ण आडवाणी का महत्व कायम है।