पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से 75 किलोमीटर की दूरी पर आने वाले 24 उत्तरी परगना जिले का संदेशखाली सियासत का गढ़ बन गया। इलाके में टीएमसी नेताओं द्वारा 2011 से यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद सियासत गरमा गई है।
इस मामले को लेकर NCSC (राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग) ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की है तो वहीं बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं को संदेशखाली जाने से रोके जाने पर दिल्ली तक सियासत गर्म है। संदेशखाली पर जारी सियासत की बीच नए आरोप सामने आए हैं। इसमें कहा जा रहा है कि संदेशखाली में टीएमसी का दफ्तर ही शोषण का केंद्र था। आखिर संदेशखाली में क्या है विवाद और क्यों यहां के लोग ममता बनर्जी से हैं नाराज?
बड़ी संख्या में संदेशखाली की महिलाएं पिछले कुछ दिनों से ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। इस बीच प्रदर्शनकारी महिलाओं और पुलिस के बीच झड़प की खबर भी आई। महिलाओं का आरोप है कि ममता की पार्टी टीएमसी के नेता शेख शाहजहां ने उनका यौन उत्पीड़न किया और फिर जबरन जमीनों पर कब्जा कर लिया।
महिलाओं की मांग है कि टीएमसी नेता शाहजहां शेख और उसके गुर्गों को गिरफ्तार किया जाए। महिलाओं ने पुलिस पर आरोपियों से सांठ-गांठ करने का आरोप भी लगाया है। पीड़ित महिलाओं के समर्थन में बीजेपी नेता भी सड़क पर उतर आए हैं। संदेशखाली का मुद्दा राजनीतिक रंग रूप ले चुका है।
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अब पहले जानिए कैसे शुरू हुआ संदेशखाली में विवाद
बात है 5 जनवरी 2024 की, जब प्रवर्तन निदेशालय की टीम राशन घोटाला मामले में जांच करने टीएमसी नेता शाहजहां शेख के संदेशखाली वाले आवास पर छापेमारी करने पहुंची थी। वहां ईडी की टीम पर हमला किया गया और उन्हें वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया था। हमले में कुछ अधिकारियों को चोट भी आई थी।
ED की टीम पर पत्थरबाजी का आरोप तृणमूल कांग्रेस के नेता शाहजहां शेख के समर्थकों पर लगा था। उस दिन के बाद से शाहजहां शेख फरार है। इस घटना के एक महीने बाद 8 फरवरी से संदेशखाली की स्थानीय महिलाओं ने शाहजहां शेख और उनके समर्थकों के खिलाफ सड़क पर उतरकर प्रदर्शन शुरू कर दिया। तब से लगातार हर दिन प्रदर्शन हो रहे हैं।
ये विवाद तब बढ़ गया जब 9 फरवरी को प्रदर्शनकारी महिलाओं ने शाहजहां शेख के समर्थक हाजरा के स्वामित्व वाले तीन पोल्ट्री फार्म में आग लगा दी। महिलाओं ने आरोप लगाया कि ये फार्म ग्रामीणों से जबरदस्ती छीनी गई जमीन पर बनाए गए थे।
कठघरे में टीएमसी का दफ्तर
मिडिया रिपोर्ट में कुछ महिलाओं ने बताया कि उन्हें पार्टी के दफ्तर में बुलाया जाता था। नहीं जाने पर उनके परिवार के पुरुषों को धमकी दी जाती है। इस मामले में महिलाओं ने संदेशखाली के मास्टमाइंड कहे जा रहे टीएमसी नेता शाहजहां शेख के अलावा शिबू हजारा और उत्तम सरकार के नाम लिए हैं।
ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आए ये आरोप टीएमसी को परेशान करने वाले हैं। ममता बनर्जी भले ही संदेशखाली को RSS का बंकर बताकर मामले को दबाने की कोशिश कर रही हैं लेकिन कैमरे पर बोल रही महिलाएं अब गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं।
मीडिया से बातचीत में महिला ने न सिर्फ चेहरे को ढक लिया बल्कि कपड़े भी छिपा लिए। महिलाओं के इस डर पर सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर ऐसा क्या है जिसे राज्य सरकार छिपाना चाहती है?
ग्राउंड रिपोर्ट में अपना दर्द बयां करने वाली इन महिलाओं ने कहा कि टीएमसी की समर्थक हैं, लेकिन इसके बाद भी उनपर जुल्म हो रहा था। कुछ महिलाओं ने आरोप लगाया कि सालों से शिकायत दर्ज कराना चाहती लेकिन पुलिस लिखने को तैयार नहीं होती थी, ईडी ने जब शाहजहां शेख के यहां कार्रवाई के लिए पहुंची और वह फरार हुआ तो इससे उन्हें बोलेन की हिम्मत मिली।
जांच के घेरे में संदेशखाली
विवाद बढ़ने के बाद 12 फरवरी को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने संदेशखाली का दौरा किया। यहां की महिलाओं से मुलाकात के बाद राज्यपाल ने मीडिया से कहा, ‘मैंने संदेशखाली की माताओं और बहनों की बातें सुनी। मुझे विश्वास नहीं हुआ कि रबिन्द्र नाथ टैगोर की धरती पर ऐसा भी हो सकता है।’
13 फरवरी को कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अपूर्व सिन्हा रे ने घटना पर स्वत: संज्ञान लिया। कोर्ट ने ममता सरकार से मामले पर 20 फरवरी तक रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।
राज्य महिला आयोग ने किया दौरा
13 फरवरी को ही बंगाल की महिला पुलिस टीम ने संदेशखाली का दौरा किया था। डीआईजी सीआईडी के नेतृत्व में राज्य महिला आयोग ने प्रदर्शनकारी महिलाओं से पूछताछ की। अगले दिन पुलिस ने बयान जारी कर कहा कि पूछताछ में किसी भी महिला ने बलात्कार की कोई शिकायत नहीं की। सभी आरोप और शिकायतों की विधिवत जांच की जाएगी। आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी।
राष्ट्रीय महिला आयोग ने किया दौरा
राज्य महिला आयोग के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग ने घटनास्थल का दौरा किया। एनसीडब्ल्यू ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि टीएमसी नेताओं ने महिलाओं का उत्पीड़न किया है। कई महिलाओं ने शिकायत की है। ये नेता महिलाओं से उनकी जमीन छीन लेते हैं या फिर उनके घर के पुरुष सदस्यों को जबरन गिरफ्तार करवा देते थे।
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा संदेशखाली का मामला
15 फरवरी को संदेशखाली का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। एडवोकेट अलख आलोक श्रीवास्तव ने याचिका दायर कर अदालत से मांग की है कि मामले की जांच और मुकदमा राज्य के बाहर ट्रांसफर किया जाए।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई या एसआईटी जांच की मांग की है। मणिपुर की तरह 3 जजों की कमेटी बनाने की गुजारिश भी की है। इसके अलावा पीड़ितों को मुआवजा दिए जाने और मामले में लापरवाही बरतने वाले दोषी पुलिसकर्मियों पर भी एक्शन लिया जाए।
संदेशखाली पर गरमा रही है राजनीति!
बंगाल बीजेपी अध्यक्ष सुकांता मजूमदार के नेतृत्व में पार्टी संदेशखाली में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही है। बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने ममता सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, ‘घर-घर जाकर ममता के गुंडे छोटी उम्र की हिंदू परिवार की बहुओं को उठवाकर उनका बलात्कार कर रहे हैं, इस पर ममता बनर्जी न कुछ कहती हैं और कहने वाले को विधानसभा से सस्पेंड करा देती हैं।’
वहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में संदेशखाली पर बोलते हुए कहा, “हमने पूरे मामले पर कार्रवाई की है। बीजेपी बाहर से लोगों को बुलाकर माहौल खराब कर रही है। भाजपा के लोग नकाब पहनकर इस मामले पर बयानबाजी कर रहे हैं। संदेशखाली आरएसएस का बंकर बन चुका है. यहां पहले भी दंगे हो चुके हैं। मैंने कभी किसी के साथ अन्याय नहीं होने दिया और न ही होने दूंगी।”
RSS का गढ़ है संदेशखाली?
संदेशखाली विधानसभा सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है। 2016 से टीएमसी इस सीट पर लगातार दो बार जीत चुकी है। 2021 विधानसभा चुनाव में टीएमसी के उम्मीदवार सुकुमार महता ने बीजेपी के उम्मीदवार को करीब 40 हजार वोटों से हराया था।
2016 से पहले तक इस सीट पर वाम मोर्चा मजबूत था। 1977 से 2011 तक संदेशखाली विधानसभा सीट पर लगातार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का कब्जा रहा था। बीजेपी ने अबतक एक बार भी यहां जीत हासिल नहीं की है।
संदेशखाली सीट बशीरहाट लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में आती है। लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी यहां कभी जीती नहीं है। लोकसभा में लगातार तीन बार से टीएमसी जीत रही है। 2019 चुनाव में टीएमसी नेता नुसरत जहां ने करीब चार लाख वोटों से बीजेपी उम्मीदवार को हराया था। इससे पहले 1980 से 2004 तक सीपीएम का गढ़ रहा था।
महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित राज्य है बंगाल?
साल 2019 में गांव कनेक्शन के एक सर्वे में पाया गया कि देश में पश्चिम बंगाल की महिलाएं खुद को सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस करती हैं। 19 राज्यों के 18,267 परिवारों से सर्वे में पूछा गया था कि उनके घर की महिलाएं घर से बाहर निकलते वक्त खुद को कितना सुरक्षित महसूस करती हैं।
सर्वे में सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल की 72.9 फीसदी लोगों ने कहा कि ऐसा माहौल ही नहीं है कि घर से बाहर निकलने पर सुरक्षित महसूस किया जाए। 23.4 फीसदी लोगों ने कहा कि दिन में फिर भी बाहर निकला जा सकता है लेकिन रात में बाहर निकलना बिल्कुल सुरक्षित नहीं है।
NCRB के आंकड़ों में भी बंगाल सबसे आगे
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े मानें तो वो भी कुछ यही तस्वीर बयान करते हैं। एसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के गुमशुदा (मिसिंग) होने के मामले में पश्चिम बंगाल दूसरा सबसे बड़ा राज्य है।
2018 में जहां महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 33,964 महिलाओं के मिसिंग होने की रिपोर्ट दर्ज हुई, वहीं उससे कम जनसंख्या वाले राज्य पश्चिम बंगाल में 31,299 ऐसे मामले दर्ज हुए। इनमें कोलकाता, नादिया, बारासात, बराकपुर, मुर्शिदाबाद में सबसे ज्यादा मामले आए।
इतना ही नहीं महिलाओं के खिलाफ अपराध मामले में भी पश्चिम बंगाल अग्रणी राज्यों में शामिल है। एसीआरबी के अनुसार, 2020 में महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा करीब 49 हजार मामले यूपी में देखे गए। इसके बाद दूसरे नंबर यूपी से आधी आबादी वाले राज्य पश्चिम बंगाल (36,439) में आए।