मध्य प्रदेश के धार जिले के भोजशाला का विवाद फिर से चर्चा में है। बीते शुक्रवार से आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया(एएसआई) ने यहां पर सर्वे का काम शुरू कर दिया है। इंदौर हाईकोर्ट के आदेश के बाद यहां पर सर्वे की शुरुआत हुई है। इस सर्वे के आधार पर ही तय होगा कि यहां पर पूजा होगी या फिर नमाज का अधिकार दिया जाएगा।
हालांकि सर्वे को रोकने के लिए मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की, लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कड़ी सुरक्षा के बीच सर्वे शुरू हो गया है। आखिर क्या है भोजशाला और क्यों हो रहा है इस पर विवाद? क्यों हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला और क्यों शुरू हुआ सर्वे, जानिए विस्तार से सब कुछ यहां पर।
और पढ़ें:- CERT-In की चेतावनी: हैकर्स के निशाने पर हैं एपल आईफोन और आईपैड
क्या है भोजशाला मंदिर का इतिहास
धार जिले की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक भोजशाला मंदिर को राजा भोज ने बनवाया था। राजा भोज परमार वंश के सबसे महान राजा थे, जिन्होंने 1000 से 1055 ईस्वी तक राज किया। इस दौरान उन्होंने साल 1034 में एक महाविद्यालय की स्थापना की थी, जिसे बाद में भोजशाला नाम से जाना गया। यहां देश-विदेश से छात्र पढ़ने आया करते थे।
कौन सी देवी का है मंदिर
भोजशाला मंदिर में शिक्षा की देवी मां सरस्वती का मंदिर है। राजा भोज ने कॉलेज के निर्माण के दौरान ही इस कॉलेज में मां सरस्वती वाग्देवी की मूर्ति की स्थापना करवाई थी। यहां दूर-दूर से छात्र पढ़ने आया करते थे।
कैसे मंदिर से मस्जिद बन गया भोजशाला
बताया जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर हमला किया था। जिसके बाद से यह जगह पूरी तरह से बदल गई। कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 1401 ईस्वी में दिलवार खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में और 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने दूसरे हिस्से में मस्जिद बनवाया था।
19वीं शताब्दी में एक बार फिर इस जगह बहुत बड़ी घटना हुई उस समय खुदाई के दौरान सरस्वती देवी के प्रतिमा मिली थी। जिस प्रतिमा को अंग्रेज अपने साथ ले गए जो अभी लंदन संग्रहालय में है। इस प्रतिमा को वापस भारत लाने के लिए भी विवाद चल रहा है।
ऐसे शुरू हुआ भोजशाला विवाद
देश की आजादी के बाद भोजशाला में पूजा और नमाज को लेकर विवाद बढ़ने लगा। विवाद कानूनी लड़ाई में बदल गया। इसी दौरान 1995 में हुई घटना से बात और बिगड़ गई। जिसके बाद प्रशासन ने मंगलवार को हिंदुओं को पूजा और शुक्रवार को मुस्लिम समाज को नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी। फिर 1997 में प्रशासन ने भोजशाला में आम नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। इस दौरान हिंदुओं को वर्ष में एक बार बसंत पंचमी पर पूजा करने की अनुमति दी गई।
मुसलमानों को प्रति शुक्रवार दोपहर 1 से 3 बजे तक नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई। 6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने भोजशाला में आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन मुसलमानों को नमाज की अनुमति जारी रही। इस आदेश से विवाद और गहरा गया था।
साल 2003 में फिर बदली भोजशाला की व्यवस्था
सात अप्रेल 2003 को एएसआई द्वारा यहां एक नई व्यवस्था बनाई गई। हिंदुओं को फिर से मंगलवार को भोजशाला परिसर में प्रवेश के साथ पूजा की मंजूरी दी गई और मुस्लिम समाज को शुक्रवार को परिसर में नमाज अदा करने की मंजूरी दी। लेकिन जब भी शुक्रवार को बसंत पंचमी आती है तो विवाद और ज्यादा हो जाता है। दोनों पक्ष अपनी पूजा और नमाज के लिए विवाद करते हैं।
ब्रिटिश लेखक भी कर चुके हैं पुष्टि
एएसआई के भोपाल परिक्षेत्र के सर्वे के अनुसार इस समय भोजशाला में जो कथित मस्जिद है, उसमें सरस्वती मंदिर के प्रमाण मिलते हैं। ब्रिटिश लेखक कर्नल जॉन मैल्क्म अपनी किताब ‘हिस्ट्री आफ मालवा’ के पेज नंबर 27 पर लिखते हैं, ‘‘मुगलों का बार-बार आक्रमण परेशानियों की एक लंबी शृंखला के अलावा कुछ नहीं था। मुगलों द्वारा बार-बार जमीन हड़पने से इस प्रांत (मालवा) की सीमाएं बदलती रही हैं।
हालांकि यह तथ्य भी एकदम स्पष्ट है कि भारत केवल आंशिक रूप से ही अधीन (परतंत्र) रहा है, क्योंकि हमें भारत के लगभग हर जिले या प्रांत में हिंदू राजा मिलते हैं, जिन्होंने आक्रामकों का हर प्रकार से भरपूर विरोध किया।’’ इसके अलावा विभिन्न ब्रिटिश विद्वानों ने अपने शोधों में इस जगह पर स्थित शिलालेखों पर संस्कृत और प्राकृत भाषा में वाग्देवी, व्याकरणिक नियम इत्यादि पर लिखित जानकारी जानकारी होने का वर्णन किया है।
अब-तक क्या क्या मिला
- मंदिर एवं आसपास के क्षेत्रों से प्राप्त शिलालेखों पर संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में रचनाएं मंदिर या हिंदू स्थल होने के लिखित प्रमाण हैं।
- शिलालेखों पर मां वाग्देवी एवं राजा भोज से संबंधित विवरण।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार ये शिलालेख 11वीं एवं 12वीं शताब्दी के हैं, जब यहां हिंदू राजाओं का शासन हुआ करता था।
- मंदिर की खुदाई के दौरान वाग्देवी की प्रतिमा का मिलना भी एक अकाट्य प्रमाण है कि यह हिंदुओं का प्राचीन मंदिर या भोजशाला है।
- मंदिर की दीवारों एवं खंभों पर पुष्प एवं देवताओं की आकृतियों का मिलना।
- इसी के साथ ही दीवारों एवं खंभों पर सिंह, कछुआ एवं वराह या सूअर (जिसे इस्लाम में हराम माना जाता है) आदि आकृतियों का प्राप्त होना। अगर यह मस्जिद होती, तो इस तरह की आकृतियां नहीं बनी होतीं।
- मंदिर की छत पर श्रीयंत्र के समान आकृति का डिजाइन इसके हिंदू शिल्प होने का प्रमाण है।
और पढ़ें:- ऑनलाइन गेमिंग को लेकर सरकार ने जारी की एडवाइजरी, जानें क्या कहा।