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BJP ने राज्यसभा का गणित बदला, बहुमत से NDA अब 4 सीट ही दूर

लोकसभा चुनाव से पहले राज्यसभा चुनाव की अग्निपरीक्षा में भाजपा ने इंडी गठबंधन को बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया है।

Akash Gaur द्वारा Akash Gaur
28 February 2024
in चर्चित, राजनीति
राज्यसभा चुनाव, भाजपा, कांग्रेस
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लोकसभा चुनाव से पहले राज्यसभा चुनाव की अग्निपरीक्षा में भाजपा ने इंडी गठबंधन को बड़ा राजनीतिक झटका दे दिया है। अप्रैल में खाली होने वाली 56 राज्यसभा सीटों में से बीजेपी ने 30 सीटों पर जीत हासिल की है। इनमें से 20 निर्विरोध चुने गए। वहीं वोटिंग से 10 सीटों पर जीत हासिल हुई। इसके साथ राज्यसभा में भाजपा के सांसदों की संख्या 97 हो गई है।

वहीं, बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए के सांसदों की संख्या 117 हो गई है, जो बहुमत के आंकड़े 121 से केवल चार कम है। दलगत स्थिति की बात करें तो, बीजपी 97 सांसदों के साथ राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है। इनमें से पांच नॉमिनेटह सदस्य शामिल है। 29 सांसदों के साथ कांग्रेस दूसरे नंबर पर है। 

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इन राज्यों में हुए चुनाव, बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी

राज्यसभा की जिन 56 सीटों के लिए चुनाव हुए, उनमें से उत्तर प्रदेश से 10 सीटें, महाराष्ट्र और बिहार से 6-6 सीटें, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश से 5-5 सीटें, गुजरात और कर्नाटक से 4-4 सीटें और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और ओडिशा से तीन-तीन सीटें और 1-1 सीट उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश से थी। इसमें उत्तर प्रदेश की 10 में से 8 सीटों पर बीजेपी, 2 सीटों पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को जीत मिली।

महाराष्ट्र में बीजेपी को तीन, कॉन्ग्रेस को एक, एनसीपी (अजीत पवार गुट) को एक और शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) को एक सीट पर जीत मिली। बिहार की 6 सीटों में से बीजेपी के 2 सांसद, जेडीयू के एक सांसद, कॉन्ग्रेस के एक सांसद और आरजेडी के 2 सांसद जीते। पश्चिम बंगाल में 4 पर टीएमसी तो एक पर बीजेपी को जीत मिली। मध्य प्रदेश में बीजेपी को 4 तो कॉन्ग्रेस को एक सीट पर जीत मिली। गुजरात में बीजेपी ने चारों सीटें जीती, तो कर्नाटक में बीजेपी को एक और कॉन्ग्रेस को तीन सीटों पर जीत मिली।

आंध्र प्रदेश में तीनों सीटें वाईएसआरसीपी को मिली, तो तेलंगाना में कॉन्ग्रेस को दो और एक सीट बीआरएस को मिली। राजस्थान में कॉन्ग्रेस को एक सीट तो बीजेपी को 2 सीटों पर निर्विरोध जीत मिली। ओडिशा से बीजेपी को 1 तो बीजेडी को 2 सीटें मिली। उत्तराखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ से बीजेपी को सभी एक-एक सीट पर जीत मिली।

और पढ़ें:- हिमाचल में खेला होबे? लोक निर्माण मंत्री के पद से विक्रमादित्य सिंह ने दिया इस्तीफा।

ये है राज्यसभा में पार्टियों के हिसाब से सीटों का गणित

राज्यसभा में किसी भी हाल में अधिकतम सदस्यों की संख्या 250 की होती है, लेकिन अभी के हिसाब से ये संख्या 245 है। इसमें 233 का चुनाव राज्य की विधानसभाओं के जरिए होती है, तो 12 को राष्ट्रपति नामांकित करते हैं। हालांकि इस समय 5 सीटें खाली हैं, जिसमें चार सीटें जम्मू-कश्मीर की हैं, तो एक नामांकन वाली सीट भी खाली है। 

इस तरह से सदन में अभी कुल संख्या 240 सांसदों की हो गई है, जिसमें बहुमत के लिए 121 सीटों की जरूरत है। नामांकित 12 सदस्यों में से अभी 11 सदस्य ही हैं, जिसमें से 5 बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। इन नामांकित सदस्यों की संख्या मिलाकर कुल 97 सांसद बीजेपी के पास हैं।

एनडीए की बात करें तो अभी कुल 117 सांसद एनडीए के खेमे में हैं। जिसमें 97 सांसद बीजेपी के हैं, तो जेडीयू के 5, दो निर्दलीय और जेडीएस, एनसीपी(अजित पवार), आरएलडी, पीएमके, एजीपी, एमएनएफ, टीएमसी (एम), एनपीपी, आरपीआई (ए), यूपीपीएल के एक-एक सांसद हैं। कॉन्ग्रेस और उसके गठबंधन की बात करें तो इस खेमे में 92 सांसद हैं। विपक्षी गठबंधन में सबसे ज्यादा 29 सांसद कॉन्ग्रेस के, टीएमसी के 13 सांसद, डीएमके और आप के 10-10 सांसद हैं। आरजेडी के 6 सांसद, सीपीएम के 5 सांसद हैं।

राज्य सभा के 240 सांसदों में 30 सांसद किसी भी खेमे में नहीं हैं। ये 30 सांसद सबसे ज्यादा वाईएसआरसीपी और बीजेडी के 9-9, बीआरएस के 7, एआईएडीएमके के तीन, टीडीपी के एक और बीएसपी के 1 सांसद हैं। इनमें से बीजेडी-वाईएसआरसीपी के सांसद मुद्दों पर अधिकतर समय सरकार के साथ दिखते हैं। यही वजह है कि राज्यसभा में बहुमत से चार सीटों के कम आँकड़ों के बावजूद सरकार का कोई काम नहीं रुकता है।

राज्यसभा में चुनाव का गणित क्या है?

भारत के संसद में दो सदनों की व्यवस्था है। एक लोकसभा और दूसरा राज्यसभा। लोकसभा में सांसद जनता द्वारा सीधे तौर पर चुने जाते हैं। इसे आम सदन भी कहा जाता है। वहीं, राज्य सभा को उच्च सदन कहते हैं। इनमें चुने जाने के लिए निश्चित योग्यता की जरूरत होती है। हालांकि राज्यसभा के लिए चुनाव अपरोक्ष तरीके से होता है। इसका मतलब है कि इस सदन के लिए जनता नहीं, बल्कि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही वोट डालते हैं। 

ये प्रतिनिधि राज्यों की विधानसभा से होते हैं। ध्यान रहे, विधानसभा, न कि विधानपरिषद। चूंकि विधानपरिषद के लिए भी लोग सीधे जनता द्वारा नहीं चुने जाते हैं, ऐसे में राज्यसभा के लिए सिर्फ जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही वोट डालते हैं। हर राज्य में राज्यसभा सीट के लिए वोटिंग का फॉर्मूला भी अलग होता है।

इसे इस बात से समझें कि राज्य की राज्यसभा की खाली सीटों में एक जोड़कर उससे कुल विधानसभा सीटों में भाग दिया जाता है और फिर उसमें एक जोड़ दिया जाता है। विधायकों को एक पर्जी पर अपनी पसंद के हिसाब से वरीयता बतानी होती है। हर विधायक का वोट एक बार ही गिना जाता है। प्राथमिकता के आधार पर विधायक को बताना होता है कि उसकी पहली पसंद कौन है, दूसरी कौन। पहली पसंद के वोट जिसे ज्यादा मिलेंगे, वही जीत जाएगा।

उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश को सामने रखते हैं। यहाँ 10 सीटों पर चुनाव हुए। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में 403 सीटें होती हैं। ऐसे में सभी सदस्यों के वोट की कुल ताकत 100 के बराबर होती है। इस तरह से उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के लिए कुल 403X100=40,300 वोट हुए। अब इसे 10 सीटों+1=11 से भाग देंगे, तो संख्या आती है 3663। 

यानी उत्तर प्रदेश में हर सीट के लिए 36+ वोट यानी 37 वोटों की जरूरत पड़ती है। ये 37 वोट 37 विधायकों के हुए। इस तरह से अगर प्रथम वरीयता के वोटों से ही जीत मिल जाती है, तो 37-37 विधायकों के हिसाब से बीजेपी को 7 सीटें सीधे तौर पर मिल गईं। आठवीं सीट के लिए सपा के बागी विधायकों, बीएसपी विधायक, राजा भैया के विधायकों ने वोट बीजेपी के पक्ष में किया और बीजेपी को 10 में से 8 सीटों पर जीत मिल गई।

और पढ़ें:- ग्लोबल नॉर्थ-साउथ को अब अपने हिसाब से चला रहा भारत। 

Tags: BJPCongressRajya Sabha electionsकांग्रेसभाजपाराज्यसभा चुनाव
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सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ किया है कि राष्ट्रपति या गवर्नर को किसी भी तय न्यायिक समयसीमा के भीतर बिलों पर मंजूरी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
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20 November 2025

20 नवंबर को एक ऐतिहासिक जवाब देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ किया है कि राष्ट्रपति या गवर्नर को किसी भी तय न्यायिक समयसीमा के...

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